गुरुवार, 28 जून 2012

श्री राम: Shree Ram By Sanjay Mehta Ludhiana










जो जगत का मित्र है उसे विश्वामित्र कहते है, और जो जगत का मित्र है उसके पीछे जगदीश चलते है, तुम भी जब जग्नमित्र हो जायोगे तब परमात्मा तुम्हारे पीछे आवेंगे, तुम जगत के मित्र नहीं हो सको तो भी कोई बाधा नहीं, परन्तु किसी के वैर मत बनो. विश्वामित्र अर्थात जगंमित्र , जो जगत का मित्र है और जगत जिसका मित्र है

श्री राम परब्रह्म है और लक्ष्मण जी शब्द्ब्रेह्म है, शब्द्ब्रेह्म और परब्रह्म साथ साथ रहते है, श्री कृष्णलीला में श्री कृष्ण परब्रह्म है, और बलराम जी श्ब्दब्रेह्म है, अकेले राम किसी जगह जाते नहीं, और कदाचित जाते हो तो अधिक विराजते नहीं, जहा लक्ष्मण जी हो वहा ही रामजी विराजते है, जहाँ शब्द्ब्रेह्म है वहा ही परब्रह्म स्थिर होता है, राम-लक्ष्मण की जोड़ी है, रामजी श्यामसुंदर है, लक्ष्मण जी गौरसुंदर है, रामजी पीला पीताम्बर पहनते है, लक्ष्मण जी नीला पहनते है, राम - लक्ष्मण गुरुदेव की सेवा करने के लिए गुरु जी के पीछे पीछे चलते है

रामजी का हाथ घुटने को स्पर्श करता है, श्री राम आजानुबाहु है. हाथ का घुटने को स्पर्श करना महायोगी और अति भाग्यशाली का लक्षण है, कदाचित तुमको लगता होगा की हमारा हाथ भी घुटने से लगता है, अरे बैठे बैठे घुटने को हाथ लगे, उसका कुछ अर्थ नहीं , खड़े होने पर हाथ घुटने को स्पर्श करे तो महायोगी का , महाभाग्यशाली का लक्ष्ण है


श्री राम यज्ञ -मंडप पर खड़े है, अधिकतर मंदिर में ठाकुर जी खड़े ही होते है, यदि तुम द्वारिका जाओ तो देखोगे की द्वारिकानाथ खड़े है, तुम पन्ढरपुर में श्री बिट्ठलनाथ जी महाराज खड़े है, पन्ढरपुर में श्री बिट्ठल जी का स्वरूप ऐसा सौभ्य और मंगलमय है की दर्शन करते समय ऐसा लगता है की खड़े रह कर प्रभु किसी की प्रतीक्षा कर रहे है, ठाकुर जी का श्री अंग तो बहुत ही कोमल है, फिर भी वे भक्तो के लिए खड़े हुए है, एक दिवस मन में थोडा विचार आया की ठाकुर जी समस्त दिवस खड़े रहते है, उसमे उनके कोमल चरणों को कितना परिश्रम होता होगा! तुमको कोई एक घंटा खड़ा रखे तो तुम्हारी क्या दशा हो? श्री नाथद्वारा में श्री नाथ जी बाबा भी खड़े है, तुम आंध्र-प्रदेश में जाओ तो वहा भी श्री बालाजी महाराज खड़े हुए है. परमात्मा जगत को बोध देते है की अपने भक्तो से मिलने के लिए मै आतुर हो कर खड़ा हु

नदी समुंदर में जा कर मिलती है , उस पीछे समुंदर से वह अलग रह सकती नहीं, उसका नामरूप भी समुंदर में मिल जाता है, समुंदर में मिले पीछे समुंदर भी नदी को स्वयं के स्वरूप से अलग कर सकता नहीं , मन से बारम्बार ऐसा सकल्प करो की अब मुझे परमात्मा से मिलना है







मंगलवार, 26 जून 2012

नामदेव जी : Namdev ji by sanjay mehta ludhiana









नामदेव जी महाराष्ट्र के महान संत थे , परन्तु इनके मन में सूक्ष्म अभिमान घर कर गया था कि भगवान मेरे साथ बाते करते है, ये बिंठोबाजी के साथ बाते करते थे, एक बार ऐसा हुआ कि महाराष्ट्र में संतमण्डली एकत्रित हुए तब मुक्ताबाई ने गोरा कुम्हार से कहा - इन संतो कि परीक्षा करो, इनमे पक्का कौन है ? और कच्चा कौन है

गौर कुम्हार ने सभी के मस्तक पर ठीकरा मारकर परीक्षा करने का निश्च्च्य किया, किसी भक्त ने मुह नहीं बिगाड़ा. परन्तु नामदेव के माथे पर ठीकरा मारा गया तो नामदेव जी ने मुह बिगाड़ा. उनको अभिमान हुआ कि कुम्हार द्वारा घड़े कि परीक्षा किये जाने कि रीति से क्या मेरी परीक्षा होगी?

गोरा काका ने नामदेव जी से कहा - सबका माथा पक्का है, एक तुम्हारा माथा कच्चा है. तुम्हारा माथा पक्का नहीं, तुमको गुरु कि आवश्यकता है. तुमने अभी तक व्यापक ब्रह्म का अनुभव नहीं किया
नामदेव जी ने बिंठोबाजी से फरियाद कि, बिंठोबाजी ने कहा कि गोराभक्त जो कहते है वह सच है, तुम्हारा मस्तक कच्चा है, मंगलबेडा में मेरा एक भक्त बिसोबा ख्नचर है, उसके पास तू जा , वह तुझे ज्ञान देंगे. नामदेव जी बिसोबा खेंचर के पास गये, उस समय बिसोबा शिवजी के मंदिर में थे. नामदेव महादेव जी के मंदिर में गये. वहा जाकर देखा कि बिसोबा खेंचर शिवलिंग के उपर पैर रखकर सों रहे थे. बिसोबा को मालूम हो गया था के नामदेव जी आ रहे है, इसलिए उनके ज्ञान-चक्षु खोलने के लिए उन्हों ऐसा काम किया था.

नामदेव जी नाराज हुए, उन्हों ने बिसोबा को शिवलिंग के उपर अपना पैर हटाने को कहा, बिसोबा ने कहा - तू ही मेरा पैर शिवलिंग के उपर से उठाकर किसी ऐसे स्थान पर रख, जहा शिवजी ना हो. नामदेव जहा बिसोबा का पैर रखने लगे वही -वही शिवजी प्रगट होने लगे. समस्त मंदिर शिवलिंगों से भर गया.

