मंगलवार, 20 अगस्त 2013

भक्त और भक्ति : Bhakt or Bhakti : Sanjay Mehta Ludhiana










वह देखो , एक छोटा सा बच्चा--- नहीं - नहीं-- देवता -- हाथ में तुम्बा लिए छोटी छोटी सुनहरी जटा धारण किये गहरे जंगल में भाग जा रहा है। । सिंह गर्जते है-- यह नहीं डरता , हाथी इसको डराते है --- यह परवा नहीं करता -- विपत्तिय इसको खा जाना चाहती है. परन्तु यह उनके हाथ से निकल जाता है. पर्वत और नदियाँ इसका मार्ग रोकती है--- यह उनके सिर पर पैर रखकर तीव्र गति से आगे निकल जाता है… ना दिन देखता है, ना रात !!! वर्षा हो या हो सर्दी … बर्फ पड़ती हो या गर्म लू चलती हो -- यह रुकने का नाम नहीं लेता। जानते हो यह कौन है? यह है धुन का धनी ध्रुव --- यह भगवान् के दर्शन करना चाहता है। . वह देखो इसकी समाधि लग गयी, भगवान् के दर्शन हो गये। । अब भगवान् की गोद में जा पहुंचा -- सच्चे पिता से सच्चे पुत्र का मिलाप हो गया। । आओ, इस निष्कपट भक्त को श्रद्धा से नमस्कार करे। । यह बच्चा नहीं किन्तु पूज्यो का पूज्य है , यह धृति और निश्चय की मूर्ति है।
जय माता दी जी



वह देखो, एक सुंदर बालक खड़ा है. इसको हलाहल विष पिलाया गया . परन्तु यह नहीं मरा। । कोड़ो से पिटवाया गया--- यह नहीं मरा -- पर्वतों से गिराया गया-- यह नहीं मरा -- कुत्तो से फडवाया गया -- यह नहीं मरा -- अधिक क्या इसको जलते हुए खम्भों से बांधकर जलाया गया -- यह नहीं मरा -- अपने भगवान के नाम पर यह सब कुछ सह गया -- यह है भक्त प्रहलाद -- इसको दैत्या का पुत्र नहीं कहना! -- यह देवताओ का भी देवता है। आओ , इसको श्रद्धा से नमस्कार करे। यह तितिक्षा और शुद्ध निष्काम भक्ति का ज्वलंत दृष्टांत है.




वह देखो, एक देवी खड़ी है. इसको जगत्पति सच्चे पति से मिलने की धुन लग गयी है. उसने घर - बार त्याग दिया और राजसुख पर लात मारकर यह साधनी हो गयी -- राजा ने दण्ड दिया - इसने धन्यवाद किया -- इसको भूखो मरने पर बाधित किया गया -- इसने सहर्ष स्वीकार किया, इसके लिए काले काले विष के प्याले भेजे गये - इसने पी लिए; इसको गालियाँ दी गयी - इसने उत्तर नहीं दिया; इसपर गंदे लाञ्छन लगाये गये -- यह पी गयी -- इसको डराया -धमकाया गया, परन्तु इसने ध्यान नहीं दिया, इसको प्रेम से अनेक प्रकार से समझाया गया परन्तु यह किसी प्रकार से नहीं मानी- इसने तिरियाहठ नहीं छोड़ा -- जानते हो , यह देवी कौन है? यह है मीराबाई -- यह रानी नहीं -- प्रभुप्रेम की दीवानी और मस्तानी है. प्रभु की ही महारानी है. आओ इस माता के चरणों पर श्रद्धा से नमस्कार करे -- यह भक्ति का स्वरूप है. प्रेम की मूर्ति है
जय मीराबाई की



वह देखो, कोई पीताम्बर धारण किये वीणा धारण किये वीणा बजाता और हरिगुण गाता आनंदमग्न हो रहा है। । इसने ऋग्वेद पढ़ लिया - इसको शान्ति ना मिली , इसने यजुर्वेद जान लिया - इसकी प्यास नहीं बुझी , इसने सामवेद सुन लिया - इसकी तृष्णा ना मिटी - इसने अथर्ववेद समझ लिया - इसको तृप्ति नहीं हुई -- इसने इतिहास पुराण पढ़ लिए - इसके संशय ना मिटे ; अधिक क्या, इसने चतुर्दश विध्याए सीख ली, परन्तु इसको संतोष नहीं हुआ -- इसने चिकित्सा जान ली पर इसके ह्रदय का रोग नहीं मिटा - यह भगवान सनत्कुमार की शरण में गया . वहा इसे ब्रह्मविध्या बस, यही कृतकृत्या हो गया . अब मस्त है. जानते हो यह कौन है ? यह है देवरिषि नारद जी है। । आओ , इस आत्मज्ञानी की आरती उतारे



