दक्षयज्ञ दृष्टांत
इस प्रसंग में दक्षयज्ञ वाला उपाख्यान विचारणीय है। शंकर के तिरस्कार से भगवती दक्षायाणी को क्रोध हुआ और उसके क्रुद्ध होकर अपने प्राणो को त्यागने पर रूद्रगांाग्रणी वीरभद्र आदि के हाथो से यक्षयज्ञ का विध्वंस हो गया। इससे हमें यह सुंदर शिक्षा मिलती है कि ईश्वर के निरस्कार से शक्ति का नाश होता है और शक्ति का नाश होने पर हमारे सब काम सिर्फ बिगड़ ही नहीं जाते, बल्कि बिलकुल नष्ट- भ्रष्ट हो जाते है - अब कहिये जय माता दी जी
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