शिव हाथ में : संजय मेहता लुधियाना !!!!!
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एक समय की बात है की अम्बाला जिले के भोवा नामक ग्राम का नम्बरदार किसी दुसरे स्थान से घर लौट रहा था, परन्तु लौटते समय मार्ग में पड़नेवाली बरसाती नदी, जो जाते समय सुखी पड़ी थी, एकाएक उमड़ आयी... उसे पार करने का कोई उपाए नहीं था, पर घर आना अत्यंत आवश्यक था. बेचारा बड़े सोच विचार में पड़कर भगवान को स्मरण करने लगा. इतने में उसने देखा एक जटा-जुट-धारी महात्मा, जो साक्षात् शिव प्रतीत होते थे, सामने आ खड़े हुए और उसके बिना कुछ कहे ही बोलते - "क्यों, बच्चा!!! नदी-पार जाना चाहता है? पर करीब दो सौ कदम चौड़ी गहरी नदी को, नौका आदि साधना के बिना कैसे पार करेगा?
बेचारा नम्बरदार आर्तभाव से उनके मुह की और ताकने लगा, उन परम कारुणिक महापुर्ष ने फिर उससे कहा " अच्छा , एक काम कर! अपने दोनों हाथ तो मेरे सामने कर" पथिक ने तुरंत आज्ञा का पालन किया.. उसके हाथ पसारने पर महात्मा जी ने उसके बाए हाथ में "शि" और दाहिने में "व्" लिख दिया और बोले की "जा, अब दोनों हाथो को देखते -देखते चला जा" बस, महात्मा जी के आदेशानुसार वह ऐसे नदी पार करने लगा, मानो साधारण मैदान में जा रहा हो. परन्तु जब कोई दस कदम नदी बाकी रह गई तब एकाएक उसके मन में यह भाव उठा कि अरे! महात्मा ने इस "शिव" को लिखकर कौन-सी करामत दिखलाई? यह शिव नाम तो मेरे माता-पिता बराबर लीया करते थे. शिव के सम्बन्ध में कथा-वार्ताए भी मैंने खूब सुनी है. फिर इस शिव में और कौन -सी विशेषता है? बस , यह भाव उसके अंदर उठा ही था कि वह नदी में गौते खाने लगा.. मालूम हुआ कि अब गया.. विवश होकर उन्ही अशरण-शरण को पुकारा -'भगवान! मेरी रक्षा करो
यह सुनते ही उस पार खड़े हुए महात्मा ने जोर से पुकारकर कहा - 'अरे! तू अपने उस शिव को छोड़कर इसी शिव का ध्यान कर' बस, महात्मा की वाणी सुनते ही उसका उठा हुआ अविश्वास जहाँ-का-तहां दब गया और वह अनायास ही नदी पार कर गया!!
पाठक! जब उसी हाथ में लिखे हुए "शिव" को देखने-मात्र से वह व्याक्ति नदी पार कर गया तब तो 'शिव-शिव' रटने से क्या नहीं हो सकता? हमें चाहिए कि हम अन्वार्त्भाव से उसमे लग जाए
अब बोलिए जय माता दी , जय शिव शक्ति की. जय माँ राज रानी की, जय माँ वैष्नोरानी की
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Sanjay Mehta
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