नामदेव को आश्चर्य हुआ . तब बिसोबा जी ने कहा - गोराकाका ने कहा था कि तेरी हांडी कच्ची है वह ठीक है, तुम्हे हर जगह इश्वर दीखते नहीं, बिठोबा सर्वत्र विराजे हुए है, तू सबमे इश्वर को देख

भक्ति को ज्ञान के साथ भजो. नामदेव जी को सबमे विठोबाजी दिखने लगे. नामदेव जी वहा से वापिस आकर मार्ग में एक वृक्ष के नीचे खाने बैठे. वहा एक कुत्ता आया और रोटी उठाकर ले जाने लगा. अब तो नामदेव जी को कुत्ते में भी बिट्ठल दीखते, रोटी रुखी थी, नामदेव जी घी कि कटोरी लेकर कुत्ते के पीछे दौड़े , पुकारकर कहने लगे - बिट्ठल जी खड़े रहो, रोटी सुखी है, घी चुपड़ दू नामदेव जी को अब सच्चा ज्ञान प्राप्त हो चूका था. नामदेव जी जैसे संत को भी ज्ञान प्राप्त करने के लिए गुरु बनाना पड़ा.
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Sanjay Mehta







सोमवार, 25 जून 2012

पर्वतो के बीच में बैठा है वो भोला भंडारी : Parvato ke beech me baitha hai By Sanjay Mehta Ludhiana









पर्वतो के बीच में बैठा है वो भोला भंडारी
बर्फानी बाबा बोलो दुनिया सारी
पर्वतो के बीच में बैठा है वो भोला भंडारी

चुन चुन के बाबा अपने भक्तो को बुलाये
कठिन परीक्षा लेके दर्शन दिखाए.
बर्फ का है शिवलिंग मनोहारी
बर्फानी बाबा बोलो दुनिया सारी
पर्वतो के बीच में बैठा है वो भोला भंडारी

रस्ते में बांधा आ के मन को डराए
ले के नाम भोले का चलते ही जाए
नाम में है शक्ति बड़ी भारी
बर्फानी बाबा बोलो दुनिया सारी
पर्वतो के बीच में बैठा है वो भोला भंडारी

अमरनाथ के दर्शनों को, भक्त जो भी जाए
मनोकामनाए वो पूर्ण कर के ही आये
जाने कब आये किस की बारी
बर्फानी बाबा बोलो दुनिया सारी
पर्वतो के बीच में बैठा है वो भोला भंडारी
Sanjay Mehta








बुधवार, 20 जून 2012

मन उपवन के फूल माँ तुमको चढ़ाऊँ कैसे: Man upvan ke phul By Sanjay Mehta Ludhiana










मन उपवन के फूल माँ तुमको चढ़ाऊँ कैसे
हमतो पहाड़ों की गुफ़ाओं में तुमको ही ढूँढा करते हैं
हो माँ तुमको ही ढूँढा करते हैं

कहाँ छुप गई है मैया हमारी,कहाँ खोगई है माँ ममता तुम्हारी
चैन नहीं बैचैन मेरा मन में लगन है कि दर्शन हो तेरा
ढूँढूँ कहाँ आजा तू माँ हमतो पहाड़ों की गुफ़ाओं में
तुमही को ढूँढा करते हैं

करदो माँ पूरी इच्छा हमारी,सदियों से रोए माँ अँखियाँ हमारी
आजा तू माँ ढूँढूँ कहाँ । हमतो पहाड़ों की ……………

टेढ़ी डगर है माँ लम्बा सफ़र है
तेरा हाथ सर पे माँ हमें क्या फ़िकर है
आजा तू माँ ढूँढूँ कहाँ हमतो पहाड़ों की गुफ़ाओं में
तुमही को ढूँढा करते हैं हो माँ तुमही को ढूँढा करते हैं







रविवार, 17 जून 2012

हसदा मुस्कान्दा जा.. तू नाम ध्यान्दा जा: Hasda Muskanda Jaa tu naam dhyanda jaa : By Sanjay mehta Ludhiana







जयकारे लांदा जा..


हसदा मुस्कान्दा जा.. तू नाम ध्यान्दा जा..
मिल जायेगा दर उसका जयकारे लांदा जा..

पर्वत दी चोटी ते, एक गुफा निराली ऐ
उस गुफा दे विच बेठी , माँ शेरावाली है
तैनू चरनी लगाएगी तू आस मनान्दा जा..
हसदा मुस्कान्दा जा.. तू नाम ध्यान्दा जा..

दरबार दे विच जा के , तू दुखड़े सुना देवी..
अपना सर दाती दे चरना च झुका देवी..
ओह पार लंगाएगी, तू भेंट गांदा जा..
हसदा मुस्कान्दा जा.. तू नाम ध्यान्दा जा..

वरदानी कल्याणी , माँ तैनू तारेगी..
बिगड़ी तकदीर तेरी ओ आप संवारेगी
भगता जय माता दी हर एक नु बुलंदा जा..
हसदा मुस्कान्दा जा.. तू नाम ध्यान्दा जा..










शुक्रवार, 15 जून 2012

मां वैष्णो देवी: About Maa Vaishno Devi : By Sanjay Mehta Ludhiana








हिंदू महाकाव्य के अनुसार, मां वैष्णो देवी ने भारत के दक्षिण में रत्नाकर सागर के घर जन्म लिया. उनके लौकिक माता-पिता लंबे समय तक निःसंतान थे. दैवी बालिका के जन्म से एक रात पहले, रत्नाकर ने वचन लिया कि बालिका जो भी चाहे, वे उसकी इच्छा के रास्ते में कभी नहीं आएंगे. मां वैष्णो देवी को बचपन में त्रिकुटा नाम से बुलाया जाता था. बाद में भगवान विष्णु के वंश से जन्म लेने के कारण वे वैष्णवी कहलाईं. जब त्रिकुटा 9 साल की थीं, तब उन्होंने अपने पिता से समुद्र के किनारे पर तपस्या करने की अनुमति चाही. त्रिकुटा ने राम के रूप में भगवान विष्णु से प्रार्थना की. सीता की खोज करते समय श्री राम अपनी सेना के साथ समुद्र के किनारे पहुंचे. उनकी दृष्टि गहरे ध्यान में लीन इस दिव्य बालिका पर पड़ी. त्रिकुटा ने श्री राम से कहा कि उसने उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार किया है. श्री राम ने उसे बताया कि उन्होंने इस अवतार में केवल सीता के प्रति निष्ठावान रहने का वचन लिया है. लेकिन भगवान ने उसे आश्वासन दिया कि कलियुग में वे कल्कि के रूप में प्रकट होंगे और उससे विवाह करेंगे.

