रविवार, 5 मई 2013

Jai Shree Radhe... By Sanjay Mehta Ludhiana









घर में भगवान का स्वरूप रखिये . लाला का सुन्दर श्रृंगार क्रिये. भगवान् के दर्शन से त्रप्त न होइये. आँखे प्रभु में स्थिर करके प्रभु के नाम का जप करिये . आँखों से उन्हें भीतर प्रविष्ट करवाइए … फिर आँखे बंद करके उनके स्वरूप के दर्शन भीतर ह्रदय में करिये . प्रभु के एक - एक अंग में आँख रखिये. प्रभु के चरण कैसे है। चरण लाल है… चरण में कमल का चिह्न है… प्रभु के नख तो रत्न जैसे है. उनके अंगूठे से धीरे-धीरे गंगा जी प्रस्फुटित होती है. ठाकुरजी का श्रीअंग श्याम है. सुंदर पीताम्बर उन्होंने पहिना है. हाथो में शंख, चक्र, गदा और पद्म है, भगवान् के मस्तक पर सुंदर मुकुट है, मुकुट में रत्न जडित है, मुकुट के चारो और सुंदर प्रकाश प्रकट हो रहा है. प्रभु का श्रीअंग आनंदमय है, ठाकुरजी के रोम-रोम में आनंद भरा है. प्रभु के अंग में रुधिर नहीं है, मांस नहीं है, मल-मूत्र नहीं है, हड्डियाँ नहीं है, सिर्फ आनंद ही भरा है. प्रभु का मुखारविंद अति सुंदर है.
जय श्री कृष्णा
जय श्री राधे
जय जय माँ




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Sanjay Mehta







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