शनिवार, 29 दिसंबर 2012

देवी के नो अवतारों की कथा Devi ke 9 Avtaro Ki Katha : Sanjay Mehta Ludhiana








देवी के नो अवतारों की कथा

1. महाकाली

एक बार जब पूरा संसार प्रलय से ग्रस्त हो गया था। चारों और पानी ही पानी दिखाई देता था। उस समय भगवान् विष्णु की नाभि से एक कमल उत्पन्न हुआ। उस कमल से ब्रह्मा जी निकले इसके अतिरिक्त भगवान नारायण के कानों में से कुछ मैल भी निकला, उस मैल से कैटभ और मधु नाम के दो दैत्य बन गए। जब उन दैत्यों ने चारो और देखा तो ब्रह्मा जी के अलावा उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दिया ब्रह्माजी को देखकर ये दैत्य उनको मारने दौड़े। तब भयभीत हुए ब्रह्माजी ने विष्णु भगवन की स्तुति की।
ब्रह्मा जी की स्तुति से विष्णु भगवान् की आँखों से जो महामाया योगनिन्द्रा के रूप में निवास करती थी। वह लोप हो गई। और भगवान् विष्णु जी की नींद खुल गई। उनके जागते ही वे दोनों दैत्य भगवान् विष्णु से लड़ने लगे इस प्रकार पांच हजार वर्ष तक युद्ध चलता रहा अंत में भगवान् की रक्षा के लिए महामाया ने असुरो की बुद्धि को बदल दिया। तब वे असुर विष्णु भगवन से बोले - हम आपके युद्ध से प्रसन्न है जो चाहो वर मांग लो। भगवान् ने मौका पाया और कहने लगे। यदि हमें वर देना है तो यह वर दो कि दैत्यों का नाश हो। दैत्यों ने कहा - एस ही होगा ऐसा कहता ही महाबली दैत्यों का नाश हो गया। जिसने असुरों की बुद्धि को बदला था। वह 'महाकाली थी'
जय माँ महाकाली

2. महालक्ष्मी


एक समय महिषासुर नमक एक दैत्य हुआ। उसने समस्त राजाओं को हराकर पृथ्वी और पाताल पर अपना अधिकार जमा लिया। जब वह देवताओ से युद्ध करने लगा तो देवता उससे युद्ध में हारकर भागने लगे। भागते-भागते वे भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उस दैत्य से बचने के लिए स्तुति करने लगे। देवताओं की स्तुति करने से भगवान् विष्णु और शंकर जी जब प्रसन्न हुए। तब उनके शरीर से एक तेज निकला, जिसने महालक्ष्मी का रूप धराण कर लिया, इन्ही महालक्ष्मी ने महिषासुर दैत्य को युद्ध में मारकर देवताओं का कष्ट दूर किया
जय माँ महालक्ष्मी


3. महासरस्वती

एक समय शुम्भ-निशुम्भ नाम के दो दैत्य बहुत बलशाली हुए थे उनसे युद्ध में मनुष्य तो क्या देवता तक हार गए जब देवताओ ने देखा कि अब युद्ध में नहीं जीत सकते तब वह स्वर्ग छोड़कर भगवान विष्णु की स्तुति करने लगे उस समय भगवान् विष्णुके शरीर में से एक ज्योति प्रकट हुई जो कि महासरस्वती थी महासरस्वती अत्यंत रूपवान थी। उनका रूप देखकर वे दैत्य मुग्ध हो गए और अपना सुग्रीव नाम का दूत उस देवी के पास अपनी इच्छा प्रकट करते हुए भेज उस दूत को देवी ने वापिस कर दिया इसके बाद उन दोनों ने देवी को बलपूर्वक लाने के लिए सेनापति धूम्राक्ष को सेना सहित भेज, जो देवी द्वारा सेना सहित मार दिया गया इसके बाद रक्तबीज लड़ने आया, जिसके रक्त की एक बूंद जमीन पर गिरने से एक वीर और पैदा होता था वह बहुत बलवान था। उसे भी देवी ने मार गिराया अंत में शुम्भ-निशुम्भ स्वयं दोनों लड़ने आये और देवी के हाथों मारे गए।
अब बोलिए जय माँ महासरस्वती की
जय माँ राज रानी की

4. योगमाया --


जब कंस ने वासुदेव-देवकी के छ: पुत्रो का वध कर दिया था और सातवे गर्भ में शेषनाग बलराम जी आये, जो रोहिणी के गर्भ में प्रविष्ट होकर प्रकट हुए, तब आठवां जन्म कृष्ण जी का हुआ। साथ - साथ गोकुल में यशोदा जी के गर्भ से योगमाया का जन्म हुआ। जो वासुदेव जी के द्वारा कृष्ण के बदले मथुरा में लाई गई थी।
जब कंस ने कन्या-स्वरूप उस योगमाया को मारने के लिए पटकना चाहा तो वह हाथ से छुट गई और आकाश में जाकर देवी का रूप धारण कर लिया। आगे चलकर इसी योगमाया ने कृष्ण के साथ योगविद्या और महाविद्या बनकर कंस, चाणूर आदि शक्तिशाली असुरों का संहार किया
अब बोलिए जय माँ योगमाया जी की
जय माँ राजरानी की

