मंगलवार, 28 अगस्त 2012

लंकादहन By Sanjay Mehta Ludhiana







जिस समय पवननंदन हनुमान जी की पूँछ में आग लगाई जा रही थी, उसी समय एक भयानक राक्षसी ने दौड़कर माता जानकी से कहा -- 'सीते! तुम जिस बन्दर से बात कर रही थी, उसे बांधकर उसकी पूँछ में आग लगा दी गई है . उसे अत्यंत अपमान के साथ लंका की गलियों में घुमाया गया है

माता जानकी सहसा कांप उठी. उन्हों ने दृष्टि उठाकर देखा - विशाल लंकापुरी अग्नि की प्रचण्ड ज्वाला फैली हुई है. उन्होंने अत्यंत व्याकुल होकर अग्नि देव से प्राथना की - "अग्निदेव! यदि मै अपने प्राणनाथ पतिदेव की विशुद्ध सेविका हु और यदि मुझमे तपस्या तथा पातिव्र्त्याका बल है तो तुम पवनपुत्र हनुमान के लिए शीतल हो जाओ. एक तो पातीव्रत्य की अमित शक्ति! पतिवर्ता देवी इच्छा होने पर सम्पूर्ण सृष्टि को उल्ट-पुलट कर सकती है, दुसरे निखिल सृष्टि की स्वामिनी, जगजननी , मूल प्रकृति स्वयं शक्ति की प्रार्थना, तीखी लपटों वाले अग्निदेव श्री हनुमान जी के लिए शांतभाव से जलने लगे. उनकी शिखा प्र्दाक्षिनाभाव से उठने लगी, स्वयं हनुमान जी चकित होकर सोचने लगे - 'अरे! अग्नि तो प्रज्वलित है, इसके स्पर्श से विशाल अट्टालिकाए धायं-धायं जल रही है, किन्तु मै बिलकुल सुरक्षित हु. निश्चेय ही माता सीता की दया , मेरे परम प्रभु श्री राम के तेज तथा मेरे पिता की मंत्री के प्रभाव से अग्निदेव मेरे लिए शीतल बन गये है
बोलिए श्री हनुमान जी की जय. बोलिए माँ सीता पति श्री राम चन्द्र जी की जय . बोलिए मेरी माँ वैष्णो देवी की जय. मेरी माँ राज रानी की जय
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Sanjay Mehta









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