इस बीच, श्री राम ने त्रिकुटा से उत्तर भारत में स्थित माणिक पहाड़ियों की त्रिकुटा श्रृंखला में अवस्थित गुफ़ा में ध्यान में लीन रहने के लिए कहा.रावण के विरुद्ध श्री राम की विजय के लिए मां ने 'नवरात्र' मनाने का निर्णय लिया. इसलिए उक्त संदर्भ में लोग, नवरात्र के 9 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते हैं. श्री राम ने वचन दिया था कि समस्त संसार द्वारा मां वैष्णो देवी की स्तुति गाई जाएगी. त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जाएंगी.[2]

समय के साथ-साथ, देवी मां के बारे में कई कहानियां उभरीं. ऐसी ही एक कहानी है श्रीधर की.

श्रीधर मां वैष्णो देवी का प्रबल भक्त थे. वे वर्तमान कटरा कस्बे से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित हंसली गांव में रहता थे. एक बार मां ने एक मोहक युवा लड़की के रूप में उनको दर्शन दिए. युवा लड़की ने विनम्र पंडित से 'भंडारा' (भिक्षुकों और भक्तों के लिए एक प्रीतिभोज) आयोजित करने के लिए कहा. पंडित गांव और निकटस्थ जगहों से लोगों को आमंत्रित करने के लिए चल पड़े. उन्होंने एक स्वार्थी राक्षस 'भैरव नाथ' को भी आमंत्रित किया. भैरव नाथ ने श्रीधर से पूछा कि वे कैसे अपेक्षाओं को पूरा करने की योजना बना रहे हैं. उसने श्रीधर को विफलता की स्थिति में बुरे परिणामों का स्मरण कराया. चूंकि पंडित जी चिंता में डूब गए, दिव्य बालिका प्रकट हुईं और कहा कि वे निराश ना हों, सब व्यवस्था हो चुकी है.उन्होंने कहा कि 360 से अधिक श्रद्धालुओं को छोटी-सी कुटिया में बिठा सकते हो. उनके कहे अनुसार ही भंडारा में अतिरिक्त भोजन और बैठने की व्यवस्था के साथ निर्विघ्न आयोजन संपन्न हुआ. भैरव नाथ ने स्वीकार किया कि बालिका में अलौकिक शक्तियां थीं और आगे और परीक्षा लेने का निर्णय लिया. उसने त्रिकुटा पहाड़ियों तक उस दिव्य बालिका का पीछा किया. 9 महीनों तक भैरव नाथ उस रहस्यमय बालिका को ढूँढ़ता रहा, जिसे वह देवी मां का अवतार मानता था. भैरव से दूर भागते हुए देवी ने पृथ्वी पर एक बाण चलाया, जिससे पानी फूट कर बाहर निकला. यही नदी बाणगंगा के रूप में जानी जाती है. ऐसी मान्यता है कि बाणगंगा (बाण: तीर) में स्नान करने पर, देवी माता पर विश्वास करने वालों के सभी पाप धुल जाते हैं.नदी के किनारे, जिसे चरण पादुका कहा जाता है, देवी मां के पैरों के निशान हैं, जो आज तक उसी तरह विद्यमान हैं.इसके बाद वैष्णो देवी ने अधकावरी के पास गर्भ जून में शरण ली, जहां वे 9 महीनों तक ध्यान-मग्न रहीं और आध्यात्मिक ज्ञान और शक्तियां प्राप्त कीं. भैरव द्वारा उन्हें ढूंढ़ लेने पर उनकी साधना भंग हुई. जब भैरव ने उन्हें मारने की कोशिश की, तो विवश होकर वैष्णो देवी ने महा काली का रूप लिया. दरबार में पवित्र गुफ़ा के द्वार पर देवी मां प्रकट हुईं. देवी ने ऐसी शक्ति के साथ भैरव का सिर धड़ से अलग किया कि उसकी खोपड़ी पवित्र गुफ़ा से 2.5 कि.मी. की दूरी पर भैरव घाटी नामक स्थान पर जा गिरी.

भैरव ने मरते समय क्षमा याचना की. देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी.उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान भी दिया कि भक्त द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए कि तीर्थ-यात्रा संपन्न हो चुकी है, यह आवश्यक होगा कि वह देवी मां के दर्शन के बाद, पवित्र गुफ़ा के पास भैरव नाथ के मंदिर के भी दर्शन करें.इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं.

इस बीच पंडित श्रीधर अधीर हो गए. वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते आगे बढ़े, जो उन्होंने सपने में देखा था.अंततः वे गुफ़ा के द्वार पर पहुंचे. उन्होंने कई विधियों से 'पिंडों' की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली. देवी उनकी पूजा से प्रसन्न हुईं. वे उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया. तब से, श्रीधर और उनके वंशज देवी मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं






गुरुवार, 14 जून 2012

सून नगरकोट दीये राणीये: Sun Nagarkot diye Raniye : By Sanjay mehta Ludhiana










सून नगरकोट दीये राणीये..तेरे गल्ल फूल्लाँ दे हार
तेरे बच्चढे वाँजाँ मारदे..आ सून बच्चेयाँ दी पूकार
मेरी नैया डगमग डोलदी-डोलदी..कर शैराँवाली पार
जो दर तेरे ते आ गया होये कारज्ज उसदे रास
मैं मंगता तेरे द्वार दा ..
माँ ऐह मेरी अरदास....
अपने बच्चेयाँ दी दातीये-दातीये हूण तोढ न देवीः आस
हो तेरी जय जय माँ..तेरी जय जय माँ..तेरी जय जय माँ

तू वाली दो जहान दी..तेरा कुल दुनिया ते राज
तेरा पानी भरदे देवते तेरा हर कोई मोहताज
तेरी नजर सव्वली राणीये देदेः फक्कढाँ नू ताज
हो तेरी जय जय माँ..तेरी जय जय माँ..तेरी जय जय माँ


