सोमवार, 16 दिसंबर 2013

श्री बाला बहुचराजी : Shree Bala Bahucharji Maa : Sanjay Mehta Ludhiana








श्री बाला बहुचराजी

चुवाल में गायकवाड़ सरकार की सीमा में श्री बहुचराजी विराजमान है। अहमदाबाद से मेहसाना होते हुए श्री बहुचराजी स्टेशन तक जाना होता है। श्री माता जी के स्थान तक जाते समय रास्ते में एक बहुत बड़ा तालाब आता है। उसके आगे श्री माताजी के कोटका दरवाजा है , उसके बाद मानसरोवर आता है , जिसमे स्नान करके यात्री श्री माताजी का दर्शन - पूजन करते है।

श्री कृष्ण के जन्मसमय यशोदाजी कि मायारूपी जो पुत्री देवकी के पास आयी थी उसी बाला के नाम पर श्री बालाजी का नाम प्रसिद्ध है , बहुतेरे राक्षसो को भक्षण करके विचरण करने के कारण बहुचरी नाम पड़ा है। श्री बाला जी के पीठस्थान के चमत्कार के संबंध में बहुत से कथाये प्रचलित है (माँ संजय का प्रणाम स्वीकार करो माँ )

१. अल्लाउद्दीन द्वितीय ने पाटणको जीतकर गुजरात में हिंदुओं के मंदिरो को तोडना शुरू किया . उसने सिद्धपुर के प्रसिद्ध रुद्रमाल को तोड़ डाला। बहुचराजी की ख्याति सुनकर वह उनको तोड़ने के लिए अपनी सेनाके साथ आया। माताजी का वाहन कुक्कुट (मुर्गा) माना जाता है। माता जी के बहुतेरे मुर्गे वहाँ फिर रहे थे। मुसलमानो ने उन्हें पकड़कर मारकर खा लिया। केवल एक मुर्गा वहाँ उनकी भूल से बच गया। रात होने पर जब सब मुसलमान सो गये, तब वह बचा हुआ मुर्गा 'कुकडूँ-कू -कुकडूँ-कू बहुचरी की ' कहकर बाँग देने लगा। इसपर जितने मुर्गे मारे गये थे सब मुसलमान सैनिको के पेटों में 'कुकडूँ-कू -कुकडूँ-कू' बोलने लगे और उनके पेट फाड़-फाड़कर बाहर निकल आये। इस चमत्कार को देखर बाकी मुसलमान - सेनाभाग खड़ी हुई। अब कहिये जय माता दी जी . दूसरी कथा कल तब तक के लिए जय माता दी जी


एक दूसरी चमत्कार की कथा इस प्रकार है। एक सोलंकी वंश के राजा को कोई संतान ना थी। रानी ने एक लड़की के जन्म लेने पर राजवंश के चालु रखने के लिए घोषित कर दिया कि कुंवर उतपन्न हुआ है। और उसका नाम तेजमल रख दिया गया। उसके बड़े होने पर पाटण के चावड़ा वंश के राजा कि लड़की से उसकी शादी हुई . जब लड़की ससुराल आयी तो उसे पता चला कि उसका पति पुरष नहीं , बल्कि स्त्री है। पीछे मैके जाने पर उसने सारी बाते वहाँ कह सुनायी। वहाँ वालों ने कुवर कि परीक्षा करने के विचार उसे उसे बुलाया। नकली कुंवर अपने श्वशुर के यहाँ जाने से पहले तो बहुतेरे बहाने करता रहा . पर अंत में लाचार होकर एक घोड़ी पर सवार होकर चला। वहाँ उसकी परीक्षा के लिए खुले स्थान में ठहराने का प्रबंध किया गया था। कुवरि घबड़ाया और अपनी प्रतिष्ठा बचाने के ख्याल से बहना करके वहाँ से अपनी घोड़ी पर सवार हो भाग निकली। पकडे जाने के भय से वह घोड़ी को बड़ी ही तेजी से दौड़ाती ले जा रही थी। उसके पीछे पीछे उसकी एक कुतिया भी दौड़ी चली जा रही थी। चैत्रमास की कड़ी धुप थी। वह बेचारी आफत कि मारी चुवाल के उष्ण परदेश में दौड़ती चली जा रही थी। इतने में एक तालाब रास्ते में दिखलायी दिया। वहाँ उसने घोड़ी को पानी पिलाने के लिए खड़ा किया और सवयंविश्राम करने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठ रही। इतने में कुतिया थकी-मांदी दौड़ती हुई आ पहंची और पानी देखकर तालाब में घुस गयी। जब वह पानी से बहार निकली तो कुवरि को यह देखर बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि वह कुतिया कुत्ता बन गयी थी। उसने अपनी घोड़ी को भी परीक्षा के लिए पानी में उतारा और जब उसे घोड़े के रूप में बदलते देखा तो उसने सवयं कपडे उतारकर एक डुबकी उस तालाब में लगायी और श्री बहुचरा माता के परताप से तुरंत पुरषरूप में परिणत हो गयी। वही तालाब आजकल मानसरोवर के नाम से प्रसिद्ध है। अब कहिये जय माता दी जी











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