बुधवार, 11 अप्रैल 2012

पुण्डरीक की कथा : Pundreek ki katha by sanjay mehta ludhiana

पुण्डरीक की कथा माता पिता की सेवा, महान पुण्य है. अनेक यज्ञो के करने वाले को जो पुण्य नहीं मिलता वह वृद्ध माता - पिता की सेवा करने वाली संतान को अनायास ही प्राप्त हो जाता है. माता - पिता की अनन्य भाव से सेवा करने वाले के उपर परमात्मा बहुत कृपा करते है. इनके घर प्रत्यक्ष पधारते है . पुण्डरीक की कथा आप सब जानते हो. पुण्डरीक ने प्रभु की सेवा नहीं की थी. ग्रंथो में लिखा है की पुण्डरीक ने परमात्मा का स्मरण किया था . प्रभु की सेवा नहीं की थी. पुण्डरीक स्मरण श्री कृष्ण का करता था और सेवा माता - पिता की करता था. पुण्डरीक भगवान के दर्शन करने नहीं गया, पुण्डरीक के दर्शन करने भगवान स्वयं उनके घर पधारे थे. पुण्डरीक की मात-पिता की भक्ति से प्रसन्न होकर प्रत्यक्ष द्वारिकानाथ पुण्डरीक के घर आये थे. पुण्डरीक उस समय माता - पिता की सेवा कर रहे थे. प्रभु ने कहा की मै आया हु. पुण्डरीक ने कहा 'महाराज, मै आपकी वंदना करता हु. इस समय मै अपने माता - पिता की सेवा मै व्यस्त हु. माता - पिता की सेवा के फलस्वरूप आप मिले हो, इसलिए माता की सेवा प्रथम है. आप तनिक बाहर खड़े रहे. माता - पिता की सेवा करनेवाले में इनती शक्ति आती है. की वह इश्वर को भी खड़े रहने के लिए कह सकता है. प्रभु ने थोड़ी परीक्षा की. पुण्डरीक से बोले. 'अनंतकोटीब्रह्मांड के अधिनायक लक्ष्मी के पति तेरे घर आये है.' पुण्डरीक ने कहा ' आप पधारे, यह बहुत अच्छी बात है , मै आपका वंदन करता हु परन्तु इस समय आपकी सेवा करने की मुझे फुर्सत नहीं प्रभु ने कहा ' तू मेरी सेवा करता नहीं तो मै यहाँ से चला जाऊ ? पुण्डरीक ने कहा ' आपकी मर्जी , भले ही आप जाओ. पुण्डरीक को विश्वास है, के मैंने माता - पिता की सेवा छोड़ी नहीं, मै माता - पिता की सेवा करता हु. इस लिए भगवान भले ही चले जाये, परन्तु ठाकुर जी को वापिस यही आना ही पड़ेगा. पुण्डरीक ने ठाकुर जी को उत्तर दिया ' भले ही आप जाओ, परन्तु आपको वापिस यही आना पड़ेगा' श्री कृष्ण जगत का आकर्षण करते है, परन्तु माता-पिता की सेवा करने वाला तो परमात्मा को आकर्षित करता है . और कहता है 'आज जाओ तो फिर वापिस आना पड़ेगा' प्रभु तो भक्ति के अधीन है. पुण्डरीक ने प्रभु को खड़े रहने के लिए एक ईट दे दी थी. भगवन ईट के ऊपर खड़े रहे और पुण्डरीक की प्रतीक्षा करते रहे. पुण्डरीक ने माता - पिता की सेवा का काम छोड़ा नहीं, प्रतीक्षा करते हुए खड़े रहने से भगवान को थकान हुई तो कमर पर हाथ रखना पड़ा, आज भी पणढरपुर में पांडूरंग भगवान कमरपर हाथ रखे हुए ईट पर खड़े है, माता - पिता की सेवा की यह महिमा है ... जय माता दी जी बोलिए सचिया ज्योत वाली माता तेरी सदा ही जय जैकारा मेरी माँ वैष्णो रानी का बोल साचे दरबार की जय जैकारा मेरी माँ राज रानी का बोल साचे दरबार की जय

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