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गुरुवार, 23 अगस्त 2012
परमात्मा रसरूप है, रस भोगता है By Sanjay Mehta Ludhiana
परमात्मा रसरूप है, रस भोगता है. इस लिए परमात्मा को तुम जो सामग्री अर्पण करते हो उसमे - से दिव्या रस को भगवान खींच लेते है. जिस प्रकार मनष्य फुल में से सुगंध खींच लेता है, उसी प्रकार परमात्मा रस को खींच लेते है. परमात्मा रसरूप से आरोगते है, तर्क-कुतर्क ना करो, वाद-विवाद ना करो, अपने ऋषियो के वचनों में विशवास रख कर सेवा-पूजन करो. अंध-श्रद्धा के बिना भक्ति सफल नहीं होती
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