सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

चिन्तपुरनी का इतिहास: History of Maa Chintpurni By Sanjay Mehta Ludhiana







चिन्तपुरनी का इतिहास
(भगत माईदास की कथा)







कहा जाता है के माईदास नामक दुर्गा - माता के एक श्रदालु भगत ने इस स्थान की खोज की थी.. दन्त-कथा के अनुसार माईदास के पिता अठर नामी गाव (रियासत पटियाला) के निवासी थी.. इनके तीन पुत्र थे
देवीदास , दुर्गादास व् सबसे छोटे माईदास

अपने पिता की भाँती ही माईदास का अधिकतर समय देवी के पूजा पाठ मे वेय्तीत होता था . इस कारन वह अपने बड़े दो भाइयो के साथ व्यापार आदि काम काज मे पुरा समय ना दे पाते थे.. इसी बात को लेकर उनके भाइयो ने उन्हें घर से अलग कर दिया.. परन्तु माईदास ने फिर भी अपनी भगति व् दिनचर्या मे कोई कमी ना आने दी.. एक बार अपनी ससुराल जाते समय माईदास जी मार्ग मे घने जंगल मे वट-वृक्ष के नीचे आराम करने बैठ गए ( इस स्थान का प्राचीन नाम छ्प्रोह था और आजकल उसी वट वृक्ष के नीचे चिन्तपुरनी मंदिर बना हुआ है)

संयोगवश माईदास जी की आँख लग गई तथा स्वप्न मे उन्हें दिव्या - तेज से युक्त एक कन्या दिखाई दी.. जिसने उन्हें आदेश दिया के तुम इसी स्थान पर रहकर मेरी सेवा करो.. इसी मे तुम्हारा भला है.. तन्द्रा टूटने पर वह फिर ससुराल की और चल दिए.. परन्तु उनके मस्तिष्क मे बार बार वह ध्वनि गूंजती रही 'इस स्थान पर रहकर मेरी सेवा करो, इसी मे तुम्हारा भला है '

ससुराल से वापिस आते समय माईदास के कदम फिर यहाँ ठिठक गए.. घबराहट मे वह फिर उसी वट-वृक्ष के छाया मे बैठ गए और भगवती की स्तुति करने लगे.. उन्होंने मन ही मन प्राथना की - माता यदि मे शुद्ध हृदय से आप की उपासना की है तो प्रत्यक्ष दर्शन देकर मुझे आदेश दे.. जिससे मेरा संशय दूर हो .. बार बार स्तुति करने पर उन्हें सिंह वाहिनी दुर्गा के चतुर्भुजी रूप मे साक्षात दर्शन हुए.

देवी ने कहा कि मै इस वृक्ष के नीचे चिरकाल से विराजमान हु.. लोग यवनों के आक्रमण तथा अत्याचारों के कारण मुझे भूल गए है.. मै इस वृक्ष के नीचे पिंडी रूप मे स्तिथ हु . तुम मेरे परम भगत हो अत: यहाँ रहकर मेरी आराधना और सेवा करो.. मै छिन्मस्तिका के नाम से पुकारी जाती हु.. तुम्हारी चिंता दूर करने के कारन अब मै यहाँ चिन्तपुरनी नाम से प्रिसद्ध हो जाउंगी.. माईदास जे ने नतमस्तक होकर निवदन किया - हे जगजननी भगवती! मै अल्प बुद्दी व् अशक्त जीव हु.. इस भयानक जंगल मे अकेला किस प्रकार रहूँगा? ना यहाँ पानी, ना रोटी, ना ही कोई स्थान बना है... यहाँ तो दिन मे ही डर लगता है .. रात्री कैसे कटेगी? माता ने कहा कि मै तुमको निर्भय - दान देती हु.. इस मन्त्र का जप करो जिससे तुम्हारा भय दूर होगा.

इस मन्त्र द्वारा तुम मेरी पूजा करो.. नीचे जाकर तुम किसी बड़े पत्थर को उखाड़ो, वह जल मिलेगा, उसी से तुम मेरी पूजा किया करना.. जिन भगतो कि मै चिंता दूर करूंगी, वह स्वय ही मेरा मंदिर बनवा देंगे .. जो चडावा चडेगा उससे तुम्हारा गुजारा हो जायेगा.. सूतक - पातक का विचार ना करना.. मेरी पूजा का अधिकार तुम्हारे वंश को ही होगा.. ऐसा कहकर माता पिंडी के रूप मे लोप हो गई

भगत माईदास कि चिंता का निवारण हुआ.. वह प्र्फुल्ल्चित पहाड़ी से थोडा नीचे उतरे और एक बड़ा पत्थर हटाया तो काफी मात्र मे जल निकल आया. माईदास कि ख़ुशी कि सीमा ना रही.. उन्होंने वाही अपनी झोंपड़ी बना ली और उसी जल से नित्य नियमपूर्वक पिंडी कि पूजा करनी प्रारम्भ कर दी .. आज भी वह बड़ा पत्थर , जिसे माईदास जी ने उखाड़ा था, चिन्तपुरनी - मंदिर मे रखा हुआ है.. जिस स्थान से जल निकला था.. वह अब सुंदर तालाब बनवा दिया गया है.. इस स्थान से जल लाकर माता जी का अभिषेक किया जाता है


बोलिए माँ चिन्तपुरनी की जय
लिखने मे कोई गलती हो तो अल्प बुद्दी समझ  कर माफ़ करना
माँ का दास संजय मेहता
जय माता दी जी





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