बुधवार, 6 जून 2012

राजा परीक्षित की कथा :Raja Prikshit Ki katha by sanjay mehta Ludhiana








राजा परीक्षित की कथा


राजा परीक्षित अर्जुन के पोते तथा अभिमन्यु के पुत्र थे , संसार सागर से पार करने वाली नौका स्वरूप भागवत का प्रचार इन्ही के द्वारा हुआ. पांड्वो ने संसार त्याग करते समय इनका राज्याभिषेक किया . इन्हों ने निति के अनुसार पुत्र के समान प्रजा का पालन किया, एक समय यह दिग्विजिय करने को निकले वहां कुरुक्षेत्र में इन्हों ने देखा एक आदमी बैल को मार रहा है, वह आदमी जो की वास्तव में कलियुग था. उसको इन्होने तलवार खींचकर आज्ञा दी की यदि तुझे अपना जीवन प्यारा है तो मेरे राज्य से बाहर हो जा. तब कलियुग ने डरकर हाथ जोड़कर पूछा कि महाराज समस्त संसार में आपका ही राज्य है फिर मै कहा जाकर रहू. राजा ने कहा जहाँ. मदिरा, जुआ, जीवहिंसा, वैश्या और सुवर्ण इन पांचो स्थानों पर जाकर रह.

एक बार राजा सुवर्ण का मुकुट पहनकर आखेट खेलने के लिए गये, वहां प्यास लगने पर घूमते घूमते शमीक ऋषि के आश्रम पर पहुंचकर जल माँगा. उस समय ऋषि समाधि लगाये हुए बैठे थे, इस कारण कुछ भी उत्तर नहीं दिया, राजा के सुवर्ण मुकुट में कलियुग का वास था. उससे इनको क्यों सूझी की ऋषि घमंड के मारे मुझसे नहीं बोलता है. इन्होने एक मरा हुआ सांप ऋषि के गले में डाल दिया, घर आकर अब जब मुकुट सिर से उतारा तो इनको ज्ञान पैदा हुआ. इधर जब ऋषि के पुत्र श्रृंगी ने यह समाचार सूना तो वह अत्यंत क्रोधित हुआ उसने तुरंत ही यह श्राप दिया की आज के सातवे दिन यही तक्षक सांप राजा को डसेगा. ऋषि ने समाधि छूटने पर जब श्राप का सब हाल सूना तो बड़ा पछतावा किया, किन्तु अब क्या हो सकता था, आखिर राजा के पास श्राप का सब हाल कहला भेजा. राजा ने जब यह हाल सूना तो संसार से विरक्तत होकर अपने बड़े पुत्र जन्मेजय को राजगद्दी सोंप दी, और गंगा जी के किनारे पर आकर डेरा डाल दिया, वहां अनेक ऋषि मुनियों को इकट्ठा किया. संयोग से शुकदेव जी भी वहां आ गये और राजा को श्री मदभागवत की कथा सुनाई, सात दिन तक बराबर कथा सुनते रहे और भगवान में ऐसा मन लगाया की किसी बात की सुधि ना रही और सातवे दिन तक्षक सर्प ने आकर डस लीया और राजा परमधाम को प्राप्त हुए, सत्य है भगवान का चरित्र भक्तिपूर्वक सुनने से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारो पदार्थ अनायास ही मिल जाते है

Sanjay Mehta







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