देव्युपनिषत्त में भी इस प्रकार वर्णन है। सभी देवताओ ने देवी की सेवा में पहुंचकर पूंछा - "तुम कौन हो महादेवी ?" उत्तम में महादेवी ने कहा " 'मै' ब्रह्मस्वरूपिणी हूँ। मेरे ही कारण प्रकृतिपुरषात्मक यह जगत्त है। शुन्य और अशून्य भी . आनंद और अन्नंद हूँ। विज्ञान और अविज्ञान मै ही हूँ। मुझे ही ब्रह्म और अब्रह्म समझना चाहिए . मै पंचभूत हूँ और अपंचभूत भी। मै सारा संसार हूँ। मै विद्या और अविद्या हूँ। मै अजा हूँ अन्जा हूँ। मै अध-उध्र्व और तिर्यक हुँ. रुद्रो में आदित्यों में , विश्वदेवों में मै ही संचारित रहती हु। मित्रावरुण, इंद्र, अग्नि , अश्िवनीकुमार - इन सबको धारण करनेवाली मै ही हु। मै उपासक या याजक यजमान को देनेवाली हु.
यह महादेवी या महाशकी है। यह पराशक्ति है . यह आदिशक्ति है। यह आत्मशक्ति है और यही विश्वमोहिनी है। जय माता दी जी
|