मंगलवार, 10 मई 2011

माँ लक्ष्मी







जगदम्बिके.. जब देवता और मुनिगण ये सब भी आपके स्वरूप के सम्बन्ध मे सम्यक प्रकार से निर्माण नहीं कर पाते, तब पृथ्वी पर रहनेवाला साधारण मनुष्य उसे कैसे जान सकता है.. दयामयी आपकी दया-पूर्ण दृष्टि पड़ने पर ही आपके सम्पूर्ण प्रभाव समझ मे आते है.. देवी आपके वैभव को देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है.... जब ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन्दर, सूर्य, चन्द्रमाँ , अग्नि, वरुण, पवन, कुबेर तथा व्सुग्न तक आपके सम्पूर्ण गुणों से अपरिचित है, तब गुणहीन मनुष्य क्यों कर उन्हें समझ सकता है..



माता भगवान विष्णु महान तेजस्वी है.. तब भी सम्पूर्ण सम्पति प्रदान करनेवाला लक्ष्मी के रूप मे आपका जो सात्विक स्वरूप है उसे ही वे जानते है.. ब्रह्माजी आपके राजस रूप से और शंकर तामस रूप से परिचित है.. कहा मै संजय मेहता प्रचंड मुर्ख और कहा आपका यह अत्यंत प्रभावशाली परम प्रसाद- मेरे लिए यह कितना असम्भव है.. भवानी.. आपका कृपापूर्ण चरित्र समझ मे आ गया.. अनन्य भगति से उपासना करनेवाले सेवको पर दया करना आपका स्वभाव है.. जब आपने लक्ष्मीरूप से विराजमान होकर इनसे सम्बन्ध स्थापित किया, तभी यह विष्णु मधु देत्या को मारने मे समर्थ हुए.. पुराण पुरष भगवान विष्णु की छाती मे भृगु जी ने लात मारी, किन्तु आप श्रीदेवी की अभिलाषा से वे अप्रसन्न ना हुए.. जैसे काटे जानेपर भी अशोक वृक्ष भविष्य मे अच्छा सज जाने की आशा से अप्रसन्न नहीं होता.. सभी देवता भगवान् विष्णु को प्रणाम करते है.. और उन श्री हरिका मन आप मे लगा रहता है... देवी.. आप भगवान् विष्णु के अत्यंत विस्त्रत , शांत एवं भुष्नो से भूषित वक्ष:स्थल पर शय्या की भांति सदा उसी प्रकार विराजमान रहती है.. जैसे बिजली मेघमाला मे शोभा पाती है.. प्रत्यक्ष देखा जाता है की कोई पुरष शांत, सुशिल और गुणी भले ही हो; किन्तु उसके पास आपका (शक्तिका) वास ना हो तो अपने कहलानेवाले भई-बंधू भी उसे छोड़ देते है.. माता तुम्हारी शक्ति का कितना वर्णन करू.. माता मेरी यही अभिलाषा है कि तुम्हारे प्रति मेरी भगति सदा बनी रहे..
Sanjay मेहता





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