शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

सज रही मेरी अम्बे मैया सुनहरी गोटे मे -२


सज रही मेरी अम्बे मैया सुनहरी गोटे मे -२ सज रही मेरी अम्बे मैया सुनहरी गोटे मे -२ सुनहरी गोटे मे रुपेहरी गोटे मे -२ सज रही मेरी अम्बे मैया सुनहरी गोटे मे -२ मैया तेरी चुनरी की गजब है बात -२ चंदा जैसा मुखड़ा... मेहँदी से रचे हाथ -२ सज रही मेरी अम्बे मैया सुनहरी गोटे मे -२ मैया के प्यारे श्रीधर बेचारे.. करते वो निर्दन नित्य कन्या पूजन माँ पर्सन हो उनपर आई कन्या बनकर उनके घर आई... यह हुकम सुनाई.... कल अपने घर पे रखो... विशाल भंडारा.. कराओ सब को भोजन.. बुलाओ गाव सारा सज रही मेरी अम्बे मैया सुनहरी गोटे मे -२ श्रीधर जी विचारों मे डूब गए .... आखिर यह कन्या कोन थी वो सोचने लगे.. मे निर्धन इतने बड़े भंडारे का आयोजन कैसे कर सकता हु सहसा उन के मन मे विचार आया... की वो कन्या कोई सदारण कन्या नहीं थी... कोई महान शक्ति थी और जब उस ने यह महान कार्य का हुकम दिया है तो उस का पर्बंध ही वो ही करेगी यह सोच कर निमंत्रण देने निकल पड़े... गाव गाव संदेसा दिया .. रस्ते मे गोरखनाथ जी मिल गए.. जब उन्हें निमंत्रण दिया... तो वो मुस्कुरा कर बोले.. ब्राह्मण भैरवनाथ और ३६० चेलो को तो देवराज इन्दर भी भोजन ना खिला सकते.. तो तेरी क्या ओकात है... परन्तु उस कन्या की परीक्षा लेने हम जरुर आयेंगे... माँ का संदेसा घर घर मे पुचा.. करने को भोजन .. आ गए सब ब्रह्मण... भैरव भी आया.. चेलो को बुलाया.. श्रीधर घबराया...कुछ समझ ना पाए.. फिर कन्या आई ... उन्हें धीर भंदाई... वो दिव्या शक्ति श्रीधर से बोली तुम मत घबराओ .. अब बहार आओ .. सब अथिति अपने... कुट्टिया मे लाओ श्रीधर जी बोले फिर बहार आकर ... सब भोजन कर ले कुट्टिया मे चल कर फिर भैरव भोले.. मै और मेरे चेले... कुट्टिया मे तेरी... बैठेंगे कैसे.. बोले फिर श्रीधर ... तुम चलो तो अंदर... स्थान की चिंता... तुम छोड़ दो मुझपर तब लगा के आसन .. बेठे सब ब्रह्मण ... कुट्टिया के अंदर... करने को भोजन.. भंडारे का आयोजन श्रीधर जी से करवाया... फिर सब को पेट भर के भोजन तुमने कराया . मैया तुम्हारी माया क्या समझे कोई... जो भी तुझे पूजे.. नसीबो वाला होई सज रही मेरी अम्बे मैया सुनहरी गोटे मे -२ कन्या ने जब अपने विचित्र पात्र से सब को भोजन देना अरम्ब किया तो श्रीधर जी पर्सन हो उठे सब हैरान रह गए.. भैरव ने सोचा के यह कन्या जरुर कोई शक्ति है कन्या भोजन परोसती हुई.. जब भैरव के पास पहुची तो भैरव भोला.. कन्या... तुम ने सब को उन की इच्छा का भोजन दिया है परन्तु मै कुछ और चाहता हु... तो माँ बोली... बोलो योगिराज... आप को क्या चाहिए तो भैरव ने कन्या से मॉस और मदिरा मांगी कन्या ने भैरव से आदेश के स्वर मै कहा. सुन ले हे ब्रह्मण .. यह वैष्णव भोजन .. ब्रह्मण जो खाते... वो ही तुम्हे खिलते... हठ की जो तुमने.. बड़ा पाप लगेगा... यहाँ मॉस और मदिरा .. तुझे नहीं मिलेगा... यह है वैष्णो भंडारा... तू मान ले मेरा कहना... ब्रह्मण को मॉस मदिरा से क्या है लेना देना सज रही मेरी वैष्णो मैया सुनहरी गोटे मे -२ कन्या ने भैरव से कहा ... जो कुछ वैष्णव भंडारे मै होता है वो ही मिलेगा... भैरव हठ करने लगा.. क्यों की उस को तो कन्या की परीक्षा लेनी थी... उस के मन की बात माता रानी पहले ही समझ चुकी थी.. ज्यो ही भैरव ने मात रानी को पकड़ना चाह... वो महामाया अन्तेर्ध्यान हो गई... भैरव ने योगविद्या से देखा... वो दिव्या कन्या पवन रूप हो कर त्रिकुट पर्वत की और बढ रही है .. दर्शनी दरवाजा.. बाण गंगा... चरण पादुका आदी सथानो से होकर.. आदी कुमारी वाले स्थान पर पहच कर गर्भ जून गुफा मै ९ महीनो तक विश्राम किया... भैरव ना छोड़ा... मैया का पीछा.. माँ गुफा मै जब छुप गई जा कर ... जब गर्भ गुफा मै भैरव जाता था.. पहरे पर बेठे... लंगूर ने रोका... अड़ गया था भैरव अपनी जिद पर लंगूर भैरव मै हुआ युद्ध भैय्नकर फिर आदी शक्ति ... जब गरब गुफा से ..थी बहार निकली... तो रूप बनाया... भैरव गबराया .. तलवार एक मारी... भैरव संहारी... भैरव के तन से आवाज़ एक आई.. हे आदी शक्ति.. हे चंडी माई...मुझ पर किरपा कर... मेरा दोष भुला कर... मुझे कोई वर दे... यह करुना कर दे मै हु अपराधी.. तेरी भगति साधी.. मेरा दोष मिटादे... निर्दोष बनादे ... भैरव शरणागत आया... तो बोली वैष्णो माता.. मेरी पूजा के बाद में होगी तेरी भी पूजा.. मैया जी के दर्शन जो भैरव मंदिर मे जाए.. मैया की किरपा से वो मनचाहा वर पाए.. सज रही मेरी अम्बे मैया सुनहरी गोटे मे -२ Sanjay Mehta

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