Sanjay Mehta







बुधवार, 13 जून 2012

सुख दुःख : Sukh Dukh By Sanjay Mehta Ludhiana






सुख दुःख

यह मन बहुत अशांत है, अतिशय चंचल है, सुख दुःख मन ही लाया करता है, मन विषयों में भटका करता है, यह स्थिर रह सकता नहीं, यह धन के पीछे दौड़ता है. और धन मिल जाये तो उससे इसे संतोष प्राप्त होता नहीं, और वहा अन्य किसी भोग - पदार्थ या विषय की तरफ दौड़ जाता है, मन कूदफांद करता ही रहता है, इस प्रकार चारो तरफ दौड़ा ही करता है, मन को तनिक भी शांति नहीं. मन अनेक तरंगे लीया करता है, मन मोह प्राप्त करता है, क्रोध करता है, लोभ करता है, कामना करता है, आसक्ति करता है, द्वेष करता है, अनेक प्रकार की चिंताए करता है, इस मन को वश में रखना बहुत कठिन है, असम्भव जैसा है. वह क्षण में सुख पाता है, क्षण में दुखी हो जाता है, इस की एक उदाहरन यह है
दो बचपन के दोस्त लम्बे समय बाद मिले, दोनों में वार्तालाप चलने लगा.
पहला मित्र : भाई! हम बहुत लम्बे समय बाद मिले है, इस बीच मेरी शादी हो चुकी है :)
दूसरा - यह तो बड़ी ख़ुशी की बात है, तुम चतुर्भुज बन गये :)
पहला - परन्तु जो स्त्री मिली है, वह बड़ी कर्कशा, कटुभाषिणी और क्ल्ह्कारिणी है :(
दूसरा - यह तो बहुत चिंता की बात है :(
पहला - पर वह बड़े धनी बाप की इकलोती बेटी है , बहुत माल साथ लाई है
दूसरा - तब तो तुम बहुत भाग्यशाली हो, अनायास मालामाल हो गये :)
पहला - मालामाल क्या ख़ाक हो गया, वह बड़ी कंजूस है, उसने सारी सम्पति अपने नियंत्रण में ले रखी है :(
दूसरा - तब तो सारा मामला ही गडबडा गया :(
पहला - हां , उसने एक सुंदर बिल्डिंग अवश्य बनवा ली :)
दूसरा - चलो , कोठी वाले तो तुम बन गये :)
पहला - हां, आफत भी साथ ही आ गई, उस कोठी में आग लग गई :(
दूसरा - तब तो बड़ा नुक्सान हुआ होगा :(
पहला - नहीं, हमने उसकी बीमा करवा रखी थी :)
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संसारी आदमी की प्रियता और अप्रियता की यह स्थिति है, उसके सुख और दुःख दोनों क्षणिक है. जय माता दी जी : संजय मेहता







मंगलवार, 12 जून 2012

यात्रा कथा : yaatra Katha By Sanjay Mehta Ludhiana








यात्रा कथा


पवित्र गुफा लगभग 98 फुट लम्बी है, गुफा के भीतर व् बाहर कई अन्य सांकेतिक दर्शन भी है, मान्यता है कि सभी 33 करोड़ देवी-देवताओ ने इस गुफा में किसी ना किसी समय माता कि उपासना कि है व् अपने चिन्ह छोड़े है , यह भी माना जाता है कि प्रात: व् सायंकालीन पूजन व् आरती के समय देवी-देवता पवित्र गुफा में माता के वन्दना हेतु आते है
गुफा के मुख पर बाए हाथ की और वक्रतुंड श्री गणेश के दर्शन है, समीप ही सूर्य व् चन्द्रदेव के चिन्ह है, गुफा में प्रवेश करते ही भैरो नाथ का शीला रूपी धड आता है, भैरो नाथ के धड के पश्चात श्री हनुमान के दर्शन होते है व् उसी स्थान पर माता के पावन चरणों से होकर आती चरण गंगा कलकल बहती है.
इस स्थान के बाद यात्री को इसी चरणगंगा के जल में से होकर आगे बढ़ना होता है जहा से 23 फुट कि दुरी पर बाए हाथ पर उपर की और गुफा की छत मानो शेषनाग के असंख्य फनो पर टिकी नजर आती है, शेषनाग के फनो के नीचे माता का हवन कुंड व् उसके पास माता के शंख, चक्र, गदा व् पद्म के चिन्ह है, उसके उपर गुफा की छत को छूते हुए पांच पांडव, सप्त ऋषि , कामधेनु के थन, ब्रह्मा, विष्णु, महेश व् शिव पार्वती के चिन्ह है

Sanjay Mehta, Ludhiana
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हर विपदा मै मैया तू हुई सहाई है !!
फिर कैसे कहदें "माँ" ...पत्थर की माई है !!! जय माता दी !!








सोमवार, 11 जून 2012

तीर्थ : Tirth by Sanjay Mehta , Ludhiana







तीर्थ

तीर्थो में सामान्य जल नहीं. तीर्थ में कुल्ला करना नहीं, साबुन लगाकर स्नान करना नहीं, तीर्थ में कपडा धोना नहीं, मन मे मैल धोना है, शास्त्र में लिखा है कि शरीर को शुद्ध करके, घर में प्रथम शरीर-शुद्धि स्नान करके पीछे तीर्थ में स्नान करना अति उत्तम है

कितने ही लोग गंगा-किनारे, नर्मदा किनारे जाते है, परन्तु बहुत ठण्ड पड़ती हो, वर्षा पड़ती हो तो गंगाजी के , नर्मदा जी को वंदन करते नहीं उनमे स्नान भी करते नहीं, तीर्थ में जाकर जो तीर्थदेव का वंदन ना करे, स्नान ना करे तीर्थ का अपमान करता है, किसी भी तीर्थ में जाओ तो प्रथम तीर्थ-देवता का वंदन करो, उस पीछे स्नान करो. तीर्थ में उपवास करो, उपवास करने से शरीर कि शुद्धि होती है, शरीर में सात्विक भाव जाग्रत होता है. पाप भस्म होता है. तीर्थ में भूमि पर शयन करो, धर्मशाला की खटिया पर सोओ नहीं. जिस खटिया पर किसी ने पाप किया होगा. उस पर सोने से वह तुमको भी लगेगा. स्थान को पवित्र बनाओ, अपना वस्त्र बिछाओ, माला करो और पीछे सों जाओ, तीर्थ में क्रोध नहीं किया जाता, किसी की निंदा नहीं की जाती, कितने ही लोग तो तीर्थ में जाकर पाप करते है.

अन्यत्र किया हुआ पाप तीर्थ में जाकर धुल जाता है, परन्तु तीर्थ में जाकर जो पाप करता है, उसको बहुत भारी सजा मिलती है, एक - एक तीर्थ में एक एक पाप छोडो, एक - एक त्याग बढाओ , परमात्मा के लिए अतिशय प्रिय वास्तु त्याग करोगे तो परमात्मा को दया आएगी, तीर्थ में जाकर काम-क्रोध जैसे विकार छोडो, तीर्थ में ब्रेह्म्चार्य का पालन करो, सत्संग करो, तप और सयम से पवित्र होकर भावना से तीर्थ जाओ.
जय माता दी जी







