घर में भगवान का स्वरूप पधराकर परमात्मा की सेवा - पूजा करे, कोई भी स्वरूप की मूर्ति रखकर भाव और प्रेम-पूर्वक सेवा करे. कितने ही लोग घर में चित्रमय स्वरूप पधराते है, परन्तु मूर्ति-स्वरूप पधरावे तो अधिक ठीक है. चित्र-स्वरूप में स्नान नहीं हो पाते, अभिषेक नहीं हो पाता. जहाँ कम श्रृंगार किया की सेवा-पूजा जल्दी पूर्ण हो जाती है. मूर्ति स्वरूप हो तो तुम दूध से स्नान कराओ , सर्दी में गर्म जल से स्नान करो, श्रीअंग को पोंछो , फिर वस्त्र अर्पण करो, इस प्रकार सेवा-पूजा में अधिक समय लगा सकोगे, श्रृंगार हो उतने समय तक आँख और मन भगवान में लगाये रहे, श्रृंगार करनेवाला भगवान स्वरूप के साथ एक हो जावे, श्रृंगार करने से क्या भगवान की शोभा बढती है? नहीं, नहीं, वे तो सहज सुंदर है, श्रृंगार करने से अपना ही मन शुद्ध होता है, बड़े - बड़े योगियों को समाधि में जैसा आनंद मिलता है, वैसा आनंद वैष्णो को अनायास ही ठाकुर जी के श्रृंगार में मिल जाता है, खुली आँखों में ही समाधि जैसा आनंद मिल जाता है, श्रृंगार करने के पश्चात् भोग अर्पण करना चाहिए
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Sanjay Mehta
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