शनिवार, 26 मई 2012

शंकर महादेव क्यों हो गये: Shanker Mahadev Kyu Ho Gaye By Sanjay mehta Ludhiana







अमर वह बन जाता एकदम
चरण में झुक जाता आलम


शंकर महादेव क्यों हो गये? एक बड़ा प्रेरक रूपक है - देवो और असुरो ने मिलकर समुन्द्र का मंथन किया. मेरु को मथानी और शेषनाग को नेतरा - मथानी की डोरी बनाया .. समुन्द्र - मंथन का ध्येय था अमृत प्राप्त करना, पर पहले विष का कुम्भ उपर आ गया, अब उसे ले कौन? देव - दानव सब इनकार हो गया. कोई उसे स्वीकार करने को तैयार नहीं. कहते है, उस विषपूर्ण कुम्भ को लेकर सब पौह्चे बाबा भोलेनाथ के पास. और भोलेनाथ तो ठहरे भोलेनाथ . देवो-दानवो ने कहा - महाराज हमने समुन्द्र-मंथन किया है. उसमे यह विष निकला है, अब इस कालकूट को कौन ग्रहन करे? शंकरे ने कहा - लाओ मुझे दे दो. मंथन करने वाले बड़े प्रसन हुए - और वह विष का कुम्भ शम्भु को दे दिया. महादेव उस विष को पी गये और उसे अमृत में परिणत कर लिए , कहते है उन्हों ने उस हलाहल का पान किया और गले मे ही उसे पर्यवसित कर लीया. ना तो उसे आमाशय में जाने दिया और ना वापस वमन ही किया. योग - शक्ति से उसे कंठ में ही हजम कर लीया, परिणामस्वरूप उनका कंठ नीला पड़ गया. इसलिए शंकर का एक नाम नीलकंठ भी है .
यह रूपक एक गहरा संकेत देता है, क्रोध के दो परिणाम आते है. या तो क्रोध के वेग में मनुष्य गालिया बंकने लगता है , उस क्रोध का वमन कर देता है, या फिर उस समय कुछ ना बोलकर उस विष-ग्रंथि को उदरस्थ कर लेता है. मन में बड़ा वग है , भीतर ही भीतर गुनगुना लेता है आने दो समय, इसका प्रतिशोध लेकर छोडूंगा. इन दोनों स्थितियो में विष हजम नहीं होता. विष को जीर्ण तो शम्भु ने इस भांति किया - ना उसे उदर में जाने दिया और ना उसे वापस बाहर ही फेंका. इस अनुपम तितिक्षा , सहिष्णुता के कारण शम्भु महादेव बन गये, ब्रह्मा , विष्णु आदि सब देव कहलाते है, जबकि शंकर महादेव कहलाते है








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