सोमवार, 2 मई 2011

मोहन तेरी गली मे...






मोहन तेरी गली मे...

आनंद लुट रहा है मोहन तेरी गली मे
भगतो का जमघट है, मोहन तेरी गली मे..
देवो का सर झुका है, मोहन तेरी गली मे..
और क्या बताऊ क्या है , मोहन तेरी गली मे...
बैकुंठ बस रहा है मोहन तेरी गली मे.. आनंद....

द्विज,सुदामा जैसे, कंगाल हो चुके थे..
अन्न-धन और वस्त्र के, उपवास हो चुके थे..
तेरी शरण लिए से, धनवान हो चुके थे
होकर प्रसन मन मे, आपने यु कह रहे थे
दौलत का दर खुला है, मोहन तेरी गली मे.. आनंद...

वैश्या का शब्द सुनके, पंडित ने घर को छोड़ा..
आँखों को दोष पाया, उनसे भी नाता तोडा..
दो लेके गर्म सुए, आँखों को अपने फोड़ा..
बन सूरदास बोले, क्या खूब रिश्ता जोड़ा..
अँधा भी आ गया , मोहन तेरी गली मे... आनंद..

गज ग्राह जल के अंदर , लड़ने लगे लड़ाई..
गज हार गया बाजी, जान पे बन आई.
मोहन को दी दुहाई... आकर हुई सहाई..
बहार निकल कर बोले, धन्य है तेरी प्रभुताई.
क्या तार लग रहा है , मोहन तेरी गली मे...आनंद..

राधे राधे..
जय माता दी जी
हर हर महादेव
बोलो मेरी माँ राज रानी की जय..

Sanjay Mehta

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