बुधवार, 25 मई 2011

आरती क्या है और कैसे करनी चाहिए ...












आरती क्या है और कैसे करनी चाहिए ...

आरती को 'आरित्रिका' अथवा 'आरितिर्क' और 'निराजन' भी कहते है. पूजा के अंत मे आरती की जाती है.. पूजन मे जो त्रुटी रह जाती है .. आरती से उसकी पूर्ति होती है.. सकंद्पुरण मे कहा गया है.. :-

मन्त्रहीन क्रियाहीन यत पूजन हरे:
सर्वे स्म्पुर्न्तामेती क्रते नीराजने शिवे..

पूजन मन्त्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी निराजन (आरती) कर लेने से उसमे सारी पूर्णता आ जाती है..

आरती से पहले मूलमंत्र (भगवान् या जिस देवता का जिस मन्त्र से पूजन किया गया है , उस मन्त्र) के द्वारा तीन बार पुष्पांजली देनी चाहिए.. और ढोल , नगारे, शंख, घड़ियाल आदी म्हावाध्यो के तथा जय - जयकार के शब्द के साथ शुभ पात्र के घृत से या कपूर से विषय संख्या के अनेक बत्तिय जलाकर आरती करनी चाहिए..

साधारणत:पांच बत्तियो से आरती की जाती है.. इसे 'पंच्प्र्दीप' भी कहते है.. एक, सात या उससे भी अधिक बत्तियो से आरती की जाती है.. कुमकुम , अगर, कपूर , चंदन, रुई, और घी, धुप की एक, पांच या सात बत्तिय बनाकर शंख, घंटा आदी बाजे बजाते हुए आरती करनी चाहिए...

आरती के पांच अंग होते है.. प्रथम दीपमाला के द्वारा, दुसरे जलयुक्त शंख से.. तीसरे धुले हुए वस्त्र से.. चोथे आम और पीपल आदि के पत्तो से और पांचवे साष्टांग दंडवत से आरती करे.. आरती उतारते समय सर्वप्रथम भगवान् कि प्रितमा के चरणों मे उसे चार घुमाये.. दो आर नाभिदेश मे.. एक बार मुखमंडल पर और सात बार समस्त अंगो पर घुमाये..
यथार्थ मे आरती पूजन के अंत मे इष्टदेव कि प्रसनता के हेतु की जाती है.. इसमें इष्टदेव को दीपक दिखने के सात ही उनका स्तवन तथा गुणगान किया जाता है..

जय माता दी जी...

Sanjay Mehta

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