शनिवार, 15 सितंबर 2012

रामेश्वर का अर्थ By Sanjay Mehta Ludhiana







रामेश्वर का अर्थ :-

श्रीरामचन्द्र जी नित्य नियम से भगवान शंकर कि पूजा करते थे.. समुन्द्र किनारे कि दिव्या भूमि देखकर श्रीरामचन्द्र जी को आनंद हुआ और उन्हों ने सकल्प किया कि इस स्थान पर मै शिवजी कि स्थापना करूँगा.. परन्तु वहां कोई शिवलिंग मिला नहीं. हनुमानजी को शिवलिंग लाने कि लिए काशी भेजा.. हनुमान जी को लौटने में विलम्ब हो गया.. तब तक रघुनाथ जी ने रेती का शिवलिंग बनाकर वहां रामेश्वर कि स्थापना कर दी.. अनेक ऋषि वहां आये थे. श्रीराम शिवजी की पूजा करने लगे. भगवान शंकर को आनंद हुआ.. लिंग में से शिव पार्वती जी प्रकट हुए

ऋषियो ने रामजी से पूछा -- महाराज! रामेश्वर का अर्थ समझाइये ।।
श्री रघुनाथ जी ने कहा-- रामस्य इश्वर: य: स: रामेश्वर:।। (जो राम के इश्वर है, उन्हें रामेश्वर कहते है, मै शिवजी का सेवक हु. शिवजी मेरे स्वामी है. )
तब शिवजी ने कहा - रामेश्वर का अर्थ ऐसा नहीं.. मै राम का इश्वर नहीं. मै तो राम का सेवक हु. रामेश्वर का अर्थ तो यह है
राम: इश्वरो यस्य स: रामेश्वर:।
राम जिसके स्वामी है, उनको रामेश्वर कहते है, मै रामदास हु, मै सब दिन राम-नाम जा जप किया करता हु. रामजी का ही ध्यान धर्ता हु. शिवजी कहते है - राम जिसके स्वामी है, उनको रामेश्वर कहते है और रामजी कहते है - रामके जो स्वामी है, उन्हें रामेश्वर कहते है, दोनों में मूल रूप झगड़ा खड़ा हो गया. भगवान शंकर कहते है कि तुम मेरे स्वामी हो, मै तुम्हारा सेवक हु. रामजी कहते है कि नहीं. नहीं ऐसा नहीं... तुम मेरे स्वामी हो, मै तुम्हारा सेवक हु..
ऋषियो ने पीछे निर्णय किया कि तुम दोनों एक ही हो इसलिए ऐसा कहते है .. शिव और राम दोनों एक ही है, हरि - हर में भेद रखने वाले का कल्याण नहीं होता, रामायण का यह दिव्या सिद्धांत है.
भागवत में भी अनेक बार इस सिद्धांत का वर्णन किया गया है. कितने ही वैष्णवों को शिवजी की पूजा करने में संकोच होता है, अरे वैष्णवों के गुरु तो शिवजी है.शिवजी कि पूजा से श्रीकृष्ण-श्रीराम क्या नाराज हो जायेगे... उन्हों ने तो कहा है शिव और हममे जो भेद रखता है वह नरकगामी बनता है .
शंकर प्रिय मम द्रोही, शिव द्रोही मम दास
ते नर करिहहि कल्प भरि, घोर नरक महु वास


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Sanjay Mehta








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