गुरुवार, 16 जनवरी 2014

भगवान अपने प्रिया भक्तो का ध्यान करते है : Bhagwan apne priy bhagto ka dhyaan karte hai : Sanjay Mehta Ludhiana









तुम ठाकुर जी का समरण करोगे तो वे भी तुम्हे नहीं भूलेंगे . एक बार नारदजी वैकुण्ठ लोक में आये। लक्ष्मी जी वहाँ थी , किन्तु भगवान् नजर ना आये , इधर -उधर ढूंढने पर उन्होंने देखा कि भगवान ध्यान लगाये हुए बैठे है। नारद जी ने उनसे पूछा - किसका ध्यान कर रहे है आप ? भगवान ने कहा - मै अपने भक्तो का ध्यान कर रहा हु

भगवान अपने प्रिया भक्तो का ध्यान करते है , नारद जी ने पूछा कि ये वैष्णव क्या आप से भी श्रेष्ठ है , जो आप उनका ध्यान कर रहे है ?

भगवान ने कहा - हाँ , वे मुझसे भी श्रेष्ठ है

तब नारद जी ने कहा कि सिद्ध करके दिखाइये अपनी बात

भगवान ने पूछा - जगत में सबसे बड़ा कौन है ?

नारद जी ने कहा - पृथ्वी।

प्रभु ने कहा - पृथ्वी तो शेषनाग के सिर पर आधार रखती है , फिर वह कैसे श्रेष्ठ मानी जाए। नारद जी ने कहा - तो शेषनाग बड़े है।

भगवान - वह बड़ा कैसे हो गया ? वह तो शंकरजी के हाथ का कंगन है अत: शेष से शिवजी महान है , उनसे बड़ा रावण है , क्युकि उसने कैलास पर्वत उठा लिया था। रावण भी कैसे बड़ा कहा जाए , क्युकि बालि उसे अपनी बगल में दबा के संध्या करता था। बालि कैसे बड़ा माना जाएगा क्युकि उसको रामजी ने मारा था। नारदजी ने कहा - तब तो आप ही श्रेष्ठ है

भगवान् - नहीं मै भी श्रेष्ठ नहीं हूँ। मेरी अपेक्षा मेरे भक्तजन श्रेष्ठ है। क्युकि सारा विश्व मेरे ह्रदय में समाया हुआ है। किन्तु मै अपने भक्तो के ह्रदय में समाया हुआ हूँ। मुझे अपने ह्रदय में रखकर ये भक्तजन सारा व्यवहार निभाते है , अत: ये ज्ञानी भक्त ही मुझसे और सभी से श्रेष्ठ है।

भगवान् के भगत भगवान् से भी आगे है , बढ़कर है
'राम से अधिक रामकर दासा।'

मेरे निष्काम भक्त किसी भी प्रकार की मुक्ति कि इच्छा नहीं करते है। बिना मेरी सेवा वे कोई और इच्छा नहीं रखते है
मेरे निष्काम भक्त मेरी सेवा को छोड़कर सालोक्य , सार्ष्टि सामीप्य , सारूप्य और सायुज्य मुक्ति को भी स्वीकार नहीं करेंगे। नरसिंह मेहता ने गाया है

हरिना जन तो मुक्ति ना मांगे , मांगे जन्म-जन्म अवतार रे
नित सेवा , नित कीरतन , अोच्छव , निरखवा नंदकुमार रे
धन्य वृन्दावन , धन्य ए लीला , धन्य ए व्रजना वासी रे
अष्ठ महासिद्धि आंगणिये ऊभी, मुक्ति छे एमनी दासी रे
भूतल भक्ति पदार्थ मोंटू , ब्र्ह्मलोकमां नाही रे

अर्थात हरिजन मुक्ति नहीं , जन्म-जन्म में अवतार चाहते है कि जिससे प्रभु कि नित्य सेवा, कीर्तन , उत्सव करके नंदकुमार का दर्शन किया जा सके

वृन्दावन धन्य है , लीला धन्य है और व्रजवासी भी धन्य है कि जिनके आंगन में अष्ट महासिद्धि खड़ी है और मुक्ति जिनकी दासी है ब्र्ह्मलोक में भी जो प्राप्त नहीं हो सकता , ऐसे श्रेष्ठ पदार्थ भक्ति केवल पृथ्वी पर ही प्राप्य है। मेरे भक्तजन मेरे प्रेमरूपी अप्रकृत सवरूप को प्राप्त करते है , जब कि देह - गेह में आसक्त पुरष अधोगति पाते है
अब कहिये जय माता दी। जय जय माँ जय श्री कृष्णा


यदि तुम अपने माता की सेवा करोगे तो तुम्हारी वृद्धावस्था में तुम्हारी संताने तुम्हारी सेवा करेंगी। माता- पिता , गुरु , अतिथि और सूर्य - ये चार इस संसार में प्रत्यक्ष देव है , उनकी सेवा करो। जय माता दी जी











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