सोमवार, 28 मई 2012

प्रेरक प्रसंग: Prerak Prsng By Sanjay mehta Ludhiana








प्रेरक प्रसंग



जब भी धार्मिक कार्य का अवसर आता है, माया - मोह के वश हुआ अज्ञानी प्राणी उसे आगे के लिए टाल देता है, प्राचीन संत एक रूपक सुनाया करते थे.

एक सेठ अपने व्यापार - व्यवसाय में इतना व्यस्त रहता था कि कभी सत्संग में नहीं जाता, कभी भगवान का स्मरण नहीं करता, कभी स्वाध्याये नहीं करता. उसी गाँव में एक बड़े अच्छे कथावाचक रहा करते थे, वे रामायण, महाभारत आदि कि कथा करते रहते थे, वाणी में बड़ी सरसता थी. इसलिए सत्संगी लोगो कि अच्छी उपस्तिथि होती थी, पर वह मायालुब्ध सेठ कभी सुनाने नहीं आया, एक बार व्यास जी को वह सेठ रस्ते में मिल गया, व्यास जी ने कहा. सेठ! कभी तो सत्संत का लाभ लीया करो. कथा-श्रवण के लिए समय निकला करो व्यवहार का निर्वाह करते हुए सेठ ने कहा - क्यों नहीं व्यासजी महाराज, अवश्य सुनूंगा. पर आजकल तो बहुत सर्दी पड़ती है. इतनी कडाके कि सर्दी में प्राय: घर से बाहर नहीं निकलता हु. थोड़ी सर्दी कम हो जाये, फिर सत्संग में जरुर आऊंगा. यह कहकर सेठ आगे बढ गया.

पोष , माघ के महीने निकल गये , सर्दी बहुत कम हो गई, बसंत की हवाए चलने लगे. आते-जाते व्यासजी फिर सेठ की मिल गये. तुरंत व्यासजी ने सेठ की कही हुए बात का स्मरण करवाया और काया. अब तो सर्दी काफी कम हो गई है, अब तो कभी समय निकालो, सेठ ने कहा - आपका कहना तो ठीक है, पर आजकल दुकान पर "सीजन" का बहुत काम है, सुबह से शाम तक वही व्यस्त रहना पड़ता है . यदि कमाए नहीं तो खाये क्या? ग्रहस्थी की गाडी कैसे चले? इसलिए सीजन के समय तो वक्त निकलना मुश्किल है, हां थोडा सा कार्य भार कम हो जाए फिर कथा अवश्य सुनूंगा. दो-तीन महीने बाद सेठ फिर व्यासजी से टकरा गया, व्यासजी तो मानो दृढ-स्कल्पी थे, सेठ का पीछा नहीं छोड़ना है, देखो यह कहा तक बहाने निकलता है, व्यासजी ने सेठ को कथा सुनाने की प्रेरण फिर दी

सेठ ने सोचा, यह तो बड़ा संकट हो गया, यह व्यास तो मेरा पीछा नहीं छोड़ता, पर मे भी इससे उपर का हु, उसने कहा - व्यासजी! कितनी लुए चल रही, भयंकर गर्मी का प्रकोप है, ऐसे में तो बाहर निकलना ही मुश्किल है, इन दिनों में तो सुनना कदापि सम्भव नहीं , गर्मी का प्रकोप कम होने पर अवश्य , ऐसे करते हुए सावन - भादों के दिन आ गये. अब तो सेठ! गर्मी भी समाप्त हो गई है. सावन-भादों के महीने हमारी संस्क्रती में धर्माचरण की दृष्टि से विशेष महत्व के है, इसलिए अब तो समय निकालना ही चाहिए. सेठ ने सोचा यह तो बड़ा विचित आदमी है, पीछा छोड़ता ही नहीं, बात को नया मोड़ देते हुए सेठ ने कहा. आपका कथन बिलकुल सत्य है, पर चातुर्मास पूर्ण होते ही मेरी लड़की की शादी है, ग्रेह्स्थ के लिए लड़की को विदा करना कोई साधारण बात नहीं है. मैंने तो अभी से तैयारिया शुरू कर दी है. घर में दर्जी, सोनी आदि काम कर रहे है, घर में रंग-रोगन वगैरह भी करवाना है, अभी तो मुश्किल है

कुछ दिन बाद अचानक सेठ के हार्ट में दर्द उठा और वह चल बसा , चारो और बात फ़ैल गई, सगे-सम्बन्धी इकट्ठे हुए और सेठ को श्मशान ले जाने की तैयारी करने लगे.

अर्थी उठी, लोग "राम राम सत्य है " बोलते हुए श्मशान की और बढ़े. व्यास जी का घर रस्ते में आ गया "राम राम सत्य है" की आवाज सुनकर व्यासजी बाहर आये और पूछा - किसकी मृत्यु हो गई है? लोगो ने सेठ का नाम बतलाया , अच्छा! तो आखिर सेठ चल ही बसा. कहते हुए व्यासजी ने पोथी-पन्ने बगल में दबाये और अर्थी के साथ चल पड़े.

श्मशान से कुछ दुरी पर "बीच का वासा" अर्थी को नीचे उतरा. व्यासजी ने सबको एक और हटने का संकेत किया तथा स्वयम पोथी खोलकर अर्थी के सन्मुख बैठने लगे. लोगों ने कहा - व्यासजी महाराज! यह क्या कर रहे हो? व्यासजी ने कहा - इतने दिन सेठ को समय नहीं था. सर्दी, गर्मी, व्यापार, कन्या का विवाह आदि कार्य इसके धर्माचरण में व्यावधान बने हुए थे. आज सारी बधाये समाप्त है, सारी जिम्मेदारिय पूरी हो गई है, इसलिए इसको कथा सुनाने का आज ही अवसर है. आप सब सज्जन थोड़ी देर प्रतीक्षा करे, मै इसको कुछ महत्वपूर्ण पाठ सूना देता हु, लोगों ने कहा -व्यासजी! आप सुनाना तो चाहते है, पर आपकी बात सुनेगा कौन, क्या सेठजी आपकी बात सुनेंगे? तीखा व्यंग्य कसते हुए व्यासजी ने कहा - सेठ तो नहीं सुनता पर तुम तो सुनते हो ?

कहने का तात्पर्य यह है कि मृत्यु के आते ही सारी जिम्मेदारियां समाप्त हो जाती है


Sanjay Mehta







कोई टिप्पणी नहीं: