गुरुवार, 19 मई 2011

भगवान श्री कृष्ण जी से विनम्र प्राथना...












भगवान श्री कृष्ण जी से विनम्र प्राथना...


जनार्दन ! यह संसार -समुंदर अत्यंत गहरा है... इसका पार पाना कठिन है.. यह
दुःखमयी लहरों और मोहमयी भांति भांति की तरंगो से भरा है.. मै अत्यंत दीन हु..
और अपने हो दोषों तथा गुणों से - पाप -पुण्यो से प्रेरित होकर इसमे फंसा हु..
अंतत: आप मेरा इससे उद्धार कीजिये...


कर्मरूपी बादलो की भारी घटा घिरी हुई है.. जो गरजती और बरसती भी है.. मेरे
पातको की राशि विधुल्ल्लता की भांति उसमे थिरक रही है.. मोहरूपी अन्धकार-समूह
से मेरी दृष्टि विवेकशक्ति नष्ट हो गई है.. मै अत्यंत दीन हो रहा हु..
मधुसुदन, मुझे अपने हाथ का सहारा दीजिये..

यह संसार एक महान वन है, इसमें बहुत से दुःख ही वृक्ष रूप मे स्थित है..
मोहरूपी सिंह इसमें निर्भय होकर निवास करते है.. इसके भीतर शोकरुपी प्रचण्ड
दावानल प्रज्वलित हो रहे है.. जिसकी आंच से मेरा चित संतप्त हो उठा है.. कृष्ण!
इससे मुझे बचाइए

संसार एक वृक्ष के समान है.. यह अत्यंत पुराना होने के साथ बहुत ऊचा भी है..
माया इसकी जड है... शोक तथा नाना प्रकार के दुःख इसकी शाखाये है.. पत्नी आदी
परिवार के लोग पत्ते है... और इसमें अनेक प्रकार के फल लगे है.. मुरारे.. मै इस
संसार - वृक्ष पर चड़कर गिर रहा हु... भगवान ... इस समय मेरी रक्षा
कीजिये...

कृष्ण! मै दुखरुपी अग्नि, विविध प्रकार के मोह रुपी धुएं तथा वियोग, मृत्यु और
काल के समान शोक से जल रहा हु.. आप सर्वदा ज्ञान रुपी जल से सींचकर मुझे सदा के
लिए संसार बंधन से छुड़ा दीजिये..

कृष्ण! मै मोहरूपी अंधार राशि से भरे हुए संसार नामक महान गड्डे मे सदा से गिरा
हुआ हु... दीन हु.. और बी से अत्यंत व्याकुल हु.. आप मेरे लिए नोक बनाकर मुझे
उस गड्डे से निकालिए.. वहा से खींचकर अपनी शरण मे लीजिये..

जो सयम शील ह्रदय के भाव से युगत होकर अनन्य चित से आपका ध्यान करते है.. वे
आपकी पदवी को प्राप्त हो जाते है.. तथा जो देवता और किन्नर्ग्न आपके दोनों परम
पवित्र चरणों को प्रणाम करके उनका चिन्तन करते है.. वे भी आपकी पदवी को
प्राप्त होते है..

मै ना तो दुसरो का नाम लेता हु.. ना दुसरे को भजता हु.. और ना ही दुसरे का
चिन्तन करता हु... नित्य निरंतर आपके युगल चरणों को प्रणाम करता रहता हु.. इस
प्रकार मै आपकी शरण आया हु.. आप मेरी रक्षा करे.. मेरे पटक समूह शीघ्र दूर हो
जाए.. मै नोकर की भांति जन्म जन्म आपका दास बना रहू.. भवन आपके युगल चरण कमलो
को सदा प्रणाम करता हु...

श्री कृष्ण ... यदि आप मुझपर प्रसन्न है.. तो मुझे यह उतम वरदान दीजिये.. मेरी
माता श्रीमति राज रानी मेहता , पिता श्री सुदर्शन लाल मेहता को मेरी पत्नी
श्री मति सोनू मेहता .. मेरे बच्चे (पल्लवी,विकास,दीक्षा) मेरे परिवार को सभी
को आपकी भगति प्राप्त हो.. आप के लोक मे ले चलिए.. आपका आशीर्वाद सदा हमारे साथ
रहे.. भोले बाबा, गणपति जी महाराज.. माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती, माँ दुर्गा सब
का आशीर्वाद और सब के साक्षात दर्शन हो..

संजय मेहता...
जय माता दी जी..


Sanjay Mehta

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