रविवार, 10 जून 2012

क्षमा प्रार्थना : Kshma Prarthna By Sanjay mehta Ludhiana







क्षमा प्रार्थना


परमेश्वरी! मेरे द्वारा रात-दिन सहस्त्रों अपराध होते रहते है. 'यह मेरा दास है' यों समझकर मेरे उन अपराधो को तुम कृपापूर्वक क्षमा करो. परमेश्वरी , मै आह्वान नहीं जानता, विसर्जन करना नहीं जानता तथा पूजा करने का ढंग भी नहीं जानता , माँ मुझे क्षमा करे. देवि सुरेश्वरी! मैंने जो मन्त्रहीन , क्रियाहीन और भक्तिहीन पूजन किया है, वह सब आपकी कृपा से पूर्ण हो. सैंकड़ो अपराध करके भी जो तुम्हारी शरण में जा 'जगदम्ब' कहकर पुकारता है, उसे वह गति प्राप्त होती है, जो ब्रेह्मादी देवताओं के लीये भी सुलभ नहीं है. जगदम्बिके! मै अपराधी हु. किन्तु तुम्हारी शरण में आया हु. इस समय दया का पात्र हु. तुम जैसा चाहो, करो... देवि! परमेश्वरी! अज्ञान से , भूल से अथवा बुद्धि भ्रांत होने के कारण मैंने जो न्यूनता या अधिकता कर दी हो, वह सब क्षमा करो और प्रसन्न होवो . सच्चिदानन्दस्वरूपा परमेश्वरी! जगन्माता कामेश्वरी! तुम प्रेमपूर्वक मेरी यह पूजा स्वीकार करो और मुझ संजय पर प्रसन्न रहो. देवि सुरेश्वरी! तुम गोपनीय से भी गोपनीय वास्तु की रक्षा करनेवाली हो.. मेरे निवेदन किये हुए इस जप को ग्रहण करो. तुम्हारी कृपा से मुझे सिद्धि प्राप्त हो माँ. जय माता दी जी. माँ सब का कल्याण करो.
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गुरुवार, 7 जून 2012

श्री भगवती नाम माला : Shree Bhagvati Naam Mala By Sanjay mehta Ludhiana







श्री भगवती नाम माला

एक दिन वट वृक्ष के नीचे थे शंकर जी ध्यान में
सती की आवाज आई मीठी उनके कान में
दुनिया के मालिक मेरे अविनाशी तुम भंडारी हो
देवन के महादेव हो त्रिशूल डमरू-धारी हो


विनय सुनकर मेरी भगवान दया तो दिखलाइये
भगवती की नाम माला मुझ को भी बतलाइए
इतना सुन कर मुस्कराकर तब बोले गिरिजा पति
अपने नामो की ही महिमा सुनना चाहती हो सती

तो सुनो यह नाम तेरे जो मनुष्य भी गायेगा
दुनिया में भोगेगा सुख अंत मुक्ति पायेगा
नाम जो स्त्रोत तुम्हारा मन्त्र एक सौ आठ का
जो पढ़ेगा फल वो पायेगा सारे दुर्गा पाठ का

लों सुनाता हु तुम्हे कितने पवित्र नाम है
जिसके पढने सुनाने से होते पूर्ण काम है
उमा इन नामो को जो भी मेरे सन्मुख गायेगा
मै भरू भंडारे उसके मांगेगा जो पायेगा

सती, साध्वी, भवप्रीता, जय भव मोचनी, भवानी जय
दुर्गा, आर्य जय त्र्य्लोच्नी , शुलेश्व्री महारानी जय
चंडघंटा, महातपा, विचित्र मनपिनाक धारनी जय
सत्यानन्द स्वरुप्नी , सती भक्तन कष्टनिवारनी जय

चेतना, बुद्धि, चित्त रूपा, चिंता, अहंकार, निवारनी जय
सर्वमन्त्र माया, भावनी, भव्य, मानुष जन्म सवारनी जय
तू अनंता, भव्य, अभव्या, देव माता, शिव प्यारी है
दक्ष यज्ञ विनाशनी, तू सुर सुन्दरी दक्ष कुमारी है

तू काली, महाकाली, चंडी, ज्वाला, नैना दाती है
चामुंडा निशुम्ब विनाशनी, दुःख दानव की घाती है
कन्या कौमारी , किशोरी, महिषासुर को मार दिया
चंड - मुण्ड नाशिनी, जय बाला दुष्टों का संहार किया

शस्त्र वेदज्ञाता , जगत जननी खण्डा धारती है
संकट हरनी मंगल करनी , तू दासो को तारती है
कल्याणी, विष्णु माया, तू जलोधरी, परमेश्वरी जय
भद्रकाली, प्रितिपालक , शक्ति जगदम्बे जगेश्वरी जय

तू नारायणी 'चमन/संजय' की रक्षक वैष्णवी ब्रेह्मानी तू
वायु, निंद्रा अष्टभुजी सिंघ्वाहिनी सब सुखदानी तू
ऐन्द्री, कैशी, अग्नि, मुक्ति, शिवदूती कहलाती हो
रुद्र्मुखी, परौडा, महेश्वरी, रिद्धि सिद्धि बन जाती हो

दुर्गा जगदम्बे महामाया कन्या आध कंवारी हो
अन्नपूर्णा चिन्तपुरनी , शीतला शेर सवारी हो
पाटला, पाटलावती, कुष्मांडा पीताम्बर धारनी जय
कात्यायनी , जय लक्ष्मी वाराही भाग्य सवारनी जय

सर्वव्यापनी जीव जन्म दाता तू पालनहारी है
कर्ता धर्ता हर्ता मैया तेरी महिमा न्यारी है
तेरे नाम अनेक है दाती कौन पार पा सकता है
तेरी दया से 'चमन /संजय' भवानी गुण तेरे गा सकता है

जगत माता महारानी अम्बे एक सौ आठ ये नाम
'चमन /संजय' पढ़े सुने जो श्रद्धा से पुरे हो सब काम
Sanjay Mehta






बुधवार, 6 जून 2012

राजा परीक्षित की कथा :Raja Prikshit Ki katha by sanjay mehta Ludhiana








राजा परीक्षित की कथा


राजा परीक्षित अर्जुन के पोते तथा अभिमन्यु के पुत्र थे , संसार सागर से पार करने वाली नौका स्वरूप भागवत का प्रचार इन्ही के द्वारा हुआ. पांड्वो ने संसार त्याग करते समय इनका राज्याभिषेक किया . इन्हों ने निति के अनुसार पुत्र के समान प्रजा का पालन किया, एक समय यह दिग्विजिय करने को निकले वहां कुरुक्षेत्र में इन्हों ने देखा एक आदमी बैल को मार रहा है, वह आदमी जो की वास्तव में कलियुग था. उसको इन्होने तलवार खींचकर आज्ञा दी की यदि तुझे अपना जीवन प्यारा है तो मेरे राज्य से बाहर हो जा. तब कलियुग ने डरकर हाथ जोड़कर पूछा कि महाराज समस्त संसार में आपका ही राज्य है फिर मै कहा जाकर रहू. राजा ने कहा जहाँ. मदिरा, जुआ, जीवहिंसा, वैश्या और सुवर्ण इन पांचो स्थानों पर जाकर रह.

