सोमवार, 9 मई 2011

चल कंजके











चल कंजके


चल कंजके चल कंजके वहा चल कंजके..
जहा माता जी का मंदिर निराला है
जहाँ सची ज्योत बांटती ज्वाला है..
जहाँ माँ- चरणों की गंगा मे बहे,
अमृत जैसा जल कंजके
चल कंजके

जहा महारानी सच्चा इन्साफ करती
पाप धोती है भूलें सभी माफ़ करती
जहाँ आदमी गुनाह से तोंबा करें
जहाँ भागते कपट और छल, कंजके..
जहाँ माता जी का....

जहाँ सुनती माँ फरियादे है..
जहाँ सबको ही मिलती मुरादें है..
जहाँ सोया मुकद्दर जागेगा..
कुछ आज कंजके कुछ कल कंजके..
जहाँ माता जी का...

मुझे दाती के दर्शन करा कंजके..
यहाँ झुकने वालो को मिलता है..
सदा सब्र का मीठा फल कंजके..
जहाँ माता जी का..

Sanjay Mehta


कोई टिप्पणी नहीं: