गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

आरासुरी अम्बिकाजी : Aarasuri Ambika Ji : Sanjay Mehta Ludhiana








आरासुरी अम्बिकाजी

पुराणो में लिखा है कि श्री विष्णुभगवान के चक्र से कट-कटकर देवी के देह के पृथक - पृथक अवयव भूतल पर स्थान-स्थान पर गिरे और गिरते ही वे पाषाणमय हो गये। भूतल के ये स्थान महातीर्थ और मुक्तिक्षेत्र हो गये। ये सिद्धपीठ कहलाते है और देवताओं के लिए भी दुर्लभ परदेश है। अर्बुदारण्य प्रदेश के आरासुर (आरसन) नाम के रमणीय पर्वत शिखर पर श्री अम्बिकाजी का भुवनमोहन स्थान विद्यमान है। यहाँ सतीके ह्रदय का एक भाग गिरा था। अतएव उसी अंग कि पूजा अब भी होती है

छोटे छोटे बच्चे भी श्री माता जी की कृपा से पैदल आनंदपूर्वक खेलते-कूदते चले जाते है , मार्ग में बालको कि 'जय अम्बे, जय अम्बे' कि ध्वनि बहुत ही प्यारी लगती है। आबूरोड स्टेशन से तीन मील की दूरीपर एक तेलिया नामक नदी मिलती है। जिसको तेल लगाना या तेल का बना हुआ पदार्थ खाना होता है , वह यही लगा -खा लेता है क्युकि इसके आगे तेल का व्यवहार बिलकुल ही नहीं होता। इसके आगे बारह मील की दूरी पर पर्वत की तलहटी में बसे हुए घर मिलते है , जिसे श्री अम्बिकाजी का नगर कहते है , नगर में प्रवेश करने पर श्री हनुमान मंदिर तथा भैरव मंदिर मिलता है।

आरासुर पर्वत के सफेद होने के कारण श्री अम्बिका जी 'ढोल गढ़वाली' माता के नाम से पुकारी जाती है , भगवती जी का मंदिर संगमरमर पत्थर से बना हुआ है और बहुत ही प्राचीन है

गुजरात प्रांत भर के बच्चो का मुंडन संस्कार प्राय: यहाँ ही होता है। कहते है कि श्री कृष्ण भगवान् का मुंडन - संस्कार यही हुआ था। गुजरात में कदाचित ही कोई ग्राम होगा जहाँ इस पीठ के उपासक ना हो। उपासको में केवल हिन्दू ही नहीं , बल्कि पारसी, जैन और मुसलमान आदि भी है। यहाँ पर सहस्त्रो मनुष्यों कि कामनाये माता जी कि कृपा से पूरी हो जाती है। पुत्रहीनो को पुत्र की प्राप्ति होती है , धनहीनों को धन की , रोगियो को स्वास्थ्य कि प्राप्ति होती है। मनौती करनेवाले कि जब मनोकामना पूरी हो जाती है तो वह जब तक श्री माता जी का दर्शन नहीं कर लेता, तबतक कोई नियम ले लेता है और प्राणपण से उसका पालन करता है

मंदिर में जिनका पूजन होता है , वे महादेव जी कि पत्नी हिमाचल और मैना जी की पुत्री दुर्गा देवी है। इनको 'भवानी' अर्थात काम करने के शक्ति या 'अम्बा' यानि जगत की माता भी कहते है , यह मंदिर बहुत प्राचीन है। आंगन में जो चौके जड़े हुए है , वे इतने घिस गये है कि उन्हें देखकर सहज ही मालुम हो जाता है कि मंदिर कितना पुराना है और कितने लोग माताजी के दर्शन करने आते है

माता जी का दर्शन सबेरे ८ बजे से लेकर १२ बजे तक होता है , भोजन का थाल रखने के बाद बंद हो जाता है और फिर शाम को सूर्यास्त के समय बड़े ठाट के साथ आरती होती है। उस समय बहुत भीड़ होती है। मंदिर में बेशुमार छत्र और सभामंडप में बहुत से घंटे लटकते हुए दिखायी देते है , जिन्हे श्रद्धालु यात्रियों ने लगवाया है। आरती के समय दर्शनार्थी यात्री इन सब घण्टो को बजाते हुए ध्यानमग्न हो जाते है

माता जी को तीनो समय तीन तरह कि पोशाक पहनायी जाती है। इससे वे सबेरे बाला, दोपहर को युवा और शाम को वृद्धा के रूप में दिखायी देती है। इसी से कहा गया है

जैसे दिल से देख लो , देखो वैसा रूप।
ब्र्हमरूप से देखकर देखो बरह्मसवरूप।।

वास्तव में माता जी की कोई आकृति नहीं है, केवल एक बीसायंत्र है , जो श्रंगार कि विभिन्नता के कारण ऐसा दिखायी देता है।

जब तक यात्री माता जी के दरबार में रहते है , तबतक खाने, जलाने और सिर में लगाने के काम में तेल कि जगह घी का ही व्यवहार किया जाता है। पति -पत्नी साथ आने पर भी यहाँ जबतक रहते है , ब्र्हमचार्य का पालन करते है

रजसवला स्त्री और सूतक लगे हुए लोग माता जी के चाचर में नहीं जा सकते। ऐसे लोगो के रहने के लिए अलग धर्मशालाएं बनी है। यदि कोई रजसवला स्त्री चाचर में चली जाती है तो रात के समय जलते हुए घी में धड़ाका होने लगता है और उसमे से ज्वाला और धुआं निकलने लगता है , जब रजसवला स्त्री वहाँ से चली जाती है तब ये उपद्रव शांत हो जाते है , इसी प्रकार दिन के समय माता जी के मंदिर पर लगे हुए तीनो त्रिशूल डोलने लगते है (अब कहिये जय माता दी जी )


माता जी को थाल रखने वालो को कोठारी से पहले ही आज्ञा पत्र लेना पड़ता है , आज्ञा पत्र मिल जाने पर पूजारी एक चांदीका बरतन देता है और उसी में रखकर भोग की सामग्री एक निश्चित समय पर ली जाती है।

माता जी के चाचर में हिन्दू के सिवा अन्य कोई जाति का कोई आदमी नहीं जा सकता। कुछ समय पूर्व एक यूरोपियन सज्जन आये थे। कहते है कि रोके जाने पर भी उन्होंने माता जी की परीक्षा के लिए चाचर पर जाना चाहा। वे सीढ़ियों पर चढ़ ही रहे थे कि अकस्मात ऐसे गिरे मानो किसी ने उठाकर नीचे फेंक दिया हो। उनको बड़ा आश्चर्य हुआ। तब से ऐसे अन्यधर्मी सज्ज्नों के दूर से दर्शन कि सुविधा के लिए सामने चाचर से दूर एक ऊँची बैठक बना दी गयी है , वहाँ से ये लोग दर्शन कर सकते है। (अगर कोई गलती हो तो क्षमा प्रार्थी है जय माता दी जी फिर से कहिये जय माता दी जी )












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