5. रक्त-दंतिका

एक बार वैप्रचित्ति नाम के असुर ने बहुत से कुकर्म करके पृथ्वी को व्याकुल कर दिया। उसने मनुष्य ही नहीं बल्कि देवताओ तक को बहुत दुःख दिया। देवताओ और पृथ्वी की प्रार्थना पर उस समय देवी ने रक्त-दंतिका नाम से अवतार लिया और वैप्रचित्ति आदि असुरों का मान मर्दनकर दाल। भयंकर दैत्यों का भक्षण करते समय देवी के दांत अनार के फुल के समान लाल हो गए। इसी कारण से इनका नाम रक्त-दन्तिका विख्यात हुआ।

अब कहिये जय माता दी
जय माँ रक्त-दन्तिका
जय माँ राज रानी की

6. शाकुम्भरी


एक समय पृथ्वी पर लगातार सौ वर्षो तक पानी की वर्षा ही नहीं हुई। इस कारण चारो और हा-हाकार मच गया। सभी जीव भूख और प्यास से व्याकुल हो मरने लगे। उस समय मुनियों ने मिलकर देवी भगवती की उपासना की। तब जगदम्बा ने शाकुम्भरी नाम से स्त्री रूप में आवतार लिया और उनकी कृपा से जल की वर्षा हुई, जिससे पृथ्वी के समस्त जीवों को जीवनदान प्राप्त हुआ। वृष्टि ना होने के पहले तक देवी ने प्राणों की रखा में समर्थ शाकों द्वारा सम्पूर्ण जगत का भरन-पोषण किया, जिससे 'शाकुम्भरी' नाम प्रसिद्ध हुआ।
अब कहिये जय माता दी
जय माँ शाकुम्भरी देवी
जय माँ राज रानी

7. श्री दुर्गा


एक समय भारतवर्ष में दुर्गम नाम का राक्षस हुआ उसके डर से पृथ्वी ही नहीं, स्वर्ग और पाताल में निवास करने वाले लोग भयभीत रहते थे। ऐसी विपति के समय ने भगवान् की शक्ति ने दुर्गा या दुर्गसेनी के नामसे अवतार लिया और दुर्गम राक्षस को मारकर ब्राह्मणों और हरी-भक्तो की रक्षा की। दुर्गम राक्षस को मारने के कारन ही तीनो लोकों में उनका नाम दुर्गा प्रसिद्ध हो गया।
अब कहिये जय माता दी
जय माँ दुर्गा देवी की
जय माँ राज रानी

8. भ्रामरी

एक बार महात्याचारी अरुण नाम का एक असुर पैदा हुआ। उसने स्वर्ग में जाकर उपद्रव करना शुरू कर दिया। देवताओं की पत्नियों का सतीत्व नष्ट करने की कुचेष्टा करने लगता अपने सतीत्व की रक्षा के लिए देव पत्नियों ने भौरों का रूप धारण कर लिया और दुर्गा देवी की प्रार्थना करने लगी। देवी-पत्नियों को दुखी जानकार माता दुर्गा ने भ्रामरी का रूप धारण करके उस असुर को उसकी सेना सहित मार दाल और देव-पत्नियों के सतीत्व की रक्षा की
अब कहिये जय माता दी
जय माँ भ्रामरी देवी
जय माँ राज रानी

9. चण्डिका या चामुण्डा

एक बार पृथ्वी पर चण्ड -मुण्ड नाम के दो राक्षस पैदा हुए। वे दोनों इतने बलवान थे कि सारे संसार में अपना राज्य फैला लिया और स्वर्ग के देवताओं को हराकर वहां भी अपना अधिकार जमा लिया। इस प्रकार देवता बहुत दुखी हुए और देवी की स्तुति करने लगे। तब देवी चण्डिका के रूप में अवतरित हुई और चंड-मुण्ड नामक राक्षसों को मारकर संसार का दुःख दूर किया। देवताओं का गया स्वर्ग पुन: उन्हें दिया। इस प्रकार चारों और सुख का राज्य छा गया। चण्ड -मुण्ड का वध करने के कारण इस अवतार में देवी को चामुण्डा और चण्डी कहा गया
अब कहिये जय माता दी
जय माँ चामुण्डा
जय माँ राज रानी





जय माँ दुर्गे
जय माँ राज रानी
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Sanjay Mehta







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