गुरुवार, 17 जनवरी 2013

भगवान् मायापति है : Jai Mata Di G : Sanjay Mehta Ludhiana









भगवान् मायापति है, इस हेतु भगवान् के नाम के साथ उनकी माया का भी नाम होना आवश्यक है। शक्ति शक्तिमान से भिन्न नहीं है और ना वह कभी शातिमान को छोड़कर रह ही सकती है। दोनों का नाम एक साथ मिलकर उच्चारण करने की प्रथा प्राय: सभी सम्प्रदायों में देखि जाती है। नारायण जी ने नारद जी से कहा है। कि प्रकृति जगत की माता है तथा पुरष जगत के पिता है। तीनो लोको की माता का दर्जा पिता से सौगुना अधिक है, इससे 'हे राधाकृष्ण , हे गौरीशंकर हे सीताराम' ऐसे प्रयोग वेदों में मिलते है। 'हे कृष्णराधे , हे ईश्गौरी , हे रामसीता ' यह कोई नहीं कहता है। जो पहले पुरष के नाम का उच्चारण करता है, वह मनुष्य वेदवाक्य का उल्लंघन करनेवाला पापी होता है। जो आदि में राधा का नाम लेकर पश्चात परात्पर कृष्ण का नाम लेता है, वही पंडित , योगी अनायास ही गोलोक को प्राप्त करता है .
भगवान् का नाम चलते-फिरते, दिन-रात , उठते-बैठते, जैसे हो वैसे ही जपना चाहिए इसमें कोई बाधा नहीं है। नाप-जप में किसी नियम-संयम की आवश्यकता नहीं है, और देश-काल का भी विचार नहीं है। मनुष्य केवल राम -नाम के कीर्तन से मुक्त हो जाता है। यज्ञ में, दान में, स्नान में, तहत जप में भी काल का विचार है। किन्तु विष्णु के कीर्तन में काल का विधान बिलकुल नहीं है। घूमता हुआ, बैठा हुआ, सोता हुआ, पीता हुआ, खाता हुआ, और जपता हुआ कृष्ण नाम के संकीर्तन मात्र से मनुष्य पाप से मुक्त हो जाता है। बैठे हुए, सोते हुए, खाते हुए, खेलते हुए तथा चलते-फिरते सदा राम का ही चिंतन करते रहना चाहिए।

www.facebook.com/groups/jaimatadig
www.facebook.com/jaimatadigldh
www.jaimatadig.blogspot.in
ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
♥♥ (¯*•๑۩۞۩:♥♥ ......Jai Mata Di G .... ♥♥ :۩۞۩๑•*¯)♥♥
ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
Sanjay Mehta








कोई टिप्पणी नहीं: