शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

श्री राधा जी ने अपने महल मै तोते पाल रखे थे और उन्हें रोज़ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहती थी तो तोते भी सारा दिन हरे कृष्ण हरे कृष्ण बोलते रहते और सब सखियाँ भी हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहती | एक दिन राधाजी यमुना किनारे विचर रही थी सखियाँ दूर झुंड मै किकोल कर रही थी | इतने मै उनकी सामने नज़र पड़ी तो क्या देखती है की शामसुंदर नारद जी से बतिया रहे है | श्रीजी को क्या सूझी वो छिप कर उनकी बातें सुनने लगीं | नारद जी कह रहे थे कि जहाँ भी मैं जाता हूँ वहीं पूरे ब्रज मै हरे कृष्ण हरे कृष्ण कि गूँज सुनाई देती है | ठाकुरजी बोले पर मुझे तो राधे राधे नाम प्रिय है | इतना सुनते ही राधाजी कि आँखों से अश्रूयों कि धरा बहने लगी वो तुरंत अपने महल पर लौट आयीं | उन्होने अब अपने तोतों से हरे कृष्ण कि जगह राधे राधे कहने लगी जब सखियों ने कहा लोग तुम्हे अभिमानी कहेंगे कि तुम अपने नाम कि जय बुलवाना चाहती हो श्री जी ने कहा कि अगर मेरे प्रियतम को यही नाम पसंद है तो मैं तो यही नाम लूंगी राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे

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