एक बार राजा सुवर्ण का मुकुट पहनकर आखेट खेलने के लिए गये, वहां प्यास लगने पर घूमते घूमते शमीक ऋषि के आश्रम पर पहुंचकर जल माँगा. उस समय ऋषि समाधि लगाये हुए बैठे थे, इस कारण कुछ भी उत्तर नहीं दिया, राजा के सुवर्ण मुकुट में कलियुग का वास था. उससे इनको क्यों सूझी की ऋषि घमंड के मारे मुझसे नहीं बोलता है. इन्होने एक मरा हुआ सांप ऋषि के गले में डाल दिया, घर आकर अब जब मुकुट सिर से उतारा तो इनको ज्ञान पैदा हुआ. इधर जब ऋषि के पुत्र श्रृंगी ने यह समाचार सूना तो वह अत्यंत क्रोधित हुआ उसने तुरंत ही यह श्राप दिया की आज के सातवे दिन यही तक्षक सांप राजा को डसेगा. ऋषि ने समाधि छूटने पर जब श्राप का सब हाल सूना तो बड़ा पछतावा किया, किन्तु अब क्या हो सकता था, आखिर राजा के पास श्राप का सब हाल कहला भेजा. राजा ने जब यह हाल सूना तो संसार से विरक्तत होकर अपने बड़े पुत्र जन्मेजय को राजगद्दी सोंप दी, और गंगा जी के किनारे पर आकर डेरा डाल दिया, वहां अनेक ऋषि मुनियों को इकट्ठा किया. संयोग से शुकदेव जी भी वहां आ गये और राजा को श्री मदभागवत की कथा सुनाई, सात दिन तक बराबर कथा सुनते रहे और भगवान में ऐसा मन लगाया की किसी बात की सुधि ना रही और सातवे दिन तक्षक सर्प ने आकर डस लीया और राजा परमधाम को प्राप्त हुए, सत्य है भगवान का चरित्र भक्तिपूर्वक सुनने से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारो पदार्थ अनायास ही मिल जाते है

Sanjay Mehta







रविवार, 3 जून 2012

अयोध्या: Ayodhya by Sanjay Mehta Ludhiana










अयोध्या वैराग्य-भूमि है. अयोध्या में रहकर भक्ति करे तो भक्ति द्रढ़ होती है. अयोध्या अति दिव्या भूमि है. अयोध्या के साधू बहुत संतोषी होते है. अयोध्या के साधू कभी मांगते नहीं. उनकी ऍसी निष्ठां होती है की श्री सीतारामजी हमको देते है. ये फटी कौपीन पहनते है, बहुत भूख लगती है तो सत्तू खाते है और सम्पूर्ण दिवस सीताराम - सीताराम- सीताराम ऐसा जाप करते है, आँख उची करके वे किसी के सामने देखते नहीं. पास में पैसा ना हो, खाने को ना हो , फिर भी मांगते नहीं. उनकी ऍसी भावना है की श्री सीताजी हमको सब कुछ देंगी, अगर कुछ मांगेंगे तो माँ के पास से ही मांगेगे , हमको किसी मनुष्य के पास जाकर माँगना नहीं. दुसरे के पास जाकर मांगने से सीता माँ को बुरा लगेगा. श्री सीता माँ हमको जरुर देगी. संतो का दर्शन अयोध्याजी मे जैसा होता है, वैसा अन्य किसी जगह नहीं होता .

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भगवान अनुकूलता दे तो अयोध्याजी में जाकर रहना परन्तु अधिक उपयुक्त तो यह है कि तुम अपने घर को ही अयोध्या बनाओ, अयोध्या शब्दपर थोडा विचार करो. जहा युद्ध नहीं, उसे अयोध्या कहते है , जहा युद्ध नहीं, जहा वैर नहीं, जहा विकार-वासना नहीं, जहा मेरा-तेरा नहीं, जहा कपट नहीं, जहा दम्भ नहीं, जहा है केवल शुद्ध प्रेम, जहा शुद्ध प्रेम हो, वही परमात्मा प्रगट होते है, वैर और वासना तन को बिगाड़ते है, मन को बिगाड़ते है


अपने तन-मन को अयोध्या बनाना हो तो एसा द्रढ़ निश्चय करो के आज से मेरा कोई शत्रु नहीं, मेरा किसी ने कुछ बिगाड़ा नहीं, मुझे किसी ने तनिक भी दुःख दिया नहीं, मेरे दुःख का कारण मेरे ही अंदर है, मेरा स्वय का अज्ञान ही है , अधिकतर मनुष्य अज्ञान से ही दुखी होता है. समझदारी में सुख है, और अज्ञान में दुःख है. अज्ञान से ही वैर और वासना जागते है. मानव ऍसी कल्पना करता है कि अमुक व्यक्ति ने मुझे दुःख दिया है. यह कल्पना खोटी है. दुःख मनुष्य के स्वय के कर्म का फल है. कोई किसी को सुख देता नहीं. कोई किसी को दुःख दे सकता नहीं, संसार कर्म-भूमि है. किये हुए कर्म का फल भोगने के लिए यह जन्म मिला है, करेले का बीज बोये और केले कि आशा रखे, यह असम्भव है. मनुष्य ने स्वय जो बोया , वही उसको काटना है. इस जगत में कोई किसी का कुछ बिगाड़ता नहीं तुम जगत में किसी के लिए भी कुभाव ना रखो. सबमे प्रभु का दर्शन करो .
Sanjay Mehta







शनिवार, 2 जून 2012

वाणी : Vaani By Sanjay Mehta, Ludhiana







साधक चिडचिडे स्वभाव का ना हो उसे तुनक मिजाज नहीं होना चाहिय वह "अचवले"- अचपल हो चपलता का परित्याग करे साथ ही साथ वह अप्प्भासी" अल्पभाषी हो परिमित्भोजी हो
यध्यपि बिना बोले हमारा व्यवहार चल नहीं पाता बोलना आवश्यक है, पर भाषा-सिमित का ध्यान रखे "ना पुट्ठो वागरे किंची" बिना पूछे कुछ नहीं बोले. यह एक सूत्र हमारे जीवनक्रम को परिवर्तित करता है. पर सामान्यत: लोगों को बोलने का नशा सा होता है. बोले बिना रहा नहीं जाता. इस लिए ज्ञानियो ने कहा "वाचो वेंग" वाणी का भी वेग होता है. वह प्रवाह रुकना नहीं चाहता.. हम प्रत्यक्ष देखते है, बिलकुल छोटे बच्चे जो बोलने में असमर्थ होते है, वे भी होंठो- होंठो में कुछ बुदबुदाते रहते है, बुजुर्ग संत एक रूपक फरमाया है . जरा ध्यान से पड़े



