गुरुवार, 10 जनवरी 2013

माता का विराट रूप : Mata G ka Viraat Roop : Sanjay Mehta Ludhiana








माता का विराट रूप


आँखे मूँद कर मनन कीजिये कि हजारों कमल-पुष्प एकदम खिल उठे। सोचिये कि एक हजार सूर्य, एक ही आकाश-मंडल में एक साथ उदय हो गए ऐसा ही उसका रूप, ऐसा ही उसका तेज सूर्य और चन्द्र उसके दोनों नेत्र है नक्षत्र आभूषण है, हरी भरी धरा का सिंहासन और नीला आकाश उस पर छत्रछाया है। सिन्दूरी लाल सुए फूलों में उसका रूप झलकता है। अस्ताचल को जाते हुए रक्तवर्ण सूर्य में भी वही दीप्तिमान है। हिमपात के कारण सफेद चादर से ढके हुए पर्वतों में विराजमान है, श्वेत हंस-वाहन पर श्वेत-वस्त्र धारण किये सरस्वती के रूप में शोभायमान है, स्त्रियों की लज्जा में, योद्धाओ के आक्रोश में और विकराल काल-ज्वाला की लपटों रूपी जिव्हा में दमक रही है, जैसे किसी शिशु को स्तनपान करते हुए अपनी ममतामयी माँ का स्नेह मिल रहा हो। त्रिपुर-सुन्दरी के रूप में अद्वितीय सम्मोहन है और महाकाली के रूप में नरमुंडो की माला पहने भयानक नृत्य करती है। यद्यपि वह निर्गुण है तथापि समय -समय पर दुष्टों के नाश के लिए अवतार धारण करती है।
जय माता दी जी
जय माँ वैष्णो देवी
जय माँ दुर्गे
जय माँ राज रानी

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♥♥ (¯*•๑۩۞۩:♥♥ ......Jai Mata Di G .... ♥♥ :۩۞۩๑•*¯)♥♥
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Sanjay Mehta







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