सोमवार, 21 मई 2012

सनत्कुमार: Sanatkumar By Sanjay Mehta Ludhiana










वैकुण्ठ के सात दरवाजे है, सनत्कुमार जी भगवान् विष्णु जी से मिलने के लिए छह दरवाजे पार कर गये सातवे दरवाजे पर जय-विजय ने उन्हें रोक लिए , सनत्कुमारो की आँखे लाल हो गई, क्रोध में उन्होंने जय-विजय को शाप दे दिया तुम इस भूमि के लायक नहीं, जाओ तुम राक्षस होऊ , दैत्यकुल में तीन बार जन्म लेना पड़ेगा.

परमात्मा विचार करते है के सनत्कुमारो ने मेरे द्वार पर क्रोध किया है, इससे ये अंदर आने योग्य नहीं, आज तक इनको क्रोध के उपर विजय मिली नहीं, इससे मेरे धाम में आने के लिए योग्य नहीं, मै ही बाहर जाकर दर्शन देता हु

परमात्मा बाहर आये, परमात्मा के श्रीअंग में से कमल की दिव्या सुगंध आती है, परमात्मा के दर्शन करने से सनत्कुमारो को अपनी भूल समझ आती है, उन्हों ने प्रभु से क्षमा मांगी

भगवान ने जय-विजय से कहा, तुम्हारा अपमान तो मेरा अपमान है तुम्हारे पृथ्वी पर तीन अवतार होन्गे परन्तु तुम्हारा उद्दार करने के लिए मै चार अवतार लूँगा

पहले जन्म में जय-विजय हिरण्याक्ष-हिरण्यकशिप हुए दुसरे जन्म में रावण-कुम्भकर्ण हुए तीसरे जनम में शिशुपाल-दंत्वक्त्र हुए, हिरण्याक्ष-हिरण्यकशिप लोभ के अवतार है, रावण-कुम्भकर्ण काम के अवतार है, शिशुपाल-दंत्पक्त्र क्रोध के अवतार है, काम-क्रोध और लोभ-मनुष्य के ये तीन महाशत्रु है, ये नरक के द्वार है

प्रभु ने वराह और नरसिंह अवतार लेकर हिरण्याक्ष-हिरण्यकशिप को मारा, रामावतार धारण करके रावण और कुम्भकर्ण को मारा, कृष्णा अवतार में शिशुपाल और दंत्वक्त्र को मारा. तीन जन्म के पीछे जय-विजय पुन; प्रभु के धाम में आ गये.







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