गुरुवार, 20 सितंबर 2012

गणेशजी को दूर्वा और मोदक चढाने का महत्त्व क्यों? By Sanjay Mehta Ludhiana









गणेशजी को दूर्वा और मोदक चढाने का महत्त्व क्यों?

भगवान गणेशजी को 3 या 5 गाँठ वाली दूर्वा (एक प्रकार की घास) अर्पण करने से वह शीघ्र प्रसन होते है. और भक्तो को मनोवांछित फल प्रदान करते है. इसलिए उन्हें दूर्वा चढ़ने का शास्त्रों में महत्त्व बताया गया है. इसके सम्बंध में पुराण में एक कथा का उल्लेख मिलता है -"एक समय पृथ्वी पर अनलासुर नामक राक्षस ने भयंकर उत्पात मचा रखा था. उसका अत्याचार पृथ्वी के साथ-2 स्वर्ग और पाताल तक फैलने लगा था. वह भगवद -भक्ति व् इश्वर आराधना करने वाले ऋषि-मुनियों और निर्दोष लोगो को जिन्दा निगल जाता था. देवराज इंद्र ने उससे कई बार युद्ध किया, लेकिन उन्हें हमेशा परस्त होना पड़ा, अनलासुर से त्रस्त होकर समस्त देवता भगवान शिव के पास गये, उन्होंने बतया कि उन्हें सिर्फ गणेश ही ख़त्म कर सकते है, क्युकि उनका पेट बड़ा है , इसलिए वे उसको पूरा निगल लेंगे. इस पर देवताओ ने गणेश कि स्तुति कर उन्हें प्रसन्न किया, गणेशजी ने उनलासुर का पीछा किया और उसे निगल गये, इससे उनके पेट में काफी जलन होने लगी. अनेक उपाए किये गये, लेकिन ज्वाला शांत ना हुई. जब कश्यप ऋषि को यह बात मालूम हुई तो वे तुरंत कैलाश गये और 21 दूर्वा एकत्रित कर एक गाँठ तैयार कर गणेश को खिलाई. जिसे उनके पेट कि ज्वाला तुरंत शांत हो गई..

गणेशजी को मोदक यानी लड्डू काफी प्रिय है, इनके बिना गणेशजी कि पूजा अधूरी ही मानी जाती है. गोस्वामी तुलसीदास ने विनय पत्रिका में कहा है .
गाइए गणपति जगबंदन । संकर सुवन भवानी नंदन ।।
सिद्धि-सजन गज विनायक । कृपा-सिन्धु सुंदर सब लायक ।।
मोदकप्रिय मुद् मंगलदाता ।। विद्या वारिधि बुद्धि विधाता ।।

इसमें भी उनकी मोदाकप्रियता प्रदर्शित होती है, महाराष्ट्र के भक्त आमतौर पर गणेशजी को मोदक चढाते है, उल्लेखनीय है कि मोदक मैदे के खोल में रवा, चीनी, मावे का मिश्रण कर बनाए जाते है. जबकि लड्डू मावे व् मोतीचूर के बनाए हुए भी उन्हें पसंद है. जो भक्त पूर्ण श्रद्धाभाव से गणेशजी को मोदक या लड्डुओं का भोग लगते है, उन पर वे शीघ्र प्रसन्न होकर इच्छापूर्ति करते है.
मोद यानी आनंद और 'क' का शाब्दिक अर्थ छोटा -सा भाग मानकर ही मोदक शब्द बना है, जिसका तात्पर्य हाथ में रखने मात्र से आनंद कि अनुभूति होना है, ऐसे प्रसाद को जब गणेशजी को चढ्या जाये, तो सुख कि अनुभूति होना स्वाभाविक है, एक दूसरी व्याख्या के अनुसार जैसे ज्ञान का प्रतीक मोडम मीठा होता है, वैसे ही ज्ञान का प्रसाद भी मीठा होता है
जो भगवान को दूर्वा चढ़ाता है, वह कुबेर के समान हो जाता है, जो लाजो (धान-लाई) चढ़ाता है, वह यशस्वी , मेधावी हो जाता है और जो एक हजार लड्डुओं का भोग गणेश भगवान को लगता है, वह मन - वांछित फल प्राप्त करता है
अब बोलिए जय गणपति भगवान की . जय बोलो माँ भवानी की. जय माँ राजरानी की. जय माँ दुर्गा . जय माँ वैष्णो रानी की.
जय माता दी जी
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Sanjay Mehta









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