यह देखो , कोई दिगम्बर महात्मा खड़ा है, आँधी आती है - यह नहीं हिलता , भूख लगती है - यह नहीं मांगता ; प्यास सताती है- यह नहीं बोलता ; लोग कहते है यह
चण्डाल है - यह कुछ नहीं कहता, वर्षा आती है - यह भीगता है , सर्दी पड़ती है - यह सहता है , गर्मी जलाती है - यह ध्यान नहीं देता -- इसको फूलो के हार पहनाये जाते है - यह दृष्टि नहीं देता -- लोग कहते है - अटारी पर बैठ जा -- यह कहता है मेरे लिए सर्वत्र अटारी है - लोग कहते है - शरीर को कष्ट मत दो - यह कहता है शरीर तो जड़ है , इसको कष्ट कैसा -- लोग कहते है - आत्मा को दुःख मत दे -- यह कहता है - इन्द्रिय-रामी ही जीवन को कष्ट करता है , आत्मज्ञानी नहीं- लोग पूछते है -- आत्मा क्या है - यह कहता है जिसके होने से आँखे देखती है , कान सुनते है, है, और पैर चलते है वह आत्मा है -- हाँ , जिसकी शक्ति से मन सोचता है और बुद्धि निश्चय करती है, वह आत्मा है -- लोग कहते है - वह शक्तिशाली आत्मा कहाँ है? यह हँसता है और कहता है 'भोले भैया ! वह तू ही है ' जानते हो यह कौन है ? यह है दत्तात्रेय अवधूत -- यह त्रिगुणातीत है, आओ इस देवता का अर्चन करे, यह ब्रह्मविध्या का सच्चा स्वरूप ही है।

जय हो दत्तात्रेय महाराज की
जय माता दी जी




इधर देखो, एक नवयुवक खड़ा है, यह सब को देखता है परन्तु इसका मन विकर्त नहीं होता ; इसका राजद्वार पर तिरस्कार होता है - यह आनंदमग्न रहता है - यह राजा के महल में जाता है - इसे छतीस प्रकार के भोजन खिलाये जाते है , रेशम वस्त्र पहनाये जाते है , इसकी प्रतिष्ठा होती है, इसके लिए उत्तमोत्तम महल बनाये जाते है, यह सबमे निर्विकार विक्षोभ्रहित रहता है - लोग सोते है - यह जागता है, लोग जागते है - यह सोता है, इसकी दुनिया निराली है, लोगों की रात्रि आती है, तो इसका दिन होता है, यह सोते हुए को जगाता फिरता है. और जागते हुओ को दौडाता है, इसकी दुनिया में स्त्री स्त्री नहीं, पुरष पुरष नहीं -- इसको बस,एक ही दीखता है, यह एक का ही ग्राहक है - इसकी दृष्टि में एकता है - इसकी स्तिष्टि में समता है -- जानते हो यह देवता कौन है… यह है युवकशिरोमणि अवधूत शुकदेव जी महाराज -- आओ इस ब्रह्मज्ञानी को प्रणाम करे

जय हो शुकदेव जी महाराज की



इधर देखो, एक तेजस्वी वृद्ध बैठा है इसके मुखमण्डल से प्रभा निकल रही है… इसने वेद पढ़े - इसने वेद पढाये , इसने ब्राह्मणग्रंथो का निर्माण किया-- इसने ऋषियो का कल्याण किया - ऋषियो ने प्रश्न किये - इसने समाधान किये -- बड़े बड़े राजाओ ने इसका सम्मान किया - इसने उनको परमार्थ का उपदेश दिया - इसने वेदमंत्रो का सरस व्याख्यान किया , संसार ने इसको सर आँखों पर लिया -- इसने उपनिषदों की रचना की - लोगो ने इसकी ब्रह्म से उपमा दी - जानते हो यह कौन है ? यह ऋषि ब्रह्मऋषि याज्ञवल्क्य है --- यह ऋषियो का ऋषि -- मुनिओ का मुनि और आचार्यो का आचार्य है, आओ इस महानुभाव की पूजा करे -- यह वेदमाता का प्यारा पुत्र है.
जय हो याज्ञवल्क्य जी की



वह देखो , कोई अलौकिक व्यक्ति खड़ा है, यह देवताओं का राजा है - इसके ह्रदय में परमदेव के जानने की इच्छा उत्पन्न हो गयी , इसने स्वर्गलोक पर लात मार दी , अप्सराओं का त्याग कर दिया और अमर जीवन से विरक्त्त हो गया -- आचार्य प्रजापति का पता पूछता हुआ आया - आचार्य ने कहा क्या तुम इन्दर नहीं हो ? बोला -- हाँ , भगवन! इंद्र ही हूँ। . 'स्वर्ग का राजसुख किसलिए छोड़ दिया? 'भगवन ! आत्मा को जानना चाहता हु ' 'अप्सराओं को क्यों त्याग दिया? ' 'महाराज! आत्मज्ञान की इच्छा है. ' ऐसा है तो बत्तीस वर्ष तक लंगोटा कसकर पड़े रहो और शम ,दम , तितिक्षा , ब्रह्म्चारियादिक योग्यता दिखाओ… इसके बाद ब्रह्मविद्या बतायी जायेगी -- बत्तीस वर्ष बीत गए - आचार्य ने कहा - 'नहीं , बत्तीस वर्ष और ब्रह्मचारी रहो - वह भी हो गये , आचार्य ने कहा ' नहीं , बत्तीस वर्ष और लगाओ' उसने वह भी पुरे किये , प्रजापति ने कहा 'अभी कसर है ' इसने सिर झुका दिया , फिर पांच वर्ष ब्रह्मचारी रहा और अपने अटल धैर्य से आत्मतत्व को पहचानने की योग्यता प्राप्त की -- फिर ऋषि ने इसको आत्मज्ञान समझाया - यह देवराज इंद्र है. यह देवताओं के देवता है, आओ , इस देवता को श्रद्धा से नमस्कार करे
जय देवराज इंद्र की





जय माता दी जी

जय माता दी जी












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