गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

अम्बिकास्थान : Ambikasthaan : Sanjay Mehta Ludhiana











अम्बिकास्थान


श्री दुर्गासप्तशती में वर्णित राजा सुरथ और समाधि वैश्य का नाम प्राय: सब लोग जानते ही है। . राजा अपने शत्रुओं से हारकर और मंत्री - पुत्रादि द्वारा राज सिंहासन से उतार दिए जाने पर , तथा समाधि अपने पुत्रो द्वारा घर से निकाले जाने पर एक ही स्थान में पहँुचे और दोनों आदमी साथ ही मेधस मुनि के आश्रम में गये। वहाँ मुनि को उन लोगो ने अपनी कष्टकहानी सुनायी और उपदेश के लिए प्रार्थना की। मुनि ने उन लोगो को जीवन का वास्तविक रूप और सच्चा ज्ञान बतलाया और उन्हें महामाया आद्यशक्ति की शरण में जाने की सलाह दी , बस वहाँ से वे दोनों किसी नदी के तट पर एक गहन वन में चले आये और जगन्माता की एक मिटटी की मूर्ति बनाकर उनकी आराधना और तपस्या करने लगे, जहाँ अंत में भगवती अम्बिका ने साक्षात प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिए और उनकी मनोकामना पूरी की
यह दिघवारा (सारन) स्टेशन से दो ढाई मील पश्चिम गंगातट पर है , जहा आज भी अम्बिकाजी का भव्य मंदिर वर्त्तमान है यही महिमयी देवी कहलाती है , कोई कोई इन देवी जी का स्थान खरीद में बतलाते है। अब कहिये जय माता दी जी







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