एक बार देवलोग की गौ नंदनी आकाश मार्ग से विहरण कर रही थी. पृथ्वी पर उसे जों का खेत लहलहाता नजर आया, हर- भरा खेत देखकर नंदनी के मुह में पानी भार आया, वह खेत में आई और जों चरने लगी, जी भर कर जों चरे और वापस देवलोक लौट गई, जों का उसे ऐसा स्वाद आया की वह प्रितिदिन उसी खेत में आने लगी, रात को अँधेरे में कोई उसे देख भी नहीं पाता. जाट का पुत्र खेत की रखवाली के लिए खेत में हो सोया करता था. उसने सुबह जब चरा हुआ खेत देखता तो हैरान हो जाता. खेत के सारे रस्ते पूर्ववत बंध थे, सारी रात वह पहरा देता रहा फिर यह सब कैसे हुआ. आखिर जौं चुराकर कौन ले गया? तीन-चार दिन निरंतर ऐसा हुआ तो बहुत सारा खेत खाली हो गया. जाट का बेटा पूरी तरह चौकन्ना हो गया तथा उसने निश्चय किया के अब रात में एक मिनट भी नींद नहीं लूँगा. रात को वह घूम रहा था और नंदिनी आ उतरी. वह मस्ती से जौं चरने लगी, जाट के बेटे ने ज्यो ही देखा, वह लाठी लेकर उसे मारने दौड़ा, मनुष्य की भाषा में नंदिनी ने कहा. अरे किसान! यह तो तेरा परम सौभाग्य है कि मै स्वर्ग का नंदन वन छोड़कर तेरे खेत में आई हु, क्रोध में आकर जाट के बेटे ने कहा. जौं तू खाएगी तो हम क्या खायेंगे. हमने खेत तेरे लिए तो नहीं बोया? भले ही तू देवलोक की गौ हो. मुझे इससे क्या मतलब?

नंदनी ने कहा . देवलोग के और सब कुछ उपलब्ध है, किन्तु ये हरे-भरे जौं के बूटे नहीं, उनके बदले मै तुम्हे कुछ भी दे सकती हु. पर जों तो मै अवश्य खाऊँगी - मुर्ख जाट-पुत्र ने कहा - क्या जौं के बदले मुझे लड्डू खाने को मिल सकते है, हमारे यहाँ तो जौं बाजरे कि रोटी और छाछ नसीब होती है. नंदनी ने हां कर दी और जाट पुत्र को अपनी पूंछ के सहारे आकाशमार्ग कि सैर करवाती हुए स्वर्ग ले गई और ऍसी मिठाइयाँ खिलाई, जिनका उसने नाम तक भी नहीं सूना था. वह त्रप्त हो गया तो नंदनी पूंछ के सहारे ही उसे वापस छोड़ गई

अब तो यह रोज का क्रम बन गया , नंदनी जों खाती और वह लड्डू ....
कुछ दिन बाद एक दिन जाट स्वय खेत पर आया , उस ने देखा लगभग सारा खेत खाली पड़ा है, फसल कहा है, उसने बेटे से कहा. बेटा चुप रहा. जाट समझ गया कि चोरी इसकी जानकारी में हुई है, उसने लट्ठ उठा लीया तो घबरा कर जाट के बेटे ने सारी बात उगल दी. किसान ने कहा - बेवकूफ खेत तो सबका है और लड्डू तू अकेला खता है, हम सब को भी खिलवा. पुत्र ने कहा मै आज नंदनी से बात करूँगा.

रात को जब नंदनी खेत में उतरी तो किसान के बेटे ने सारी स्तिथि सामने रखी तो नंदनी ने कहा तुमने तो देखा ही है , स्वर्ग में मिश्टानो की कोई कमी नहीं चाहे सबको खिला दिए जाये , तुम कल सब को बुला लेना.

अगले दिन परिवार के छोटे बड़े सभी सदस्य खेत में इकट्ठे होकर बड़ी उमंग एवम आतुरता से नंदनी की परीक्षा करने लगे, इतने मै नंदनी उतर आई, जौं वरने के पछ्चात सबको स्वर्ग ले जाने की व्यवस्था हुआ. नंदनी ने कहा. किसान पुत्र! तू सदा की भांति मेरी पूंछ पकड़ लेना, उसके बाद एक एक कर कर सब एक दुसरे के पाँव पकड़ लेंगे. , जब नंदनी उची उठी उसने पूंछ पकड ली, बड़े भई ने उसके पाँव पकड लिए, छोटे ने बड़े के इस प्रकार बड़ी लम्बी पंक्ति बन गई, नंदनी वायु वेग से आगे बढ़ने लगी. जों व्यक्ति कुछ नीचे था. उसने किसान के पुत्र से पूछा की हम सबको कहा ले जाया जा रहा है? वहा के लड्डू कितने बड़े बड़े है? हम भूखे तो नहीं रह जायेंगे. मुर्ख किसान - पुत्र को अपनी स्थिति का भान नहीं रहा. उसने शेखी बघारते हुए दोनों हाथो को खुला कर दिया की - "इतने इतने बड़े लड्डू वहां है " लड्डू का आकर बतलाने के उत्साह में नंदनी की पूंछ हाथ से छुट गई, सबके सब नीचे गिर पड़े, काल के गर्त में समा गए, अनावश्यक वाचालता के कारण सबको प्राणों से हाथ धोना पड़ा.

वाणी के पर्वाह में लोग इस प्रकार बह जाते है कि ना कहने वाली बात भी कह डालते है तथा ना प्रकट करने वाले रहस्य प्रकट कर देते है , राजस्थानी भाषा में एक कहावत है - " निकली हलक से तो गई खलक से"

जों बात एक बार मुंह से निकल जाती है वह सारी दुनिया में फ़ैल जाती है, जों निकल गई, उसे वापस नहीं लौटाया जा सकता. मनुष्य मर जाते है पर शब्द नहीं मरते. आज ना द्रोपदी विधमान है ना दुर्योधन , पर द्रोपदी के द्वारा दुर्योधन को कहे गए शब्द "अंधे बाप के बेटे भी अंधे" अभी तक विद्यमान है और भविष्य में भी जब जब लोग महाभारत का इतिहास पढेंगे इस बात को याद करेंगे.


