मंगलवार, 25 सितंबर 2012

थोडा सोचिये; मंदिर में आपको क्या दिखलायी देता है? भगवान या मूर्ति? By Sanjay Mehta Ludhiana







थोडा सोचिये; मंदिर में आपको क्या दिखलायी देता है? भगवान या मूर्ति? आप मानेंगे कि प्राय: मूर्ति दिखाई देती है

आँख को भले ही मूर्ति दिखायी दे, वैष्णव ऍसी भावना रखते है कि यह मूर्ति नहीं है, ये प्रत्यक्ष परमात्मा है, जिसका मन शुद्ध है, उसे भावना से मंदिर में भगवान दिखाई देते है. ये प्रत्यक्ष साक्षात परमात्मा है.. बैकुंठ के नारायण ये ही है. जो मंदिर में सिंहासन पर विराजमान है. वे साक्षात प्रभु ही तो है..

ह्रदय में भाव ना तो तो मंदिर में पत्थर की मूर्ति दिखाई देती है. वैष्णव मंदिर में मूर्ति के दर्शन नहीं करते, परमात्मा के दर्शन करते है, आप बहुत प्रेम-भाव से प्रभु के दर्शन कीजिये, प्रभु के उपकार को अनुभूत करके थोड़ी स्तुति कीजिये. सकल्प कीजिये कि आज से मैंने पाप छोड़ दिये. आज से मै भगवान की कथा सुनाने वाला हु... आज से मै सत्कर्म करूँगा. अब मै भगवान का हो गया हु. मै ऐसा ही बोलूँगा, जो मेरे भगवान को पसंद होंगा... मै ऐसा ही कार्य करूँगा जो मेरे प्रभु को प्रिय होगा..

जब मानव पाप छोड़कर भक्ति का संकल्प करता है, तब भगवान मन में धीरे - धीरे हँसते है, प्रभु को आनंद होता है कि आज मेरा पुत्र समझदार हो गया है, पत्थर कि जड़ मूर्ति कभी नहीं हस्ती है, आप से कभी पाप हो जाये तो पाप के दर्शन करने पर आपको ऐसा अनुभव होगा कि आज भगवान मुझ से नाराज हो गये है. आज प्रभु जी प्रसन्न नहीं है. आज मुझे देख कर हँसते भी नहीं है. भगवान मुझ पर दृष्टि नहीं डाल रहे है बल्कि उपालम्भ दे रहे है. मानो कह रहे है कि मेरा नाम धारण किया पर अभी तक पाप नहीं छोड़ रहे हो... पुत्र बुरा हो जाता है तो पिता को क्षोभ होता ही है.

जीव इश्वर का पुत्र है. जीव पाप करके भगवान के दर्शन करने जाता है तब उसे देखकर भगवान को क्षोभ -संकोच होता है.. भगवान उलाहना देते है. मानो कह रहे है कि आज तुम्हारी और देखने का मन नहीं हो रहा है. मेरा पुत्र होकर ऐसा पाप कर रहा है? पत्थर की मूर्ति उलाहना नहीं देती है, पत्थर कि मूर्ति हंसती भी नहीं है. जिसका ह्रदय शुद्ध है, जिसकी आँख पवित्र है, जिसके हृदय में भावना है, उसे ही मंदिर में भगवान दीखते है. आँख से भले ही पत्थर की मूर्ति दिखाई दे, वैष्णव भावना से भगवान के ही दर्शन करते है. सौ रूपये के नोट में एक भी पैसा नहीं दिख पड़ता. आँख को तो कागज ही दिखाई देता है, किन्तु आँख को भले ही कागज दिखे , पर बुद्धि कहती है , यह कागज नहीं है, रूपये है, वैष्णव मूर्ति के दर्शन नहीं कर रहे है, भावना से प्रत्यक्ष परमात्मा के, श्री नारायण के माँ भगवती के दर्शन करते है.

अब बोलिए जय श्री राम. जय माता दी जी . जय जय माँ. जय माँ राज रानी .. जय माँ वैष्णो रानी. जय माँ दुर्गे..


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Sanjay Mehta








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