मंगलवार, 30 जून 2015

Jai Mata Di : Sanjay Mehta











देव्युपनिषत्त में भी इस प्रकार वर्णन है। सभी देवताओ ने देवी की सेवा में पहुंचकर पूंछा - "तुम कौन हो महादेवी ?" उत्तम में महादेवी ने कहा " 'मै' ब्रह्मस्वरूपिणी हूँ। मेरे ही कारण प्रकृतिपुरषात्मक यह जगत्त है। शुन्य और अशून्य भी . आनंद और अन्नंद हूँ। विज्ञान और अविज्ञान मै ही हूँ। मुझे ही ब्रह्म और अब्रह्म समझना चाहिए . मै पंचभूत हूँ और अपंचभूत भी। मै सारा संसार हूँ। मै विद्या और अविद्या हूँ। मै अजा हूँ अन्जा हूँ। मै अध-उध्र्व और तिर्यक हुँ. रुद्रो में आदित्यों में , विश्वदेवों में मै ही संचारित रहती हु। मित्रावरुण, इंद्र, अग्नि , अश्िवनीकुमार - इन सबको धारण करनेवाली मै ही हु। मै उपासक या याजक यजमान को देनेवाली हु.
यह महादेवी या महाशकी है। यह पराशक्ति है . यह आदिशक्ति है। यह आत्मशक्ति है और यही विश्वमोहिनी है। जय माता दी जी







शनिवार, 27 जून 2015

हिंगुला शक्तिपीठ: Hingula shaktipeeth : Sanjay Mehta Ludhiana










हिंगुला शक्तिपीठ : यह शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के हिंगलाज नामक स्थान में है। हिंगलाज कराची से १४४ कि. मी. दूर उत्तर-पश्चिम दिशा में हिंगोस नदी के तट पर है। कराची से फारस की खाड़ी की जाते हुए मकारन्तक जलमार्ग तथा आगे पैदल जाने पर ७ वे मुकाम पर चंदरकूप है। यह आग उगलता हुआ सरोवर है। इस यात्रा का अधिकाँश भाग मरुस्थल से होकर तय करना पड़ता है। जो अत्यंत दुष्कर होता है। चंद्रकूप पर प्रत्येक यात्री को अपने प्रच्छन्न पापों को जोर-जोर से कहकर उनके लिए क्षमा मांगनी पड़ती है। और आगे ना करने की शपथ लेनी होती है। आगे १३ वे मुकाम पर हिंगलाज है। यही एक गुफा के अंदर जाने पर हिंगलाजदेवी का स्थान है। जहाँ शक्तिरूप ज्योति के दर्शन होते है। गुफा में हाथ-पैर के बल जाना होता है . यहाँ देवी देह का ब्रह्मरंध्र गिरा था। यहाँ की शक्ति "कोट्ट्री" तथा भैरव "भीमलोचन" है।
जय माता दी जी








शुक्रवार, 26 जून 2015

ज्वालामुखी : Jwalamukhi : Sanjay Mehta Ludhiana









ज्वालामुखी : यहाँ देवी देह की जिह्वा का पतन हुआ था। यहां की शक्ति "सिद्धिदा" और भैरव "उन्मत्त" है। मंदिर के भीतर मशाल जैसी ज्योति निकलती है . शिवपुराण तथा देवी भागवत के अनुसार इसी को देवी का ज्वालारूप माना माना गया है। यहाँ मंदिर के पीछे की दीवार के गोखले में ४ कोने में से 1. दाहिनी और की दीवरसे १ और की दीवार से १ और मध्य के कुण्ड की भित्तियों से ४ - इस प्रकार दस प्रकाश निकलते है . इनके अतरिक्त और भी कई प्रकाश मंदिर की भित्ति के पिछले भाग से निकलते है . इनमे से कई स्वत: बुझते और प्रकाशित होते रहते है। ये ज्योतियां प्राचीनकाल से जल रही है . ज्योतियों को दूध पिलाया जाता है तो उसमे बत्ती तैरने लगती है। और कुछ देर तक नाचती रहती है। यह दृश्य ह्रदय को बरबस आकृष्ट कर लेता है। ज्योतियों की संख्या अधिक-से-अधिक तेरह और काम-से-कम तीन होती है
जय माता दी जी