सोमवार, 11 जून 2012

तीर्थ : Tirth by Sanjay Mehta , Ludhiana







तीर्थ

तीर्थो में सामान्य जल नहीं. तीर्थ में कुल्ला करना नहीं, साबुन लगाकर स्नान करना नहीं, तीर्थ में कपडा धोना नहीं, मन मे मैल धोना है, शास्त्र में लिखा है कि शरीर को शुद्ध करके, घर में प्रथम शरीर-शुद्धि स्नान करके पीछे तीर्थ में स्नान करना अति उत्तम है

कितने ही लोग गंगा-किनारे, नर्मदा किनारे जाते है, परन्तु बहुत ठण्ड पड़ती हो, वर्षा पड़ती हो तो गंगाजी के , नर्मदा जी को वंदन करते नहीं उनमे स्नान भी करते नहीं, तीर्थ में जाकर जो तीर्थदेव का वंदन ना करे, स्नान ना करे तीर्थ का अपमान करता है, किसी भी तीर्थ में जाओ तो प्रथम तीर्थ-देवता का वंदन करो, उस पीछे स्नान करो. तीर्थ में उपवास करो, उपवास करने से शरीर कि शुद्धि होती है, शरीर में सात्विक भाव जाग्रत होता है. पाप भस्म होता है. तीर्थ में भूमि पर शयन करो, धर्मशाला की खटिया पर सोओ नहीं. जिस खटिया पर किसी ने पाप किया होगा. उस पर सोने से वह तुमको भी लगेगा. स्थान को पवित्र बनाओ, अपना वस्त्र बिछाओ, माला करो और पीछे सों जाओ, तीर्थ में क्रोध नहीं किया जाता, किसी की निंदा नहीं की जाती, कितने ही लोग तो तीर्थ में जाकर पाप करते है.

अन्यत्र किया हुआ पाप तीर्थ में जाकर धुल जाता है, परन्तु तीर्थ में जाकर जो पाप करता है, उसको बहुत भारी सजा मिलती है, एक - एक तीर्थ में एक एक पाप छोडो, एक - एक त्याग बढाओ , परमात्मा के लिए अतिशय प्रिय वास्तु त्याग करोगे तो परमात्मा को दया आएगी, तीर्थ में जाकर काम-क्रोध जैसे विकार छोडो, तीर्थ में ब्रेह्म्चार्य का पालन करो, सत्संग करो, तप और सयम से पवित्र होकर भावना से तीर्थ जाओ.
जय माता दी जी







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