शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

माता की तीन पिंडियो का स्वरूप













माता महालक्ष्मी की पिंडी
डुग्गर के शत्श्रंग पर्वत के त्रिकुट शिखर पर माता वैष्णो देवी विराजमान है.. इस पर्वत की पवित्र गुफा मे जो तीन पिंडिया है उनमे मध्यवर्ती पिंडी माता महालक्ष्मी की है, और महालक्ष्मी विष्णु की शक्ति है. अत: इनका दूसरा नाम वैष्णवी है
यह वैष्णवी पराशक्ति है
परमात्मा की और भी नानाविध शक्तिया है..
इन अनेक शक्तिओ मे श्री विष्णु की अहेन्त नाम की एक शक्ति है, वेह महालक्ष्मी है..

एक स्थान पर स्वय महालक्ष्मी ने इन्दर से कहा " उस परब्रह्म की, जो चंदेर्मा की चांदनी की तरह समस्त अवस्थ्यो मे साथ देने वाली परमशक्ति है, वह सनातनी शक्ति मे ही हु... मेरा दूसरा नाम नारायणी भी है. मे नित्य, निर्दोष, सीमारहित कल्याण गुणों वाली नारायणी नाम वाली, वैष्णवी प्रसत्ता हु"..

पुरातन शास्त्रों के अनुसार जो देवी परम शुद्ध सत्व-स्वरूप है, उनका नाम महालक्ष्मी है..
परम परमात्मा श्री हरी की वे शक्ति हो..

हजार पंखुड़िया वाला कमल उसका आसन है.. इनके मुख की शोभा तपे हुए स्वर्ण के समान है, और इनका रूप करोडो चंदेर्माओ की कांडी से सम्पन्न है...

माता महालक्ष्मी के मुख पर सदेव मुस्कान व्याप्त रहती है..

संपत्तियो की इश्वरी होने के कारन अपने सेवको को ये धन एश्वारिया , सुख , सिधी और मोक्ष प्रधान करती है.. भगवान श्री हरी की माया तथा उनके तुल्य होने के कारन इन्हें नारायणी कहा जाता है..

वैश्वी और दुर्गा इनके दुसरे प्रिसद्ध और परमुख नाम है...

जैसे नदियो मे गंगा, देवताओ मे श्री हरी तथा वैष्णवों मे शिव श्रेष्ठ स्वीकार किये गए है, उसी परकार देवी के सभी नाम रूप मे वैष्णवी नाम से प्रसिद्ध भगवती महालक्ष्मी श्रेष्ठ है..



माता महालक्ष्मी अत्यंत सुंदर, सयाम्शील, शांत, मधुर और कोमल स्वभाव की है..

क्रोध, लोभ, मोह, मद, अहकार आदी से रहित अपने भगतो पर किरपा करते रहना और अपने स्वामी श्रेहरी से प्रेम करना उनका स्वभाव है.. वे मधुर और प्रिय लगने वाले वचन ही बोलती है..
कभी अप्रिय वचन नहीं कहती..

वे कबी क्रोध और हिंसा नहीं करती...
सारा संसार , सारी संपतिया इनके स्वरूप है.. संसार मे जितने भी परकार के अन्न , फल फुल और वनस्पतीय आदी खाद्य पदार्थ है जिससे प्राणियों के जीवन की रक्षा होती है, सब इनके ही रूप है...

जिस धन से मानव - मात्र का सांसारिक कार्य-वेय्पार संचालित होता है, उसकी यह अधिष्ठात्री देवी है. लक्ष्मी से हीन, दरिद्र व्यक्ति का जीवन, जीते हुए भी मृत के समान होता है... और जिस पर लक्ष्मी की किरपा होती है, वेह सुखी और सम्मानित जीवन व्यतीत करता है..
जो लक्ष्मी से हीन है, वह भाई-बंधुओ और मित्र से हीन है. जो लक्ष्मी से युक्त है, वेह भाई बंधुओ और मित्रो से घिरा रहता है.. माता महालक्ष्मी की किरपा से ही मानव की शोभा होती है..

जिस पर इनकी किरपा हो जाये वह सुखी और निशित जीवन बिता सकता है. धर्म, काम और मोख उस के लिए सुलभ हो जाते है...
ये शक्ति सबकी कारण रूप है.. सर्वोच्च पवित्रर्ता है और बैकुंठ-लोक मे अपने स्वामी श्रीहरी की सेवा मे लीं रहती है.. यह देवी बैकुंठ मे महालक्ष्मी, क्षीरसागर मे ग्रेह्लाक्ष्मी, वेपारीको के यहाँ पर वेय्पार लक्ष्मी, ग्राम ग्राम मे ग्राम देवी तथा घर घर मे महादेवी के रूप मे रहती है...

संसार के सभी प्राणियो और वसतो मे यह शोभा के रूप मे विधमान है.. संसार मे द्रिश्त्गोचार होने वाला सोंदर्य, अश्वारिया और दिव्यता इनके ही कारन है...

पापी लोग जो अपकर्म करते है, लड़ाई-झगडा, मारपीट, घृणा, द्वेष, पारस्परिक विरोध और निंदा आदी मे प्रवर्त्त होते है, वेह सब इनकी माया का प्रभाव है..
माता महालक्ष्मी अत्यंत दयामयी और कृपामयी है. उन्हें अपने भगत अत्यंत प्रिय है.. इस लिए वे माता पिता के समान उनका पालन करने के साथ साथ उनकी अभिलाषाए पूरण करती है...



जो लोग माता महालक्ष्मी की पूजा और ध्यान करते है, उनकी शरण मे रहते है, उन पर किरपा करने के लिए वे सदा व्याकुल रहती है
बोलो जय माँ लक्ष्मी की... जय
बोलो संचेदरबार की जय...
जय मेरी माँ राज रानी की जय...
हर हर महादेव...

संजय मेहता
जय माता दी जी


Sanjay Mehta

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