रविवार, 22 अप्रैल 2012

Mata Ji ka Darbar By Sanjay Mehta Ludhiana








माता रानी के दरबार में तुम दर्शन करोंगे तो ध्यान आवेगा के शत्रु होते हुए भी जीव एक ही जगह एकत्रित है, शत्रु होते हुए भी वैर को बिसार रखा है. शिवजी के दरबार में गणपति महाराज है और उनका वहां है मूषक, शिवजी के गले में सर्प है. सर्प और मूषक का जन्म-सिद्ध वैर होता है. सर्प मूषक को देखते ही दौड़ पड़ता है और चूहे को मार डालता है, परन्तु शिव - शक्ति के मंदिर में तो इन्होने वैर भुला रखा है, प्रेम से सब साथ बैठे है, भगवान शंकर के वाहन है नन्दीश्वर और माता पार्वती जी के वाहन है सिंह . आदिशक्ति जगदम्बा सिंह वाहिनी है . माता जी को सिंह बहुत प्रिय है. सिंह हिंसा तो बहुत करता है. परन्तु सिंह में एक बहुत बड़ा सदगण है. सिंह वर्ष में एक ही बार काम-सुख भोगता है. बाकी तीन सो उन्सठ दिवस यह सयम रखता है. सिंह सयम की मूर्ति है और इसलिए आदिशक्ति जगदम्बा ने सिंह को पसंद किया. माता जी के मंदिर मे सिंह की सथापना होती है .


देवी भागवत में आदिशक्ति जगदम्बा के इक्यावन सिद्धपीठो की कथा आती है. स्वर-व्यंजन मिलने से इक्यावन होते है. इनको प्रकट करने की जो शक्ति है, वह इक्यावन पीठो में विराजती है. आदिशक्ति जगदम्बा जहाँ विराजती है, वहां सिंह की सथापना होती है. काशी में विशालाक्षी है. कांची में कामाक्षी है. मटूरा में मिनाक्षी है. ज्वालाजी मे माँ ज्वाला, चिन्तपुरनी मे माँ चिन्तपुरनी, काँगड़ा मे ब्रेजेश्वरी देवी पीठ में सिंह की स्थापना है. माताजी का वाहन सिंह और शिवजी भगवान का वाहन नंदी, सिंह और बैल का जन्मसिद्ध वैर है. परन्तु माँ के धाम में ये वैर भूल जाते है

बोलिए जय माता दी जी
जय माँ शेरावाली माँ
जय मेरी माँ वैष्णो रानी
जय मेरी माँ राज रानी
जय माता दी जी








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