गुरुवार, 12 सितंबर 2013

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एक वृक्ष पर एक कौआ रहता था। सायंकाल जब अँधेरा हुआ तब एक हंस - हंसिनी का जोड़ा घूमते हुए वहीँ आ पहुंचा। . उसने कौए से कहा कि अँधेरा हुआ है, हम यहाँ आज रात भर रहना चाहते है. कौए ने कहा कि अच्छा। हंस-हंसिनी वृक्ष पर रह गये। कौए की आँख बहुत बुरी होती है. आँख से जो पाप करते है, वे दुसरे जन्म में कौआ होते है. हंसिनी को देखकर काग की नियत बिगड़ गई। सुबह जब हंस-हंसिनी जागे तब कौए ने हंसिनी का को पकड कर कहा अब यह मेरी है। हंस ने कहा की आप यह क्या कह रहे है? दोनों में झगडा हुआ । अदालत में केस चला। कौआ बड़ा ही चालाक था . उसने न्यायाधीश को रिश्वत दी, कहा की कल अगर मेरे पक्ष में आप न्याय देंगे तो मै आपको आपके मृत माता-पिता के पास ले जाऊंगा . काग को पितृ दूत मानते है, इससे मृत पितरो को वह देख सकता है। न्यायाधीश ललचा गये. उसने झूठा न्याय दिया की यह हंसिनी हंस की नहीं, इस कौए की है। । हंस बहुत दुखी हुआ। न्यायाधीश ने कौए से कहा - तुम्हारी इच्छा के अनुसार न्याय दिया है अब मेरे माता-पिता मुझे दिखा दो. कौआ उसे कूड़े पर ले गया . वहाँ कई कीड़े पड़े थे. उनमे से एक को दिखाकर कहा - यह कीड़ा तुम्हारा पिता है. न्यायाधीश ने पूछा - क्यों मेरे पिता कीड़े हुए? कौए ने कहा - जिसका पुत्र न्यायासन पर बैठकर लोभ से झूठा न्याय देता है, उस पुत्र का पिता कीड़े के सिवाए क्या हो सकता है. तुम भी कीड़ा ही होने वाले हो. तुमने लोभ से झूठा न्याय दिया है, पुत्र अति पापी हो तो उसके पाप के कारण माता-पिता की दुर्गति होती है, प्रहलाद से भगवद्भक्त पुत्र हो उनके माता - पिता को सद्गति प्राप्त होती है।
(सोजन्य श्री मदभागवत रसामृत : ३९६ )

अब कहिये जय माता दी


Sanjay Mehta








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