शनिवार, 1 सितंबर 2012

जो जाए बद्री, उसकी काय सुधरी By Sanjay Mehta Ludhiana







जो जाए बद्री, उसकी काय सुधरी

बद्रिकाश्रम अति दिव्या भूमि है, तपोभूमि है. जिसको लोग बद्रिकाश्रम कहते है, उसका मूल नाम विशाल क्षेत्र है, विशाल राजा ने वहां तपश्चर्या की थी. इसलिए उसे विशालाक्षेत्र कहते है, विशाल राजा को वहां प्रभु ने जब उनसे वरदान मांगने को कहा तब राजा ने कहा - नाथ! मै तुम्हारा सतत दर्शन करता रहू, यह वरदान दीजिये. प्रभु प्रसन्न हुए और अन्य अधिक कुछ मांगने को कहा - राजा ने कहा - हजारो वर्षो तक मैंने तपश्चर्या की तब आपके दर्शन हुए है, परन्तु प्रभु! ऍसी परीक्षा सबकी मात करना. इस क्षेत्र में मैंने तप किया है, यहाँ जो कोई तप करे उसे तुरंत आपके दर्शन हो जाया करे. प्रभु ने कहा - तथास्तु -- बद्रिकाश्रम की ऍसी महिमा है
भारत के प्रधान देव नारायण. सब अवतारों की समाप्ति होती है, इन नारायण की समाप्ति नहीं होती है होनी ही नहीं है, भारत की प्रजा का कल्याण करने के लिए नारायण आज भी तपश्चर्या करते है, बद्रीनारायण तप ध्यान का आदर्श जगत को बतलाते है, वे बतलाते है की मै इश्वर हु, फिर भी ध्यान तप करता हु, तपश्चर्या बिना शान्ति नहीं मिलती
पीछे फिर शंकराचार्य महाराज ने बद्रिकाश्रम में बद्रीनारायण भगवान की स्थापना की है. शंकराचार्य जी ने नर-नारायण के दर्शन किये, शंकराचार्य तो महान योगी थे. उन्हों ने भगवान से कहा - मैंने तो आपके दर्शन किये परन्तु कलियुग के भोगी मनुष्य भी आपके दर्शन कर सके ऍसी कृप्या करो
भगवान ने तब शंकराचार्य को आदेश दिया की बद्रीनारायण में नारायण -कुंड है, उसमे स्नान करो, वहां से तुमको मेरी जो मूर्ति मिले उसकी स्थापना करो, मेरी मूर्ति का जो दर्शन करेगा उनको मेरे प्रत्यक्ष दर्शन करने जितना फल मिलेगा. उसी के अनुसार श्री शंकराचार्य जी ने बद्रीनारायण भगवान की स्थापना की . जो जाए बद्री, उसकी काय सुधरी
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Sanjay Mehta








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