गयाजी तीर्थ
गया श्राद्ध श्रेष्ठ है। वहाँ श्री विष्णुपाद है, इसकी कथा इस प्रकार है। गयासुर नाम का एक राक्षस था कि जिसने तप करके ब्र्ह्मा जी को प्रसन्न किया। ब्र्ह्मा जी ने वर मांगने को कहा , तब उसने ब्र्ह्मा जी को कहा कि आप क्या मुझे वरदान देंगे। आप को कुछ माँगना हो तो मुझसे मांगिये। उसकी तपश्चर्या से देवता भी भयभीत हो गए कि यह असुर कैसे मरेगा? ब्र्ह्मा जी ने सोचा कि इसके शरीर पर दीर्घकाल तक यज्ञ कराने पर ही वह मरेगा। अत: ब्र्ह्मा जी ने यज्ञ के लिए उससे शरीर ही माँगा। यज्ञकुण्ड उसकी छाती पर बनाया गया। सौ वर्ष तक यज्ञ चलता रहा फिर भी गयासुर नहीं मरा . यज्ञ की पूर्णाहुति होने पर वह उठने लगा . ब्र्ह्मा जी चिंतातुर हुए। ब्र्ह्मा जी भयभीत भी हुए। उन्हों ने भगवन का समरण किया। उन्हों ने श्री नारायण का ध्यान किया। नारायण भगवन प्रगट हुए और गयासुर कि छाती पर दोनों चरण रखे। गयासुर ने मरते समय भगवान् से वर माँगा कि इस गया तीर्थ में जो कोई भी श्राद्ध करे उसके पितृगण सद्गति प्राप्त करे . भगवान् ने उसे वर दिया कि जो तेरे शरीर पर पिंडदान करेगा उसके पितरो कि मुक्ति होगी। भगवान् ने गयासुर को भी मुक्ति दी। भगवान् के वरदान के कारण गयाजी में पितृश्राद्ध करने वाले के पितरो कि मुक्ति होती है। अब कहिये जय माता दी जी
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