याचना
तुम तो अपार महासागरमयी हो शांत
धुलिमें पड़ा मै दूर छोटा-सा-फुहारा हु।
चाह मिलने की है , अथाह बननेको , किन्तु-
संपदन -प्रवाह-हीन दीन बे-सहारा हु।।
साध पूर्ण कैसे हो? अबाध गति मेरी नहीं
एक आध पलका पथिक पड़ा हारा हु।
आकर समोद मुझे गोद में बिठा लो माँ अंब
दोषी हु मनुज किन्तु तनुज तुम्हरा हु।
जय माता दी जी
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Sanjay Mehta
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