बुधवार, 27 नवंबर 2013

Krishna Radha Chintan : Sanjay Mehta Ludhiana











व्यास जी ने ध्यान करते हुए कहा कि एक ही सवरूप का बार बार चिंतन करो। मन को प्रभु के सवरूप में स्थिर करो। एक ही सवरूप का बार बार चिंतन करने से मन शुद्ध होता है, परमात्मा के किसी भी सवरूप को इष्ट मानकर उसका ध्यान करो। ध्यान का अर्थ है मानस दर्शन। राम , कृष्ण , शिव , दुर्गा या किसी भी सवरूप का ध्यान करो। सर्वश्रेष्ठ सत्यसवरूप प्रभु का ध्यान करता है। ऐसा व्यास जी ने मंगलाचरण में कहा है। व्यासजी ऐसा आग्रह नहीं करते है कि एकमात्र श्री कृष्ण का ही ध्यान करो। वे किसी भी विशिष्ट सवरूप का आग्रह नहीं करते है। जो व्यक्ति जिस किसी सवरूप के प्रति आस्थावान हो उसका ही वह ध्यान करे . ठाकुर जी के जिस रूप में हमें आनद हो, वही रूप उत्तम है। एक ही सवरूप के अनगिनत नाम है , सनातन धर्म के अनुसार देव अनेक होते हुए भी ईश्वर एक ही है। मंगलाचरण में किसी एक देव का नामोल्लेख नहीं है। ईश्वर एक ही है , केवल उनके नाम और सवरूप अनेक है , वृषभानु कि आज्ञा थी कि राधा जी के पास जाने का किसी भी पुरष को अधिकार नहीं है। अत: साडी पहन के और चन्द्रावली का श्रृंगार धारण करके कृष्ण जी राधा जी से मिलने जाते है , कृष्ण जी साडी पहनते है तो माता जी बन जाते है। जय हो -- जय माता दी जी







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