महाभारत में सत्यदेव राजा की कथा है। लक्ष्मी चंचल है। वह किसी -न-किसी पीढ़ी के हाथो से चली है जायेगी। एक दिन प्रात:काल सत्यदेव जब जगा तो अपने घर से एक सुंदरी को बाहर जाते हुए देखा। राजा को आश्चर्य हुआ। उसने स्त्री से पूछा कि वह कौन है। उसने उत्तर दिया कि मेरा नाम लक्ष्मी है, मै अब तेरे घर से जा रही हु। राजा ने अनुज्ञा दी।
कुछ देर बार एक सुंदर पुरष घर से निकला। राजा ने जब उससे पूछा कि वह कौन है, तो उसने कहा कि वह दान है। जब लक्ष्मी जी यहाँ से चली गयी तो तुम दान कैसे कर सकोगे? सो मै लक्ष्मी के साथ ही जा रहा हु। राजा ने उसे भी जाने दिया। फिर एक तीसरा पुरष बाहर जाने लगा . उसने बतया कि वह सदाचार है, जब लक्ष्मी और दान ही ना रहे तो मै रहकर क्या करूँगा। राजा ने उसे भी जाने कि अनुमति दे दी। फिर एक सुंदर पुरष को बाहर जाते हुए देखा। पूछने पर उसने अपना नाम बतया कि वह यश है। वह बोलो - 'जहाँ लक्ष्मी , दान, और सदाचार ना हो वहाँ मै नहीं रह सकता ' राजा ने उसे भी जाने दिया।
कुछ देर बार एक और सुंदर युवक घर से निकलकर जाने लगा। पूछने पर उसने अपना परिचय दिया वह सत्य है। जब आपके यहाँ लक्ष्मी , दान , सदाचार और यश नहीं रहे तो मै अकेला कैसे यहाँ रहूँगा ? मै भी उनके साथ जाऊँगा , तो सत्यदेव राजा ने कहा कि मैंने तो आपको कभी छोड़ा ही नहीं फिर आप मुझे क्यों छोड़कर जा रहे हो। आपकोअपने पास रखने के लिए ही मैंने लक्ष्मी - यश आदि का त्याग किया है। मै आपको जाने नहीं दूंगा . आप मुझे छोड़कर चले जायेंगे तो मेरा तो सर्वस्व लुट जायेगा। राजा कि इस प्रकार कि प्रार्थना के कारण सत्य नहीं गया और जब सत्य ही नहीं गया तो लक्ष्मी , दान, सदाचार और यश भी राजा के घर वापस लौट आये।
जहाँ सत्य होता है , वहाँ लक्ष्मी, दान, सदाचार और यश को आना ही पड़ता है , बिना सत्य के ये सब व्यर्थ है। इसलिए यह सपष्ट है कि सत्य ही सर्वस्व है बाकी कि चार सम्पत्तियां चली जाए तो कोई चिंता नहीं, किन्तु सत्य नहीं जाना चाहिए, सत्य रहेगा तो सब कुछ रहेगा। राजा हरिश्चंद्र जी ने सत्य का साथ नहीं छोड़ा , धर्मराज युधिष्टर जी ने सत्य का साथ नहीं छोड़ा। जय माता दी जी
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