कुछ शताब्दियों पहले मन्दसोर के सेठ अखौरी राम जी व्यापारी बिसानगर वैश्य का जहाज रात्रि के समय तूफ़ान आने के कारण समुन्द्र में डूबने लगा। तब सेठजी ने अम्बा जी को याद किया और अपनी सम्पत्ति का आधा हिस्सा जगदम्बा के दरबार में अर्पण करने का संकल्प किया। इतना करते ही भगवती ने त्रिशूल के द्वारा जहाज को उठाकर तुरंत किनारे लगा दिया और उसी रात को पूजारी को यह वृतांत सूचित कर पौशाक बदल देने की आज्ञा दी। पूजारी ने मंदिर खोलकर देखा तो माताजी की पोशाक भींग रही थी और त्रिशूल कुछ टेढ़ा हो रहा था। कपडे निचोड़कर आचमन लेने पर जल खारा लगा। आबू के पास खारा पानी कहाँ से आता ? माता जी के दिए हुए स्व्प्न और प्रत्यक्ष की इस घटना की खबर दांतामहराज को दी गयी। दांतामहराज वहाँ आये। इक्कीस दिनों के बाद सेठ अखैराम वहाँ आ पहुंचे और उन्हों ने सम्पत्ति का आधा भाग माता की सेवा में अर्पण किया। हवन कराकर माताजी को एक हीरा भेंट किया जो अभी तक श्रृंगार में चढ़ता है। और उनकी और से अखंड घृतदीप प्रारम्भ किया गया जो उनके वंशजो द्वारा अबतक जारी है
अब कहिये जय माता दी जी
|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें