माता महालक्ष्मी की पिंडी
डुग्गर के शतश्रंग पर्वत के त्रिकुट शिखर पर माता वैष्णो देवी विराजमान है। इस पर्वत की पवित्र गुफा में जो तीन पिंडियाँ है, उनमे मध्यवर्ती पिंडी माता महालक्ष्मी की है, और महालक्ष्मी विष्णु की शक्ति है। अत: इनका दूसरा नाम वैष्णवी भी है।
यह वैष्णवी पराशक्ति है
परमात्मा की और भी नानाविध शक्तियां है। इन अनेक शक्तियों में श्री विष्णु की अहन्त नाम की एक शक्ति है, वह महालक्ष्मी है।
एक स्थान पर स्वयं महालक्ष्मी ने इंद्र से कहा - "उस पारब्रह्म की, जो चन्द्रमा की चांदनी की तरह समस्त अवस्थाओ में साथ देने वाली परमशक्ति है, वह स्नान्तनी शक्ति मै ही हू . मेरा दूसरा नाम नारायणी भी है, मै नित्य, निर्दोष, सीमारहित कल्याण गुणों वाली नारायणी नाम वाली, वैष्णवी परासत्ता हु।
पुरातन शास्त्रों के अनुसार जो देवी परम शुद्ध सत्व-स्वरूपा है , उनका महालक्ष्मी है।
हजार पंखुड़ियों वाला कमल उनका आसन है। इनके मुख की शोभा तपे हुए स्वर्ण के समान है, और इनका रूप करोड़ों चन्द्रमाओं की कांति से सम्पन्न है।
माता महालक्ष्मी के मुख पर सदैव मुस्कान व्याप्त रहती है
सम्पत्तियों की इश्वरी होने के कारन अपने सेवकों को ये धन ऐश्वर्या , सुख, सिद्धि और मोक्ष प्रदान करती है। भगवन श्रीहरि की माया तथा उनके तुल्य होने के कारन इन्हें नारायणी कहा जाता है।
वैष्णवी और दुर्गा इनके दुसरे प्रसिद्ध और प्रमुख नाम है
जैसे नदियों में गंगा, देवताओं में श्रीहरि तथा वैष्णवों में शिव श्रेष्ठ स्वीकार किये गए है, उसी प्रकार देवी के सभी नाम रूपों में वैष्णवी नाम से प्रसिद्ध महालक्ष्मी श्रेष्ठ है।
माता महालक्ष्मी अत्यंत सुंदर, सयंमशील, शांत, मधुर और कोमल स्वभाव की है।
क्रोध, लोभ, मोह, मद, अहंकार आदि से रहित अपने भक्तों पर कृपा करते रहना और अपने स्वामी श्रीहरि से प्रेम करना उनका स्वभाव है, वे मधुर और प्रिय लगने वाले वंचन ही बोलती है।
कभी अप्रिय वचन नहीं कहती
वे कभी क्रोध और हिंसा नहीं करती
सारा संसार, सारी सम्पत्तियां इनके स्वरूप है। संसार में जितने भी प्रकार के अन्न, फल-फुल, वनस्पतियाँ आदि खाद्या पदार्थ है, जिससे प्राणियों के जीवन की रक्षा होता है, सब इनके ही रूप है।
जिस धन से मानव-मात्र का सांसारिक कार्य-व्यापार संचालित होता है, उसकी यह अधिष्ठात्री देवी है। लक्ष्मी से हीन, दरिद्र व्यक्ति का जीवन, जीते हुए भी मृत के समान होता है और जिस पर लक्ष्मी की कृपा होती है, वह सुखी और सम्मानित जीवन व्यतीत करता है।
जो लक्ष्मी से हीन है, वह भाई-बन्धुओं और मित्रो से हीन है। जो लक्ष्मी से युक्त है, वह भाई-बन्धुओं और मित्रो से घिरा रहता है। माता महालक्ष्मी की कृपा से ही मानव की शोभा होती है।
जिस पर इनकी कृपा हो जाये वह सुखी और निश्चित जीवन बिता सकता है, धर्म, काम और मोक्ष उसके लिए सुलभ हो जाते है।
ये शक्ति सबकी कारन रूप है। सर्वोच्च पवित्रता है वैकुण्ठ-लोक में अपने स्वामी श्रीहरि की सेवा में लीन रहती है। ये देवी वैकुण्ठ में महालक्ष्मी, क्षीरसागर में ग्रेहलक्ष्मी , व्यपिरकों के यहाँ पर व्यापार लक्ष्मी, ग्राम-ग्राम के ग्राम देवी तथा घरघर में महादेवी के रूप में रहती है .
संसार के सभी प्राणियों और वस्तुओं में ये शोभा के रूप में विद्यमान है, संसार में दृष्टिगोचर होने वाला सौन्दर्य, ऐश्वर्या और दिव्यता इनके ही कारण है।
माता महालक्ष्मी अत्यंत दयामयी और कृपामयी है। उन्हें अपने भक्त अत्यंत प्रिय है। इसलिए वे माता-पिता के समान उनका पालन करने के साथ-साथ उनके अभिलाषाये पूर्ण करती है।
जो लोग माता महालक्ष्मी की पूजा और ध्यान करते है, उनकी शरण में रहते है, उन पर कृपा करने के लिए वे सदा व्याकुल रहती है।
अब कही जय माता दी
माँ मेरी महालक्ष्मी आप सब पर अपनी कृपा करे
जय माँ दुर्गे , जय माँ राजरानी
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Sanjay Mehta
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