बुधवार, 8 जनवरी 2014

नहीं ऐसा नहीं है : Nahi Esa Nahi Hai








नहीं ऐसा नहीं है




बालकृष्ण लाला पालने में विराजमान है , जैसे ही पूतना भीतर आयी लाला ने आँखे बंद कर ली। इस के बारे में अलग अलग संतो की राय

एक महापुरष ने वर्णन किया कि लाल ने आँखे बंद कि , इसका कारण येही है कि श्री कृष्ण कि आँखों में ज्ञान और वैराग्य है , भगवन जब किसी कि और एक बार भी प्रेम से देखते है , उसको संसार तुच्छ प्रतीत होता है , उसकी बुद्धि में ज्ञान का स्फुरण होता है। भगवान् यह सोचते है के मै इसे दृष्टि दूंगा तो वह समझ जायेगी कि यह बालक नहीं , पर काल है , यह बालक काल का भी काल है , यह तो ईश्वर है , इसे मेरे सवरूप का ज्ञान हो जायेगा फिर जो यह करने आयी है वह नहीं करेगी और मेरे पैर पड़ेगी , मेरी पूजा करेगी आरती करेगी इस लिए लाला ने आँखे बंद की ।

एक महात्मा कहते है -- ना ना ऐसा नहीं -- भगवान की दृष्टि पाने से क्या कही अचानक ज्ञान हो जाता है ? दर्योधन को प्रभु ने समझाया , फिर भी उसे कहाँ ज्ञान हुआ ? लाला ने आखे बंद की इस का कारण कुछ और है प्रभु ने सोचा कि मैंने शास्त्र में नियम बनाया है कि 'स्त्री अबला है और मारना नहीं चाहिए ' इस नियम का भंग मेरे ही द्वारा हो जायेगा। इस प्रकार लाला को क्षोभ हुआ और उन्होंने आँखे बंद की

एक महात्मा कहते है - नहीं नहीं लाला ने आखे यह सोच कर बंद की के अब मै पूतना के प्राण चूसने वाला हु , तब पूतना बहुत तडफेगी , मै उसे मुक्ति तो देने ही वाला हु , पर मुक्ति से पहले वह सर पटकेगी, बहुत रोयेगी , मुझ से देखा नहीं जायेगा लाला को दया आ गयी , इसलिए उसकी बंद हो गयी।

एक महत्मा यह कहते है -- ना ना ऐसा नहीं है , ईश्वर है और वह जाग रहा है , जिसको ज्ञान है , वह पाप नहीं कर सकता , ईश्वर नहीं है और है तो सोये हुए है , ऐसा जो मानते है , वही जीव पाप कर सकता है , पूतना पाप करने के लिए आयी है , लाला ने सोचा कि मै आँखे खुली रखूँगा तो वह पाप नहीं कर सकेगी , मै सोया हुआ , ऐसा समझेगी तो ही पाप करेगी , मै निंद्रा का थोडा - सा नाटक करता हु, इससे लाला ने आखे बंद कि है

एक माहत्मा कहते है - ना - ना ऐसा भी नहीं है। पूतना वासना है , वासना आँखों से भीतर आती है , भीतर आने के बाद ज्ञान को धक्का देती है इससे जगत को प्रभु ने बोध दिया ही कि मन को पवत्र रखना है तो आँखों को पवित्र रखना। आँखे बिगड़ती है तो मन बिगड़ता है , आखो से ही पूतना - वासना भीतर आती है , उसे भीतर ना आने दे ,

एक माहत्मा ने सोचा - पूतना आज मेरे सम्मुख आती है तो पूतना ने इस जन्म में तो कोई पुण्य किया नहीं , लाला ने ध्यान किया तो देखा - यह तो बलिराजा कि पुत्री है , बलिराजा के यज्ञ में में भगवान् वामन जी का रूप धारण करके भिक्षा मांगने गए थे . तब बहुत सुंदर दिख रहे थे। तब बलिराजा कि कन्या को जब वामनजी के दर्शन हुए तब उसके मन में ऐसा विचार आया कि बालक मेरी गोद में आ जाए तो कितना अच्छा हो मै इसे खिलाओ तो दूध पिलाऊ बलिराजा कि पुत्री के मन में वातसल्य - भाव जागा पर जब वामन जी ने सब कुछ हर लिया तो वह सोचने लगी कि मेरे पिता को , कपट करके छला, इसे मारना चाहिए , और भगवन ने उसके दोनों सकल्पो को सोचा इस लिए भगवान् ने आँखे बंद की

एक महात्मा यह लिखते है - नहीं नहीं ऐसा नहीं है - खुली आँखों से क्या लाला नहीं देख सकते , अरे, उसे तो खुली आँखों से भी सब दीख पड़ता है , ज्ञान शक्ति प्रकट करने के लिए जीव को आँखे बंद करनी पड़ती है , ईश्वर कि ज्ञान शक्ति तो प्रकट ही है। लाला ने आखे बंद की है इसका कारण भिन्न है , पूतना के आने के बाद प्रभु सोचने लगे कि मै इसे किस तरह सद्गति दूँ? इसे सवर्ग ले जाउ , बैकुंठ में ले जाउ या गोलोक धाम में ले जाउ ? यह सोचते हुए लाल ने आखे बंद की

लाला ने आँखे बंद की इस कारण स्प्ष्ट करते हुए संजय मेहता कहते है कि वेदो में वर्णन है कि श्री कृष्ण कि दायी आँख में सूर्य है , बायीं आँख में चन्द्र है सूर्य - चन्द्र वैष्णव है उन्हें कन्हैया बहुत प्रिय है , पूतना जब विष देने आयी तब सूर्य - चन्द्र को यह बात पसंद ना आयी , वे सोचते है कि हमारा कन्हैया तो बहुत कोमल है , यह कैसी दुष्ट है कि हमारे कन्हैया के लिए माखन - मिश्री तो ना लायी , पर विष ले आयी , आपके किसी प्रिय को कोई विष देने आये तो क्या आप देख सकेंगे ? सूर्य - चन्द्र से यह सहन ना हुआ - सूर्य - चन्द्र उसे देखे ना सके , इससे आँखे बंद हो गयी।

अब कहिये जय माता दी








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