शनिवार, 4 जनवरी 2014

जमनादास भक्त का एक दृष्टांत: Sanjay Mehta Ludhiana








'२५२ वैष्णवन की वार्ता' में जमनादास भक्त का एक दृष्टांत है। एक बार वे ठाकुरजी के लिए फूल लेने के लिए बाजार में निकले। माली की दूकान पर एक अच्छा सा कमल देखा . उन्होंने सोचा कि आज अपने ठाकुरजी के लिए यही सुंदर कमल ले जाऊं। इसी समय वहाँ एक यवनराज आया जो एक स्त्री के लिए फूल लेना चाहता था। जमनादास भक्त ने उस कमल फूल की कीमत पूछी तो माली ने कहा कि पांच रूपये का है इसकी कीमत , तो यवनराज ने बीच में ही कह दिया कि मै इस फूल के लिए दस रूपये दूंगा , तू यह फूल मुझे ही दे। तब उस जमनादास भक्त ने कहा कि मै पच्चीस रूपये देने को तैयार हु , फूल मुझे ही देना। इस प्रकार फूल लेने के लिए दोनों के बीच होड़-सी लग गई।

यवनराज ने दस हजार की बोली लगाई तो भक्त जमनादास ने कहा कि एक लाख। स्त्री के लिए यवनराज को वैसा कोई सच्चा प्रेम नहीं था , केवल मोह था। उसने सोचा की मेरे पास लाख रूपये होंगे तो कोई दूसरी स्त्री भी मिल ही जायेगी पर उधर जमनादास भक्त के लिए तो ठाकुर जी सर्वस्व थे . उनका प्रभु - प्रेम सच्चा था , शुद्ध था। उन्होंने अपनी सारी सम्पति बेच दी और लाख रूपये में वह कमल फूल खरीद कर श्री नाथ जी की सेवा में अर्पित कर दिया। फूल अर्पित करते ही श्री नाथ जी के सिर से मुकुट नीचे गिर गया। इस प्रकार भगवान् ने बताया कि भक्त के इस फूल का वजन मेरे लिए अत्यधिक है --- अब कहिये जय माता दी जी









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