गुरुवार, 31 मार्च 2011

शिर्डी की पावन भूमि पर पाँव रखेगा जो भी कोई




शिर्डी की पावन भूमि पर पाँव रखेगा जो भी कोई । तत्क्षण मिट जाएंगे कष्ट उसके, हो जो भी कोई || १ || चढे़गा जो मेरी समाधी की सीढी । मिटेगा उसका दुःख और चिंताएँ सारी || २ || गया छोड़ इस देह को फिर भी । दौड़ा आऊंगा निजभक्त हेतु || ३ || मनोकामना पूर्ण करे यह मेरी समाधि । रखो इस पर विश्वास और द्रढ़ बुद्धि || ४ || नित्य हूँ जीवित मैं, जानो यहाँ सत्य । कर लो प्रचीति, स्वंय के अनुभव से || ५ || मेरी शरण मैं आके कोई गया हो खाली । ऐसा मुझे बता दे, कोई भी एक सवाली || ६ || भजेगा मुझको जो भी जिस भावः से । पायेगा मुजको वह उसी भाव से || ७ || तुम्हारा सब भार उठाँऊंगा मैं सर्वथा । नहीं इसमें संशय, यह वचन है मेरा || ८ || मिलेगी सहाय यहाँ सबको ही जानो । मिलेगा उसको वही, जो भी मांगो || ९ || हो गया जो तन मन वचन से मेरा । ऋणी हूँ में उसका सदा-सर्वथा ही || १० || कहे साई वही हुआ धन्य-धन्य । हुआ जो मेरे चरणों से अनन्य ||

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