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*यह कथा श्रीराम कृष्ण परमहंस जी महाराज को शिष्य-परम्परा से किसी वयोवृद्ध परम भक्त वैष्णव ने सुनी थी और मुझे काशी में 'श्री शिव-पार्वती' तथा 'कृष्ण-राधा' में एक्याभाव है, इसलिए उन्होंने समझायी थे और किसी उपपुरण का नाम भी बताया था, वह मुझे स्मरण नहीं है, भक्तजन लाभ उठावे, इस लिए इसे लिख रहा हु. वैसे आप इसे कल्याण के 'श्री शिवांक' में पेज १६३ में भी देख सकते है (संजय मेहता)
कथा :- किसी समय प्रदोषकाल में जब देवगन रजतगिरि कैलाश पर 'नटराज' शिव के तांडव में सम्मिलित हुए और जगजननी आद्या श्री गौरीजी रतनसिंहासन पर बैठकर अपनी अद्याक्ष्ता में तांडव कराने को तैयार हुई. ठीक उसी समय वहां श्री नारद जी महाराज भी आ गये और अपनी वीणा के साथ तांडव में सम्मिलित हुए. तदन्तर श्री शिवजी तांडव नृत्य करने लगे, श्री सरस्वती जी वीणा बजाने लगी, इंद्र महाराज वंशी बजाने लगे. ब्रह्मा जी हाथ से ताल देने लगे. और लक्ष्मी जी आगे आगे गाने लगी, विष्णुभगवान मृदंग बजाने लगे और बचे हुए देवगन तथा गन्धर्व , यक्ष, पन्नग , उरग, सिद्ध, विद्याधर , अप्सराएं सभी चारो और से स्तुति में लीन हो गये, बड़े ही आनंद के साथ तांडव सम्पन्न हुआ. उस समय श्री आद्या भगवती(महाकाली) पार्वती जी परम प्रस्न हुई और उन्हों ने श्रीशिवजी(महाकाल) से पूछा कि आप क्या चाहते है? आज बड़ा ही आनंद हुआ. फिर सब देवो से, विशेषकर नारदजी से प्रेरित होकर उन्हों ने यह वर माँगा कि 'हे देवि! इस आनंद को केवल हमलोग ही लेते है, किन्तु पृथ्वीतल में एक ही नहीं, हजारो भक्त इस आनंद से तथा नृत्य-दर्शन से वंचित रहते है, अतएव मृत्यलोक में भी जिस प्रकार मनुष्य इस आनंद को प्राप्त करे ऐसा कीजिये, किन्तु मै अपने तांडव को समाप्त करूँगा और 'लास्य' करूँगा. इस बात को सुनकर श्री आद्या भुवनेश्वरी महारानी ने 'एवमस्तु' कहा और देवगणों से मानुष-अवतार लेने को कहा और स्वयं श्यामा (आद्या महाकाली) श्यामसुंदर का अवतार लेकर श्री वृन्दावन धाम में आयी और श्री शिवजी (महाकाल) ने राधा जी का अवतार लेकर व्रज में जन्म लीया और 'देवदुर्लभ रासमंडल' की आयोजना की और वही 'नटराज' की उपाधि यहाँ श्यामसुंदर को दी गई. बोलो नटराज भगवान की जय , बोलो माँ वैष्णोदेवी की जय, बोलो मेरी माँ राजरानी की जय. बोलो दुर्गा देवी की जय.
Sanjay Mehta
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