मंगलवार, 11 सितंबर 2012

शूर्पनखा By Sanjay Mehta Ludhiana









रामायण में लिखा है कि शूर्पनखा को जवाब देने के लिए जब श्री रामचन्द्र जी उसके साथ बात करते थे, तब प्रभु कि नजर तो श्री सीता जी पर ही रहती थी. रामजी शूर्पनखा के साथ जब बोलते थे, तब वे शूर्पनखा पर दृष्टि नहीं डालते थे. वासना-राक्षसी आँख से अंदर घुस जाती है

श्री रामचन्द्र जी , श्री सीताजी पर नजर रखकर शूर्पनखा को उत्तर देने लगे. शूर्पनखा पर नजर नहीं डाली. रामायण कि शूर्पनखा और भागवत कि पूतना एक ही है. पूतना भी वासना है, पूतना आती है तब कन्हैया छह दिन के थे.. अभी राधा जी नहीं आयी थी. इसलिए नजर कोने में रखते थे. इसलिए कन्हैया आँख मींच लेते थे... रामावतार में तो सीताजी साथ थे. इसी से श्रे सीताजी पर नजर रखकर , शूर्पनखा नजर नहीं डाली
भगवान बोध देते है कि जिसके मन में पाप भरा है, उसपर मे दृष्टि नहीं डालता, उसको सामने से मै नहीं देखता, जिसका मन मैला है, उसको सामने से भगवान देखते नहीं.. बाहर का श्रृंगार प्रभु देखते नहीं, परमात्मा तो अंदर का सूक्ष्म शरीर-मन का श्रृंगार देखते है, स्थूल शरीर का विचार करे, वह जीव तथा सूक्ष्म शरीर का विचार करे वह इश्वर..
जय श्री राम. जय माँ दुर्गे. जय माँ कालिके. जय जय माँ. जय माता दी जी
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Sanjay Mehta









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