शुक्रवार, 3 जून 2011

कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना..

















कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना..
जो रुखा - सुखा दिया हमें, कभी उसका भोग लगा जाना..

न छत्र बना सका सोने का.. ना चुनडी घर मेरे तारो जड़ी..
ना पेड़े , बर्फी, मेवा हे माँ बस श्रद्धा से नैन खड़ी..
इस श्रद्धा की रख लो लाज हे माँ..
इस अर्जी को ना ठुकरा जाना..
कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना..


जिस घर के दिए मे तेल नहीं.. वहा ज्योत जलाऊ मै कैसे..
मेरा खुद ही बिछोना धरती पर तेरी चौकी सजाऊ मै कैसे..
जहा मै बेठा वही बेठ के माँ.. बच्चो का दिल बहला जाना..
कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना..


तू भाग्य बनाने वाली हे माँ.. मै तकदीर का मारा हु..
हे दाती सम्भालो भिखारी को ... आखिर तेरी आँख का तारा हु..
मै दोषी तू निर्दोष हे माँ, मेरे दोषों को तुम भुला जाना..
कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना..

जय माता दी जी..
Sanjay Mehta, Ludhiana















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