रविवार, 19 जून 2011

शतनामस्त्रोत्र:Sanjay Mehta, Ludhiana











हृषिकेश (इन्देरियो के स्वामी), केशव, मधुसुदन (मधु दैत्य को मारने वाले), सर्वदत्यसुदन (सम्पुरण दैत्यों के संहारक), नारायण, अनामय (रोग-शोक से रहित), जयंत, विजय, क्रिशन, अनंत, वामन, विष्णु, विश्वेश्वर, पुण्य, विशवात्मा, सुरार्चित ( देवताओ द्वार पूजत), अनघ (पापरहित), अघर्ता, नारसिंह, श्रीप्रिया (लक्ष्मी के प्रियतम) , श्रीपति, श्रीधर, श्रीद (लक्ष्मी प्रदान करनेवाले), श्रीनिवास, महोदय (महान अभुद्य्शाली), श्रीराम, माघव, मोक्ष, क्षमारूप , जनार्दन, सर्वज्ञ , स्र्व्वेक्ता, सर्वेश्वर, सर्वदायक , हरि , मुरारी, गोविन्द, पधाम्नाभ, प्रजापति, आनंद, ज्ञानसम्पन , ज्ञानद, ज्ञानदायक, सबल, चन्द्रवक्त्र , (चन्द्रमाँ के समान मनोहर मुखवाले ), व्याप्तपरावर , योगेश्वर , जग्ध्योनी, ब्रह्मरूप , महेश्वर, मुकुंद, वैकुण्ठ, एकरूप, कवि, ध्रुव, वासुदेव, महादेव, ब्रह्मण्य, ब्राह्मण-प्रिय, गोप्रिया, गोहित, यज्ञाग़ , याग्वर्धन , वेद-वेदांगपारग , वेदाज्ञ वेदरूप, विधावास, सुरेश्वर, प्रत्यक्ष , म्हाहंस, शंखपाणि , पुरातन, पुष्कर, पुष्कराक्ष, वराह, धरनीधर, प्रधुम्न, कम्पाल, व्यास्ध्यात, महेश्वर, स्र्व्सोख्य, म्हासौख्य , सांख्य, पुर्शोतम, योगरूप, महाज्ञान , योगीश्वर, अजित, प्रिय, असुरारी, लोकनाथ, पध्म्हस्त, गदाधर, गुहावास, सर्ववास, पुन्यवास , महाजन, व्रन्दानाथ , ब्रेह्त्काये, पावन, पापनाशन, गोपीनाथ, गोप्स्ख, गोपाल, गोग्नश्र्य, परात्मा, प्रधिश, कपिल तथा कर्यमनुष (संसार का उद्धार करने के लिए मानव-शरीर धारण करनेवाले) आदि नामो से प्रसिद्ध सर्वस्वरूप परमेश्वर को मै प्रतिदिन मन, वाणी तथा क्रियाद्वारा नमस्कार करता हु.. जो पुण्यात्मा पुरष शतनामस्त्रोत्र पढकर स्थिरचित से भगवान श्रीकृष्ण  की स्तुति करता है.. वह सम्पूर्ण दोषों का त्याग करके इस लोक मे  पुन्यस्व्रूप हो जाता है तथा अंत मे वह भगवान मधुसुदन के लोक को प्राप्त होता है.. यह शतनाम-स्तोत्र महान पुन्याका जनक और समस्त पातको की शुद्धी करने वाला है.. मनुष्य को ध्यान्युख होकर अनान्य्चित से इसका जप और चिंतन करना चाहिए.. प्रतिदिन इसका जप करनेवाले  को नित्यप्रति गंगास्नान का फल मिलता है.. इस लिए सुस्थिर और अकग्र्चित होकर इसका जप करना उचित है..

Sanjay Mehta

Jai Mata di G






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