Sanjay Mehta







जो कुछ हुआ सों अच्छा हुआ: Jo kuchh Hua Achha Hua By Sanjay Mehta Ludhiana









प्राणियो के सुख और दुःख वास्तव में वासनामात्र है , काल्पनिक है, क्षणिक है, सामान्यत; जो भोग मनोज्ञ लगते है, वे ही आपतिकाल में संकटकाल में रोग जैसे दुःखप्रद लगते है, आदमी को खीर, घेवर, लड्डू आदि मिष्टान्न बड़े ही प्रिय लगते है, उन्हें देखते ही मन प्रसन्न हो जाता है, यदि १०४ डिग्री बुखार हो जाये तो वही भोजन विष जैसा लगने लगता है, उन मिष्टाननो को देखते ही उबकाई होने लगती है, इसलिए प्रिय-अप्रिय वस्तात: क्या है - यह जानता हुआ योगी दोनों सथितियो में अविचल रहता है, कूटस्थ रहता है . जो घटनाये घटित होती है, योगी सबका स्वागत करता है , उसके लिए तो सहज भव से जो कुछ हुआ सों अच्छा , यह परमयोग को झलक है, जहाँ हर स्थिति का समादर होता है



एक राजा था, वह अध्यात्म दृष्टि से बिलकुल शुन्य था. राजा का मंत्री बड़ा तत्वज्ञ और आत्माभिमुख था. एक बार राजा शस्त्रों की धार की तीक्ष्णता की परीक्षा कर रहा था. धार परखने में कुछ ऍसी असावधानी हुई की उसकी ऊँगली कटकर दूर जा गिरी, रक्त की धारा बह निकले, राजा वेदना से कराह उठा, इतने में मंत्री आ गया, राजा ने कहा, महामंत्री! देखो आज कैसा मनहूस दिन है मेरी ऊँगली कट गई, मंत्री ने गंभीर स्वर में कहा - राजन! जो कुछ हुआ, अच्छा ही हुआ है, राजा के क्रोध का पारा चढ़ गया वह कहने लगा - क्या बोलते हो? मेरी उगुंली कटने को तुम अच्छा कहते हो? मंत्री ने शांति से कहा. महाराज! प्रकृति से जो घटित होता है, वह अच्छा ही होता है. राजा ने कहा . ऐसे बेहूदा मंत्री मुझे नहीं चाहिए, मै तुम्हे अपने राज्य से निर्वासित करता हु. तुम शीघ्रताशीघ्र राज्य की सीमा से बाहर निकल जाओ. मंत्री ने तब भी शांति से कहा. जो कुछ हुआ, अच्छा हुआ. मेरे लिए यह निर्वासन भी वरदान तुल्य ही है. राजा का क्रोध सीमा पार कर गया. उसने चीखकर कहा - तुम एक शब्द भी बोले बिना फौरन यहाँ से निकल जाओ. मंत्री वहा से रवाना हो गया और किसी दुसरे राज्य में जाकर रहने लगा..

इधर वैद्यो हकीमो की चिकित्सा से , औषिधि प्रयोग से राजा की अंगुली का घाव ठीक हो गया, पर जो हिस्सा टूटकर अलग हो गया वह नहीं हुआ. छेह महीने बीत गये. कुछ विदेशी घोड़ो के सौदागर अच्छी नसल के घोड़े लिए राजा के यहाँ आये. घोड़े बड़े बलिष्ठ एवम तीव्रगामी थे. एक दिन राजा एक घोड़े पार सवार होकर जंगल की सैर के लिए निकला. कामदार घोड़े पर चढ़े पीछे - 2 चल रहे थे, पार , राजा का घोडा बहुत तेज था, वह इतनी तेजी से दौड़ा की राजा उसे सम्भाल नहीं सका. राजा ज्यो ज्यो उसे ठहराने के लिए लगाम खींचता. वह तेज होता जाता. घोड़े ने उसे घने जंगल में भीलो की बस्ती में ला छोड़ा.

इधर भील चंडिका देवी के मंदिर में पूजोत्सव मना रहे थे, पुजारी ने कहा बलि के लिए हष्ट - पुष्ट आदमी लाया जाये, दुर्गा बलि से संतुष्ट होती है, इतने में राजा वहा आ गया. वे बड़े खुश थे, जैसे आदमी की जरूरत थी, देवी की कृपा से सहज प्राप्त हो गया, उन्हों ने राजा से कहा.- आज आपको सीधे स्वर्ग पौचांगे. देवी माँ के आगे आपकी बलि देंगे. राजा को परोहित के सामने ले गये, और कहा गुरुदेव! बलि के लिए सुंदर नौजवान ले आये. राजा कांप रहा था और क्या करता.

आखिर राजा को परोहित के सामने बिठाया गया , स्नान , विलेपन आदि क्रियाये प्रारम्भ हुए. "चन्दन" लगाये गये. तभी परोहित की दृष्टि अचानक राजा की कटी हुई उंगली पर पड़ी. उसने कहा - यह आदमी बलिदान के योग्य नहीं है. क्यों कि यह अंगहीन है अंगहीन देवी का भक्ष्य नहीं बन सकता. देवी तो अक्षत शरीर चाहती है. इसे छोड़ दो और किसी दुसरे आदमी कि खोज करो. राजा को छोड़ दिया गया. राजा समझ नहीं पाया कि क्या हो रहा था और क्या हो गया?

मंत्री के शब्द राजा कि स्मृति में उभर आये कि "जो कुछ हुआ सों अच्छा हुआ" राजा ने सोचा, मंत्री बड़ा तत्वज्ञ था, मै उसकी गहराई को नहीं आंक सका यदि मेरी यह उंगली नहीं कटी होती तो आज मै जीवित नहीं होता. इस छिन्न ऊँगली ने मुझे नव-जीवन प्रदान किया. राजा ने शहर में आकर तत्काल आदेश दिया कि मंत्री जहाँ भी हो लाया जाए. मंत्री का पता लगा लीया गया. मुस्कराता हुआ मंत्री राजा के सामने उपस्थित किया राजा भी मंत्री को देखर मुस्कराने लगा. महामंत्री ! तुम्हारी बात बिलकुल सही निकली, वह उंगुली का कटना मेरे लिए अद्भुत जीवन दान देने वाला सिद्ध हुआ. तत्काल मंत्री ने कहा. आपके लिए ही नहीं , मेरे लिए भी देश-निर्वासन बहुत उपकारी सिद्ध हुआ. अन्यथा जहा आपका घोडा होता, वहा मै भी आप के साथ होता . वे भील आपको तो अंगहीन मानकर छोड़ देते पर मै तो अंगहीन नहीं था, मुझे वे अवश्य मार डालते, पर आपकी कृपा से मै जीवित बचा हु. इसलिए जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा वह भी अच्छा ही होगा.


Sanjay Mehta